विविधा

आतंकवाद समर्थक के रूप में उभरता भारत

मयंक चतुर्वेदी

विश्व के सभी मुस्लिम बाहुल्य एवं अन्य देशों में भले ही ओसामा बिन लादेन के समर्थन में नमाज अता नहीं की गई हो, किन्तु आतंक के इस जहरीले नाग को अमेरिका ने जब अपनी सैन्य, कूटनीति और गुप्तचर शक्ति के बल पर कुचला तो विश्व ने देखा कि भारत के अंदर जगह-जगह उसकी आत्मा की शांति के लिए विशेष नमाज का आयोजन किया गया। एक आतंकवादी के समर्थन में उसकी आत्मा की शांति की बात करना जिसने कि बारूद के ढेर पर न जाने कितने बेहुनाहों को मौत के घाट उतार दिया, उसके समर्थन में नमाज की यह व्यवस्था साफ संकेत दे रही है कि भारत में अन्य देशों की अपेक्षा इस्लामिक कट्टरपंथी तेजी से बढ़ रहे हैं, जो कि आतंकवादी गतिविधियों को इस्लाम के विस्तार के लिए आवश्यक मानते हैं।

जम्मू-कश्मीर में तो इसके कारण एक बार फिर स्थिति भारतीय सैनिकों की सूझ-बूझ के कारण बेकाबू होने से बच गई। लेकिन देश के अन्य रायों में इस विशेष नमाज पढ़ने के समय जो अन्य धर्मावलम्बियों पर भय का वातावरण बना, उससे यही संकेत गया कि भारत में आज न केवल आतंक का बल्कि आतंकवादियों का विस्तार वृहद स्तर पर चल रहा है। कोलकता में टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम मौलाना नूरुर रहमान बरकती से लेकर चेन्नई की बड़ी मस्जिद, लखनऊ, हैदराबाद में मौलाना मोहम्मद नसीरुददीन के नेतृत्व में उजाले शाह ईदगाह पर हुई विशेष दुआ, जम्मू-कश्मीर की अनेक मस्जिदों तथा देश के अन्य प्रमुख शहरों व रायों में जिस तरह इस्लाम के अनुयायियों ने आतंक का पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन के लिए विशेष नमाज अता की! आखिर इनका इसके अलावा क्या आशय निकाला जाय कि जो सभी लोग इसमें शामिल हुए वह ओसामा के कार्य को उचित मानते थे? यदि ओसामा सही है तो फिर ओबामा गलत ? जिसने अपने देश के नागरिकों की मौत का बदला ओसामा की मौत से लिया।

वास्तव में विश्व व्यापार केन्द्र न्यूयार्क के दोनों टावरों को 9-11 के दिन विध्वंस करके अलकायदा ने अमेरिका को झकझोर कर रख दिया था। इस घटना के बाद ही सही अर्थों में यूरोपिय देश विशेषकर अमेरिका ने आतंकवाद के दंश का अनुभव बहुत नजदीक से किया। इसके पहले तक वर्षों से इस जहर को पी रहे भारत की उन सभी बातों को अमेरिका खारीज करता रहा है जिसमें अनेक बार इस्लामिक हिंसा और आतंक के कारण सैकडों भारतीय अपनी जान गवा चुके थे। 9/11 की घटना के बाद ही इस्लाम और इससे जुड़े आतंकवाद पर सैकड़ों अध्ययन हुए व खुली चर्चा शुरू हुई।

वस्तुत: इसकी गहराई में जायें तो जिहाद और इस्लामिक आतंकवाद की जड़ में कुरान की वो 25 आयते हैं जो अल्लाह पर यकीन नहीं करने वालो की हत्या को जाया ठहराती हैं। मिश्र और इजराईल के अलावा अन्य किसी देश में मूल ग्रंथ कुरान की इन आयतों में संशोधन नहीं किया गया है। एकाधिक देश में इन आयतों पर रोक लगी हुई है। ओसामा-बिन-लादेन और उन जैसे लोग पूरे विश्व में जहाँ भी कभी इस्लामिक राय रहा वहाँ तुरंत इस्लाम का राय चाहते हैं। यह आयते ऐसे लोगों के लिए शस्त्र का कार्य करती हैं। इनके सहारे जेहादी आतंकवादी दुनियाभर के मुसलमानों को एकजुट करने का स्वप्न देखते हैं। इसीलिये ही तो अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करने वाले मोहम्मद अट्टा और मरवान अल किसी अभाव से पीड़ित होकर धन के लालच में या अन्य किसी भौतिक संसाधन का स्वप्न देखकर आतंकवादी हिंसा को अंजाम नहीं देते, न ही किसी ने इनका राजनैतिक उत्पीड़न किया, जिसका बदला देने के लिये यह सैकड़ों निरीह लोगों की जान लें। ये पढ़े-लिखे तकनीकी के छात्र नौजवान हैम्बर्गर में एक अपार्टमेंट में रहकर सारी सुख-सुविधाओं का भोग करते है, किन्तु जैसे ही यह हिंसक, इस्लामिक संप्रदाय के संपर्क में आते हैं इस्लाम और मजहबी अधिनायकवादी विचारधारा के सिपाही बन जाते हैं।

विश्व में सबसे बड़ा मुस्लिम देश इंडोनेशिया है। उसके बाद दुनिया का दूसरा बड़ा मुस्लिम देश भारत है जहाँ 15 करोड़ से अधिक मुसलमान रहते हैं। भारत में पिछले 63 साल से सफल लोकतंत्र में मुसलमानों को वह सभी अधिकार मिले जो एक लोकतंत्रतात्मक गणराय में आम नागरिक के अधिकार हैं। भारत में मुस्लिम पुरूषों के अलावा महिलाएँ न केवल राजनीत के सर्वोच्च शिखर पर पहुँची हैं बल्कि संवैधानिक न्याय प्रणाली के तहत सर्वोच्च न्यायालय की जज तक बनी हैं। जबकि इस्लामिक देशों में ऐसा नहीं है, वहाँ महिलाओं को पुरूषों के बराबर अधिकार नहीं दिए गए हैं।

इसके अलावा इस्लामिक देशों में जो अधिकार अल्लाह पर ईमान रखने वालों के लिए मुकर्रर किये गये, वह अधिकार अन्य किसी धर्माम्वलंबियों के लिए नहीं हैं। इस्लामिक देशों में अन्य धर्मों पर आस्था रखने वाले अपने धार्मिक प्रतीक चिन्ह तिलक, चोटी, पगडी आदि का खुलेआम प्रदर्शन नहीं कर सकते। भारत और इस्लामिक देशों में नागरिक समानता के स्तर पर ऐसे अनेक भेद हैं, जो अपने नागरिकों में केवल धर्म के आधार पर अंतर करते हैं।

बावजूद इसके भारतीय मुसलमानों में अलकायदा और सिमी जैसे आतंकवादी संगठनों के प्रति लगाव और सहानुभूति का होना समझ के परहे है। जिन संगठनों का भारत की संवैधानिक न्याय प्रणाली पर विश्वास नहीं, केवल शरीयत के कानून में ही विश्वास है। ऐसे लोगों के प्रति अपना विश्वास प्रदर्शित करना हिन्दुस्तान के उन मुसलमानों को कटघरे में जरूर खड़ा करता है, जो भारत की इस संवैधानिक व्यवस्था में प्रदत्त उन सभी अधिकारों का उपभोग तो करते हैं, जो उन्हें अल्पसंख्यक होने के नाते प्रदान किये गये हैं, किन्तु एक राष्ट्र के नागरिक होने के नाते अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करना चाहते।

गोधरा नरसंघार, मुम्बई ब्लास्ट, दिल्ली, ब्लास्ट, बनारस ब्लास्ट, पूर्व उत्तर प्रदेश में हुए रेल बम बिस्फोट, कश्मीर ब्लास्ट जैसी अनेक आतंकी घटनाएँ हैं जिनमें जिहादी किस्म के भारतीय मुसलमानों ने कई निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया था। आज भी भारत के मुस्लिम बहुल रायों व क्षेत्रों में अलकायदा, सिमी जैसे संगठनों से जुड़ी सामग्री खुले आम पढ़ने और इलेक्ट्रॉनिक रूप में देखने को मिल जाती है। क्या इसके लिए यह माना जाय कि भारत में ऐसा देवबंद,वहाबी, बरेलवी जैसे इस्लामिक विद्यालयों के कारण हो रहा है या इसके अन्य कारण जिम्मेवार हैं। भारत में पिछले वर्षों में 2 लाख से अधिक लोग इस्लामिक आतंकवाद की भेंट चढ़ चुके हैं। अकेले जम्मू-कश्मीर में ही 80 हजार से अधिक निर्दोष लोग मारे जा चुके हैं। जिहाद आधारित इस आतंकवाद से देश की आंतरिक सुरक्षा, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था और धार्मिक मूल्यों को जो क्षति पहुँचती है उसका तो आंकलन ही नहीं किया जा सकता।

आज यह बात भारत के प्रत्येक मुसलमान को सोचने की जरूरत है कि आखिर क्या कारण है जो उनके समुदाय के लोग देश की ओर से मिलने वाली हर सुविधा के बावजूद गैर इस्लामिक लोगों के प्रति कट्टरता और नफरत का दृष्टिकोण पाल लेते हैं। भारत में मिले सभी अधिकारों के बावजूद क्यों वह विशेष दर्जा रखना चाहते हैं। आखिर बार-बार उनके समान नागरिक-समान आचार संहिता का विरोध करने के पीछे का उद्देश्य क्या है। जबकि दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मुस्लिम जनसंख्या वाले देश भारत में उन्हें वो सब अधिकार मिले हुए हैं, जिनकी आवश्यकता एक सुखद समाज के लिए अपरिहार्य है। जिस तरह ओसामा-बिन-लादेन की मृत्यु के बाद से समाचार आ रहे हैं और देश भर में उसके समर्थन में मुस्लिम लोग खड़े हो रहे हैं वो अनायास ही अन्य धर्माम्वलम्बियों के अंदर इस तरह के कई प्रश् खड़े कर रहे हैं। आखिर क्यों भारत में किसी आतंकवादी के मारे जाने पर इतना शोक व्यक्त किया जा रहा है। आतंकवादी या जिहादी का न कोई धर्म होता है, न कोई सकारात्मक विचार दर्शन, उसका उद्देश्य केवल आतंकी साम्राज्‍य की स्थापना ही है।