राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी से बढ़ता आतंकवाद

Terrorism in pakistan
हमारे देश में मुस्लिमों की जिहादी मनोवृत्ति को उकसाकर जिहाद के नाम पर आतंकवादियों का जाल बिछाकर उनके द्वारा जगह-जगह बम विस्फोट करके निर्दोष हिन्दुओं को लहूलुहाकन करके व नकली नोटो द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को चैपट करने वाले इकराम काना, खूंखार आतंकवादी अब्दुल करीम टंुडा व इंडियन मुजाहीद्दीन के सरगना यासीन भटकल के पकडे जाने को देश की खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों के लिए बडी कामयाबी माना जा रहा है। परन्तु इनके पकडे जाने मात्र से देश में होने वाली आतंकी घटनाआंे को क्या रोका जा सकता है? नहीं कदापि नहीं। क्योंकि ये तो मात्र आतंकवादियों को कंट्रोल करने वाली पाकिस्तान की खुफिया एजंेसी आईएसआई के मोहरे भर है। टुंडा का जितना उपयोग आईएसआई कर सकती थी उतना करने के बाद उसकी ढ़लती उम्र व बीमारी को ध्यान में रखकर उसे उसी देश में अपना इलाज कराने के लिए भेज दिया, जिसको वह जिंदगी भर बम-विस्फोटों द्वारा जख्म ही जख्म देता रहा। परन्तु इसमें संदेह भी है कि कहीं ये शातिर जिहादी टुंडा अपनी अंतिम सांस तक अस्तपाल या जेल में पडे रहकर भी अपने आकाओं के लिए आतंकवादियों के स्लीपिंग सेलों को तैयार करता रहेगा।

हमारे देश का खुफिया व सुरक्षा तंत्र इतना मजबूत व चुस्त है कि यदि उनको इन आतंकवादियों को पकडने व खत्म करने की पूरी छूट दे दी जाए तो देश में कोई भी आतंकी नहीं बचेगा न ही पाकिस्तान किसी आतंकी को भारत में दाखिल कर पायेगा। परन्तु दुर्भाग्यवश हमारे राजनेताओं में देश की रक्षा करने की इच्छाशक्ति की भावना की अत्यन्त कमी होने के कारण आज देशवासी आतंक के साये में जीने को मजबूर हो चुके है। इस इच्छाशक्ति की कमी होने का मुख्य कारण देश में व्याप्त मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति है।

राजनैतिक दबाव व मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ही सुरक्षा एजेंसियां इन आतंकवादियों को पकड़ नहीं पाती है। क्योंकि पकडे जाने वाले आतंकी मुस्लिम समुदाय के ही होते है जिसके कारण सुरक्षा एजंेसियों पर इनको न पकड़ने का दबाव होता है। आतंकवाद से निपटने के लिए टाडा व पोटा जैसे सख्त कानून थे। जिसमें अधिकतर पकडे गये अपराधी एक विशेष समुदाय से ही आते थे। क्योंकि इन कानूनों के अंतर्गत होने वाले अपराधों में अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोग ही संप्लित पाये जाते थे। परन्तु यूपीए सरकार ने एक सम्प्रदाय को खुश रखने के लिए उनके द्वारा किए गये अपराधों को अनदेखा करते हुए इन कानूनों को रद्द कर देश की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है।

देश में ईमानदार, कर्मठ, साहसी व देशभक्त प्रशासनिक अधिकारियों की कोई कमी नहीं है परन्तु वे भी राजनैतिक इच्छाशक्ति के आगे बेबस हो चुके है। यदि वह किसी भी प्रकार से कार्य करते है तो राजनेता किसी धर्म विशेष या व्यक्ति विशेष के तुष्टिकरण के लिए इन आधिकारियों को काम नहीं करने देते, इनके विरुद्ध किसी न किसी बहाने से विभागीय कार्यवाही की जाती है, या इनका ट्रांसफर कर दिया जाता है अथवा इनको निलम्बित कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए 80-90 के दशक में पंजाब को आतंकवाद से मुक्त करने वाले अधिकतर पुलिस अधिकारियों को किसी न किसी झूठे आरोप में जेल में डाल दिया गया। तीन राज्यों में आतंक के चेहरे सोहराबुद्दीन को मारने वाले पुलिस अधिकारियों को केन्द्र सरकार ने जेल में डाल दिया है, लश्कर-ए-तैयबा की घोषित आतंकवादी इशरत जहाँ को मारने वाले आईपीएस अधिकारियों को जेल में डाल रखा है। जम्मू-कश्मीर में 100 से अधिक खूंखार आतंकवादियों को मारने वाले सब-इंस्पेक्टर शिवकुमार शर्मा को झूठे आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया है। इन अधिकारियों द्वारा अपने संवैधानिक कत्र्तव्यों का पालन करने के उपरांत भी इनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया जाता है जिसके कारण सभी निष्ठावान अधिकारियों का मनोबल टूटता है और उनमें ये डर व्याप्त हो चुका है कि यदि हमने कोई सख्त कार्यवाही की तो हमें भी जेल में डाल दिया जायेगा जिसके कारण वे अपनी कर्तव्यपरायणता से दूर होते जा रहे हैं। आज आतंकवादी संघर्ष केवल वोट बैंक की राजनीति का शिकार बन गया है अतः आतंकवादियों को पकड़ने व आतंकवादी विचारधारा को नष्ट करने के लिए दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति की परम आवश्यकता है।

विनोद कुमार सर्वोदय

2 COMMENTS

  1. आज भारत में जो भी आतंकवाद है स्व-स्फूर्त नहीं. कोई न कोई बाहरी राज्य उसका कारक तत्व है. वे देश आतंकवाद को एक अपने दूरगामी अभीष्ट हासिल करने के लिए एक हतियार के रूप में प्रयोग कर रहे है. ऐसे में किसी भी सरकार के पास दृद्ध इच्छा शक्ति का होना परम आवश्यक है.

  2. दुर्भाग्यवश संसार में आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार भारत ही है। द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गये १०० करोड़ लोगों में २७ लाख भारतीय सेना के थे जिनकी भर्त्ती गान्धी की अहिंसा नीति के द्वारा की गयी थी कि केवल अंग्रेज ही विश्व को जर्मनी के साम्राज्यवाद से मुक्ति दिला सकते हैं। इस अहिंसा नीति का आधार था कि केवल जर्मनी साम्राज्यवादी है। विश्व के आधे भाग पर प्रभुत्व रखने वाला २० करोड़ लोगों को गुलाम बनाने वाला तथा अमेरिका आस्ट्रेलिया की पूरी आबादी का (३ पीढियों के प्रायः ८० करोड़ व्यक्ति) नरसंहार करने वाला ब्रिटेन ही एकमात्र अहिंसक देश है, साम्राज्यवादी नहीं है। सत्याग्रह का भी यही आधार था कि अंग्रेज केवल अहिंसा की भाषा समझते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के तुरत बाद भारत विभाजन में ३० लाख हिन्दू मारे गये जिनकी जिलावार सूची कौलिंस और लेपियर ने अपनी पुस्तक में दी है। उसके अतिरिक्त १८० लाख शरणार्थी भी भारत में आये। उसके बाद विभिन्न चरणों में प्रायः ५० लाख शरणार्थी पाकिस्तान तिब्बत, बंगलादेश से आये। विभाजन में हिन्दुओं की विशालतम नरहत्या से अन्तोष नहीं हुआ तो तुरत तिब्बत चीन को सौंप दिया गया जहां चीन ने ३ वर्षों में ३० लाख लोगों की हत्या की जिसके लिये कांग्रेस और कम्यूनिस्ट चीन को अपना भाई मानते रहे। इस प्रकार जहां बाकी विश्व में अणुबम के प्रयोग द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में केवल ७३ लाख व्यक्ति मारे गये, केवल भारत में अहिंसा द्वारा ८७ लाख हिन्दू मारे गये तथा २ करोड़ से अधिक विस्थापित हुये। इसके बाद छिटपुट घटनाओं में प्रतिवर्ष हजारों व्यक्ति इस्लामी आतंकवाद में मारे जा रहे हैं, जिनके लिये कभी कभी कभी पाकिस्तान को दोष दिया जाता है पर उसके तुरत बाद भारत के नेता उनसे दोस्ती के लिये बेचैन हो जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान में आतंकवाद को पूरा समर्थन नहीं है। पाकिस्तान सरकार भारत पर गुप्त आक्रमण के लिये इनका प्रयोग करती है, पर उनको आपस में लड़ा भिड़ा कर मरवाती भी रहती है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां आतंकवादी देवदूत की तरह पूजे जाते हैं और उनको गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी तुरत जेल में डाले जाते हैं। अतः काम के आधार पर भारत के अतिरिक्त विश्व में कोई भी अन्य आतंकवादी देश नजर नहीं आता।

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