चिंतन

देश के विकास में बाधक सांसद

आज़ाद भारत को बहुत कुछ अंग्रेजों से एक अमानत के रुप में मिला , मसलन रेल,डाक,राष्ट्रपति भवन,संसद और साथ में मिली देश को खाने वाली व्यवस्था। एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सब कुछ नेताओं के हाथ में हो। इसमें सत्ताधारी नेताओं की तो पौ बारह हो जाते हैं। पूरे देश की व्यवस्था इन नेताओ के हाथ होती है, फिर चाहे बात समृद्धि की हो या फिर कानुन व्यवस्था की।

सरकारी कानुन ने इन नेताओं के लिए देश में बहुत कुछ दिया है। चुनाव लड़ने की गर्मी और माथापच्ची के बाद जीत के ईनाम के तौर पर कई सुविधाएं मिलती हैं। जिन्हें जनता अपना प्रतिनिधि कहती है वो चुनाव जीतने के बाद राजा बन जाते है।

और शुरु होता है इन कथित राजाओं की राज शाही। जिन्हें सुविधाओं के नाम पर बेमतलब के कई कमरों का बंगला मिलता है, जिसमें नौकर-चाकर, कुत्ते (विदेशी) घूमते रहते हैं।

मुफ्त बिजली,पानी,कार,ड्रायवर,अंगरक्षक,घुमने-फिरने का अलग कोटा वगैराह-वगैराह। इस चक्कर में सरकारी ख़जाना भी खुब खाली होता है। अब तो इनका वेतन भी खुब बढ़ा है पर ख़र्चा वेतन के आधार दिखाई नहीं देता।

सरकार हरेक सासंद को उनके क्षेत्रों के विकास के लिए करोड़ों देती है, कई क्षेत्रो में विकास भी दिखता है, लेकिन अधिकतर क्षेत्र आज भी उसी मूलभूत जरुरतों के लिए तरस रहे जिनके लिए 60 साल पहले तरसते थे। इस ओर न सराकार ही ध्यान देती है न ही मीडिया। क्षेत्रों के विकास के लिए मिले धन के विरुद्ध किए गए ऑडिट को सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाता? और अगर पैसे सही जगह खर्ज नहीं होता है तो संबंधित सांसद पर कार्रवाही क्यों नहीं होती?

विगत कुछ वर्षों में सांसदो की उपस्थिति संसद में कमती जा रही है,अगर होती भी है तो सदन की कार्यवाही स्थगित ही हो जाती है, इससे मुफ्त में करोड़ों खर्चा होता है। कार्यवाही में बाधक बनने वालों ओर अनुपस्थित रहने वालो से वेतन का हिस्सा क्यों नहीं काटा जाता? यही नही सरकारी मंत्री के साथ-साथ एक संयोजक तो डीजल,गैस पर सबसिडी खत्म करने की वकालत करते हैं। ये नेता कभी अपनी सुविधाएं कम करने की बात क्यों नही करते?

सांसदों को बड़े घरों की आवश्यकता क्यो है? सांसदों के लिए नियम क्यों नहीं बनाए जाते कि संसद न चलने की स्थिति में अपने-अपने क्षेत्रों में ही रहे ओर जनता से मुखातिब होते रहे। दिल्ली के बड़े इलाके में नेताओं की फौज है इनके आलीशान महलों को तोड़ कर चार-पांच मंजिला हॉस्टल क्यों नहीं बना दिया जाता ? बचे हुए इलाको में पार्क और कई मनोरंजक जगहें तैयार किए जा सकते हैं।

इस बढ़ती मंहगाई में भी इन सासदों को संसद भवन में सबसे कम कीमत पर खाना, गाड़ी के लिए सस्ती पेट्रोल इत्यादी मिलती है। दिल्ली जैसे मेट्रो बहुल इलाकों में सांसद प्रदूषण फैलाने का काम करते हैं। अब मेट्रो पूरे एनसीआर में फैल रहा है सासंदो का विश्राम गृह इन जगहों पर ही कर देना चाहिए ताकि मेट्रो भी चमकता रहे और देश भी।