भारत और त्रिनिदाद — दो तट, एक आत्मा।

सचिन त्रिपाठी

जब भारत की पवित्र गंगा के घाटों से कुछ गरीब और मजबूर हाथ नावों में सवार हुए थे, तब उन्हें नहीं पता था कि उनके भाग्य की पतवार किसी और ही तट पर लगने वाली है। त्रिनिदाद और टोबैगो कैरेबियन सागर का यह छोटा सा द्वीपीय देश भारत से हजारों मील दूर होते हुए भी, भारतीय हृदय और इतिहास से गहराई से जुड़ा है। यह रिश्ता केवल कूटनीति या व्यापार का नहीं, बल्कि एक सामूहिक स्मृति और साझा संस्कृति का है।

इस रिश्ते की शुरुआत 30 मई 1845 को हुई, जब ‘फाटेल रोज़ैक’ नामक जहाज भारत से 225 श्रमिकों को लेकर त्रिनिदाद पहुंचा। ब्रिटिश साम्राज्य ने दास प्रथा समाप्त होने के बाद भारत से मजदूरों को गिरमिटिया व्यवस्था के तहत भेजना शुरू किया। 1917 तक लगभग 1.5 लाख भारतीयों को त्रिनिदाद लाया गया। वे खेतों में गन्ना काटते थे पर अपने साथ अपने रामचरितमानस, भोजपुरी लोकगीत, त्योहारों की परंपराएं और देवताओं की मूर्तियां भी लाए।

वो परदेश को देश बनाने की यात्रा थी। मंदिर बने, मस्जिदें खड़ी हुईं, दीवाली और होली मनाई जाने लगी। त्रिनिदाद की माटी में तुलसी और नीम के पौधे पनपने लगे। आज त्रिनिदाद में 500 से अधिक मंदिर, रामलीला मंडलियां, और भोजपुरिया संस्कृति की झलक हर कोने में देखी जा सकती है।

भारत और त्रिनिदाद का यह रिश्ता केवल सांस्कृतिक नहीं, राजनीतिक भी बना। बासदेव पांडे, एक गिरमिटिया वंशज, त्रिनिदाद के प्रधानमंत्री बने (1995–2001)। बाद में कमला प्रसाद बिसेसर भी प्रधानमंत्री बनीं। आज वहां की कुल जनसंख्या लगभग 14 लाख है, जिसमें से 37% लोग भारतीय मूल के हैं। वे राजनीति, शिक्षा, चिकित्सा, और मीडिया में प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं।

कूटनीतिक दृष्टि से भारत और त्रिनिदाद के संबंध 1962 में त्रिनिदाद की स्वतंत्रता के साथ ही औपचारिक रूप से स्थापित हुए। पोर्ट ऑफ स्पेन में भारतीय उच्चायोग न केवल राजनयिक काम करता है बल्कि हिंदी, योग, भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य को भी बढ़ावा देता है।

2025 में इस संबंध ने एक नई ऊंचाई तब छुई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में त्रिनिदाद की ऐतिहासिक यात्रा पर गए। उन्होंने वहां की संसद को संबोधित किया और देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “ऑर्डर ऑफ द रिपब्लिक ऑफ त्रिनिदाद और टोबैगो” प्राप्त किया। यह सम्मान केवल भारत के प्रधानमंत्री को ही नहीं बल्कि उस पूरी ‘गिरमिटिया’ विरासत को समर्पित था जो शोषण से संस्कृति तक का सफर तय कर चुकी है।

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा केवल औपचारिकता नहीं थी, वह भारत की सॉफ्ट पावर, डायस्पोरा नीति और ग्लोबल साउथ लीडरशिप की स्पष्ट घोषणा थी। इस दौरान भारत और त्रिनिदाद के बीच 6 अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए जिनमें डिजिटल गवर्नेंस, स्वास्थ्य, कृषि, संस्कृति, खेल और शिक्षा शामिल हैं।

भारत ने त्रिनिदाद को 2000 लैपटॉप, आधुनिक स्वास्थ्य उपकरण, और डिजिटल एजुकेशन प्लेटफार्म प्रदान किए। साथ ही, भारतीय मूल के नागरिकों के लिए ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ इंडिया सुविधा अब छठवीं पीढ़ी तक लागू कर दी गई है जिससे त्रिनिदाद में बसे भारतीय मूल के लोग अपने पुरखों की धरती से और मजबूती से जुड़ सकें।

इस यात्रा के दौरान त्रिनिदाद ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की पूरी तरह से समर्थन की भी घोषणा की। यह भारत के लिए एक बड़ी रणनीतिक कूटनीतिक विजय है हालांकि, विरोध के स्वर भी उठे। कुछ स्थानीय संगठनों ने भारत में मानवाधिकार स्थिति को लेकर आपत्ति जताई पर ये स्वर सीमित रहे। बहुसंख्य भारतीय समुदाय और सरकार ने इस दौरे को एक सांस्कृतिक उत्सव की तरह अपनाया।

भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ यहां खुलकर चमकी.  योग दिवस, हिंदी सप्ताह, भारतीय फिल्म महोत्सव और रामायण मंचन जैसे कार्यक्रमों ने त्रिनिदाद की नई पीढ़ी को फिर से भारत की ओर मोड़ा है। हिंदी भाषा अब वहाँ के स्कूलों में एक वैकल्पिक विषय बन चुकी है।

भारत और त्रिनिदाद का संबंध आज केवल इतिहास की विरासत नहीं रहा, वह एक जीवंत, क्रियाशील और गहराता हुआ संवाद है। कभी जो रिश्ता ‘आंसुओं’ और ‘अनुबंधों’ से शुरू हुआ था, वह आज पुरस्कारों, समझौतों और विश्वास के पुल से जुड़ा है। यह संबंध बताता है कि भारत की आत्मा कहीं भी हो, वह मिटती नहीं, वह पनपती है। त्रिनिदाद की मिट्टी में गंगा की गूंज, तुलसी की खुशबू और रामायण की चौपाइयां आज भी जीवित हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की हालिया यात्रा ने इस पुल को नया रंग दिया है। अब यह सिर्फ संस्कृति की नहीं, तकनीकी, शिक्षा, वैश्विक नेतृत्व और विकास की साझेदारी बन चुकी है और यह साझेदारी आने वाले दशकों में भारत की वैश्विक भूमिका को और सशक्त बनाएगी।

सचिन त्रिपाठी 

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