भारतभू पर हुए अवतरित, एक महा अवतार थे,
थी विशेष प्रतिभा उनमें, वे ज्ञानरूप साकार थे।
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तेजस्वी थे , वर्चस्वी थे, महापुरुष थे परम मनस्वी,
उनका था व्यक्तित्व अलौकिक,कर्मयोग से हु्ए यशस्वी।
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भारत के प्रतिनिधि बनकर वे , अमेरिका में आए थे ,
जगा गए वे जन जन को, युग-धर्म बताने आए थे।
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सुनकर उनकी अमृत वाणी , सभी विदेशी चकित हुए,
हुए प्रभावित ज्ञान से उनके, अनगिन उनके शिष्य हुए ।
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भारत की संस्कृति का झंडा , तब जग में लहराया था,
अपने गौरव , स्वाभिमान का, हमको पाठ पढ़ाया था।
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आस्था, निष्ठा, आत्मज्ञान और, ब्रह्मज्ञान को कर उद्घाटित,
सब में वही आत्मा बसती, जन-सेवा को किया प्रचारित।
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आए थे “नरेन्द्र” बन कर जो, वही महाऋषि सिद्ध हुए,
दे “विवेक” और “आनन्द” सब को, विवेकानन्द प्रसिद्ध हुए।।
— शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी।
यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें
प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं
लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं
से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।