भारतभू पर हुए अवतरित, एक महा अवतार थे,
थी विशेष प्रतिभा उनमें, वे ज्ञानरूप साकार थे।
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तेजस्वी थे , वर्चस्वी थे, महापुरुष थे परम मनस्वी,
उनका था व्यक्तित्व अलौकिक,कर्मयोग से हु्ए यशस्वी।
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भारत के प्रतिनिधि बनकर वे , अमेरिका में आए थे ,
जगा गए वे जन जन को, युग-धर्म बताने आए थे।
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सुनकर उनकी अमृत वाणी , सभी विदेशी चकित हुए,
हुए प्रभावित ज्ञान से उनके, अनगिन उनके शिष्य हुए ।
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भारत की संस्कृति का झंडा , तब जग में लहराया था,
अपने गौरव , स्वाभिमान का, हमको पाठ पढ़ाया था।
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आस्था, निष्ठा, आत्मज्ञान और, ब्रह्मज्ञान को कर उद्घाटित,
सब में वही आत्मा बसती, जन-सेवा को किया प्रचारित।
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आए थे “नरेन्द्र” बन कर जो, वही महाऋषि सिद्ध हुए,
दे “विवेक” और “आनन्द” सब को, विवेकानन्द प्रसिद्ध हुए।।
— शकुन्तला बहादुर