
निर्मल रानी
 वैसे तो हमारे पौराणिक शास्त्रों में जिस तरह अनेक देवियों,उनके जीवन,उनके कार्यकलापों,अदम्य साहस तथा उनके वैभव का उल्लेख किया जाता उससे तो यही प्रतीत होता है कि महिलायें हमेशा से ही निर्भीक,निडर,साहसी तथा पुरुषों की ही तरह सब कुछ कर गुजरने की क्षमता रखने वाली रही हैं। अन्यथा आज उन देवियों की पूजा हरगिज़ न हो रही होती। हमारे इतिहास में भी गार्गी,सावित्री बाई फुले,रानी लक्ष्मी बाई,रज़िया सुल्तान,बेगम हज़रत महल,से लेकर डॉ लक्ष्मी सहगल व इंदिरा गाँधी तक ऐसी अनेक महिलाओं ने अपनी बुद्धि व कौशल का प्रदर्शन कर बार बार यह साबित किया है कि महिलायें किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। बल्कि वास्तविकता तो यह है कि यदि महिलाओं को पूरी स्वतंत्रता,सुरक्षा व सुविधायें मुहैय्या कराई जायें तो कई क्षेत्रों में तो यह पुरुषों से भी बेहतर भूमिका अदा कर सकती हैं। यदि हम विज्ञान व तकनीक के ही क्षेत्र की बात करें तो जिस दौर में नेता जी सुभाष चंद्र बोस आज़ाद हिन्द फ़ौज के माध्यम से स्वाधीनता की लड़ाई में व्यस्त थे उस समय दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया उसी दौरान डॉ लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं थीं। वे उस समय न केवल आज़ाद हिन्द फ़ौज की निर्धारित वर्दी पहनती थीं बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों के लिए चलाए जाने वाले रेडियो प्रसारण का ज़िम्मा भी बड़े ही गुप्त रूप से निभाती थीं। गोया तकनीकी क्षेत्र में भी महिलाओं ने अपना परचम हमेशा लहराया है। लक्ष्मी सहगल से लेकर वर्तमान दौर की कल्पना चावला व सुनीता विलियम्स तक ने यह साबित किया है कि यदि हमें अवसर मिले तो हर उस चुनौती को स्वीकार किया जा सकता है जिसपर पुरुष अपना एकाधिकार समझता है।
                                               पिछले दिनों एक बार फिर भारतीय महिला पायलट्स के एक दल ने बेहद चुनौतीपूर्ण उड़ान पूरी कर यह साबित किया है कि हमें कमज़ोर समझने वालों की बुद्धि भले ही कमज़ोर हो परन्तु महिलायें किसी भी क्षेत्र में अक्षम या कमज़ोर हरगिज़ नहीं। गत 9 जनवरी को एयर इण्डिया की उड़ान संख्या ए आई-176 ने वन्दे भारत मिशन के तहत सैन फ़्रांसिस्को से  केम्पेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बंगलौर के लिये अपनी पहली उद्घाटन उड़ान भरी। नार्थ पोल जैसे चुनौती पूर्ण वायु मार्ग से गुज़रने वाली लगभग 16000 किलोमीटर लंबी इस उड़ान की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि इसे उड़ाने  वाले  पूरे पायलट दल में केवल महिलायें ही थीं। कैप्टन ज़ोया अग्रवाल के नेतृत्व में इस विमान को उड़ाने में कैप्टन पापागरी तनमई कैप्टन शिवानी तथा कैप्टन आकांक्षा सोनवरे सहयोग कर रही थीं। नार्थ पोल जैसे हवाई मार्ग से उड़ान भरने के परिणाम स्वरूप लगभग दस टन ईंधन भी बचाया जा सका। भारतीय विमानन इतिहास का यह पहला अवसर है जबकि इतने लंबे व ख़तरनाक़ व चुनौतीपूर्ण रास्ते से होकर इतनी लंबी दूरी की कोई फ़्लाइट केवल महिला पायलट्स द्वारा उड़ाई गयी हो।बेशक पूरे देश को इन भारतीय महिला पायलट्स  पर गर्व करना चाहिए।                                         
    महिलाओं की इस अभूतपूर्व उपलब्धि के बाद एक बार फिर यह बहस ज़िंदा हो गयी है कि वह पुरुष प्रधान समाज जो अपने पुरुषत्व के झूठे नशे में कभी इतना चूर था कि विधवा महिलाओं को उनके पति की जलती चिता पर बिठा दिया करता था वही पुरुष समाज आज भी महिलाओं को अपने से कमतर,दूसरे दर्जे का,अल्पबुद्धि तथा अनेकानेक क्षेत्रों में अक्षम क्यों समझता है ? यहाँ तक की समाज को धर्म के नाम पर विभाजित करने व धरती को मानव रक्तरंजित देखकर स्वयं को विजेता समझने वाले विध्वंसक प्रवृति का पुरुष समाज तो महिलाओं को केवल परदे व घूंघट में रखने का पात्र तथा बच्चा पैदा करने का माध्यम मात्र ही समझते हैं। महिलाओं की रक्षा पर ‘प्रवचन’ देने वाले अनेकानेक नेता व धर्मगुरु आदि तो महिलाओं को केवल अपना बिस्तर गर्म करने या बलात्कार का पात्र ही समझते हैं। आज भी जब देश में कहीं बलात्कार या सामूहिक बलात्कार जैसे घटनायें होती हैं तो किसी न किसी ‘विशिष्ट ‘परन्तु मंद बुद्धि नेता का महिलाओं को ही दिया जाने वाला यह ‘उपदेश’ ज़रूर सुनाई दे जाता है कि महिलायें देर रात घरों से बाहर न निकलें,या अपनी सुरक्षा का स्वयं ध्यान रखें। गोया महिला को ही उसके साथ होने वाले किसी भी हादसे का ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है।
                                            भारतीय महिलाओं के वास्तविक साहस को यदि आज भी देखना व समझना है तो न केवल एयर इण्डिया की यह चारों पायलट्स के सहस को देखा जा सकता है बल्कि दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन में उन महिलाओं की भागीदारी को भी देखा जा सकता है जो स्वयं ट्रैक्टर चला कर सैकड़ों किलोमीटर का सफ़र तय कर आंदोलन में शिरकत कर रही हैं। उन सैकड़ों आंदोलनकारी महिलाओं को भी देखा जा सकता है जो धरने पर बैठे किसानों के लिए लंगर बनाने हेतु पूरे समर्पण से काम कर रही हैं। यदि महिलाओं के साहस व हिम्मत को देखना हो तो हरियाणा पंजाब के खेतों में काम करते हुए व मशीनें चलाते हुए तथा बिहार,बंगाल,उड़ीसा,महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बाज़ारों में विभिन्न व्यवसाय करती महिलाओं से भी सबक़ लिया जा सकता है। बात तो सिर्फ़ अवसर मिलने की है और पुरुष प्रधान समाज द्वारा महिलाओं पर भरोसा व विश्वास कर उन्हें अवसर दिए जाने की। बेशक यदि अवसर मिले तो-महिलायें क्या कुछ न कर दिखायें।
 
 
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार महिलाएं उत्तम मां, बेटी, बहन, पत्नी, और परिवार व समाज का सबल-गुण है | आज वैश्विक वातावरण में प्राप्त विद्या अवश्य ही महिलाओं को जागृत करते उन्हें उन्नति के शिखर पर पहुंचाती है तिस पर परम्परागत भारतीय समाज को स्थाई रूप में अनुशासित, विकसित, व सुदृढ़ बना पाने में सहायक उनका उत्तम मां, बेटी, बहन, पत्नी व परिवार की परिधि में आवश्यकता अनुसार क्या कुछ नहीं कर पाना उनका सबल-गुण है | जीवन का उद्देश्य सुखी व संपन्न परिवार है और स्त्री-पुरुष उसके आवश्यक अंग हैं | सामाजिक कुरीतियों के कारण सदैव पुरुष को कोसते समाज में स्त्री के अस्तित्व को परिवार से दूर रखना एक नई कुरीति को आमंत्रण देना है | इस नई कुरीति को समझ पाने हेतु हमें कल तक की प्रतीक्षा नहीं करनी होगी, इसी के कारण पाश्चात्य सभ्यता में आज वे परिवार को खोज रहे हैं !