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दिल्ली में देशद्रोह, केरल में हिंसाचार : वामपंथी प्रभाव

naxisप्रवीण दुबे
ऐसा लगता है कि केरल सहित तमाम दक्षिण के वामपंथी प्रभाव वाले क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते प्रभाव से कामरेडों की नींद उड़ी हुई है। यही वजह है कि ये कामरेड केरल जैसे राज्यों में राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगातार हमले कर रहे हैं। पिछले महीने पंपीसेरी में एक संघ कार्यकर्ता को मौत के घाट उतारा गया। इस घटना की जांच में जो चेहरे सामने आए हैं वह माकपा से जुड़े बताए जाते हैं। इन लोगों ने संघ कार्यकर्ता को पहले घेरा और फिर बमों से हमला कर उसे घायल कर दिया जिसकी कि बाद में मौत हो गई। यह कोई इकलौती घटना नहीं है । यह सिलसिला 1999 के पहले से ही चला आ रहा है। एक नहीं अनेक ऐसे उदाहरण हैं जब कम्युनिस्टों ने कई स्थानों पर संघ कार्यालयों में सामूहिक हमला बोलकर दहशत फैलाने की कोशिश की है। हमलों में कई स्वयंसेवकों की जान भी गई है। कौन भूल सकता है 1999 की उस घटना को जब भाजपा नेता केपी जयकृष्णन को माकपा कार्यकर्ताओं ने मार डाला था। ताजी घटना मंगलवार को सामने आई है जब कन्नूर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता एवी बीजू पर मंगलवार को दिनदहाड़े जानलेवा हमला बोला गया। यह हमला उस समय बोला गया जब बीजू स्कूली बच्चों को विद्यालय छोडऩे जा रहे थे। कम्युनिस्टों ने उन पर चाकुओं और तलवारों से वार किया। बीजू को बेहद गम्भीर अवस्था में कोझीकोड के अस्पताल में भर्ती कराया गया है। कम्युनिस्टों ने इस हमले में मानवीयता की हदों को किस तरह से पार किया इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस समय बीजू के ऑटो को घेरकर हिंसा का खूनी खेल खेला जा रहा था उस समय स्कूल के छोटे-छोटे बच्चे ऑटो में बुरी तरह सहमे हुए रो रहे थे। आखिर क्या हैं यह मानसिकता? इसे क्या कहा जाए? एक तरफ इसी वामपंथी मानसिकता से प्रेरित कुछ लोग देश की राजधानी दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में खुलेआम देशद्रोहिता पूर्ण गतिविधियों का संचालन करने के आरोप में चर्चा में हैं तो दूसरी ओर इसी वामपंथी विचारधारा के लोग केरल में राष्ट्रभक्त संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों पर लगातार हमले कर रहे हैं। यह भारत ही है जहां इस तरह की अराजक व अराष्ट्रवादी गतिविधियों को अंजाम देने के बावजूद भी वामपंथी विचारधारा को देश में अराजकता फैलाने की खुली छूट मिली हुई है। यदि और कोई देश होता तो इस तरह के हिंसाचार और राष्ट्रद्रोही गतिविधियों के आरोप में इनकी गतिविधियां बलपूर्वक रोकने के निर्देश सरकार दे देती। इसके बावजूद वामपंथी खुलेआम अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध का आरोप लगाकर आजादी-आजादी के नारे लगा रहे हैं। आखिर कब तक यह सब कुछ बर्दाश्त किया जाता रहेगा? कब तक केरल जैसे राज्यों में संघ स्वयंसेवकों की हत्या होती रहेगी? अब समय आ गया है कि हमारे देश के नीति निर्धारक वामपंथियों और राष्ट्रविरोधी ताकतों के षड्यंत्रों पर एक साथ माथा जोड़कर चर्चा करें। यह तय करना बेहद आवश्यक है कि जो लोग कश्मीर की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं, जो देश की रक्षा करने वाले सेना के जवानों तक पर बेहूदा आरोप लगाते हैं, जो खुलेआम भारतीय संविधान में निहित बातों का मखौल बनाते हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ हो या केरल हिंसा का खूनी खेल खेलते हैं उनके साथ क्या व्यवहार किया जाए, ऐसी विचारधारा और उससे जुड़े लोगों को कैसे रास्ते पर लाया जाए?