भारत की आजादी के लिए हुई आजाद हिंद फौज की स्थापना

21 अक्टूबर पर विशेष:-

मृत्युंजय दीक्षित

21 अक्टूबर का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में एक ऐतिहासिक महत्व का दिन है। भारत के महान सपूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आज ही के दिन सिंगापुर में आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी। जिसमें उन्होने जापान का सहयोग भी लिया था। नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने आज ही के दिन स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार भी स्थापित की थी। जिसे जापान सहित विश्व के नौ देशों की मान्यता भी प्राप्त हुई थी। ये वे सभी देश थे जो कि तत्कालीन अंग्रेजों के घोर विरोधी हो चुके थे।नेताजी इस अंतरिम सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री स्वयं बने। नेताजी आजाद हिन्द फौज के सेनापति भी बने। इस सेना के गठन व

प्रशिक्षण में तत्कालीन जापान सरकार ने उनको भरपूर मदद दी। आजाद हिंद फौज के प्रारम्भिक गठन के समय जापान में अंग्रेजों की फौज से पकड़े गये भारतीय युद्धबंदियों को आजाद हिंद फौज में भर्ती किया गया। महिलाओं के लिये झांसी की रानी नाम से एक रेजीमेंट बनायी गयी। पूर्वी एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण किये और उन्होने लोगों से आजाद हिंद फौज में शामिल होने की अपील की जिसमें उन्होने सेना में भर्ती होने वाले लोगों के परिवारों की सहायता के लिये आथिक मदद देने का भी ऐलान किया। उन्होंने लोगों का आवाहन किया कि, ”तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।“ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के सहयोग से उनकी आजद हिंद फौज ने भारत पर हमला बोल दिया और उन्होनें ”दिल्ली चलो“ का नारा दिया । यह हमला बहुत ही जोरदार था। नेताजी की सेना ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह पलक झपकते ही जीत लिया। अंडमान व निकोबार को जीतने के बाद नेताजी वहां पर गये। नेताजी ने इन द्वीपों का नामकरण शहीद और स्वराज किया। आजाद हिंद फौज ने अगला निशाना इम्फाल व कोहिमा को बनाया। लेकिन यहां पर उन्हें अंग्रेजों से काफी जमकर लोहा लेना पड़ गया। यहाँ पर अंग्रेज बहुत ही शक्तिशाली पड़ गये। तकनीक से भी और सैनिकों की संख्या से भी। इम्फाल और कोहिमा से आजाद हिंद फौज को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। जब यहां पर आजाद हिंद फौज की सेना अपने कदम पीछे खींचने लगी तो जापान की सेना ने नेताजी को भगाने की व्यवस्था की थी। लेकिन नेताजी आसानी से पीछे हटने वाले नहीं थे।वे झांसी की रानी रेजीमेंट के साथ आगे बढ़ते रहे। इसी बीच एक और दुर्भाग्यपूर्ण घटना यह घटित हुई की द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की करारी हार हो गई। जिसके कारण अब जापान का सहयोग मिलना कठिन हो गया था। 7 जुलाई 1944 को नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने रेडियो से गांधीजी को संबोधित करते हुए उनसे आशीर्वाद मांगा। इस प्रकार यह नेताजी ही थे जिन्होने सर्वप्रथम महात्मा गांधी को सार्वजनिक रूप से राष्ट्रपिता कहा।यहां पर इतिहासकारों का मत है कि चूंकि गांधी जी अहिंसावादी विचारधारा के समर्थक और नरम दल के विचारों के समर्थक थे। इसलिए उन्होनें कभी भी हिंसावादी विचारों का पूरी तरह से खुलकर समर्थन नहीं किया। यदि गांधीजी नेताजी के तत्कालीन प्रयासों का समर्थन कर देते तो यह देश तभी आजाद हो गया होता। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। तब नेताजी ने अपना मिशन नहीं छोड़ा और उन्होनें तत्कालीन अंग्रेज विरोधी रूस सरकार सहयोग प्राप्त करने का प्रयास किया। लेकिन बेहद दुर्भाग्यवश जब 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाइ जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे इस यात्रा के दौरान कहीं लापता हो गये। इस दिन के बाद वे कही भी दिखाई नहीं दिये। साथ ही इतिहास में यह दिन एक बेहद खराब दिन के रूप में स्थापित हो गया। नेताजी ने भारत की आजादी का सपना देखा था तथा उसे पूर्ण करने के लिए उन्होने भरसक प्रयास भी किये। आजाद हिंद फौज के चार तमगों का भी उल्लेख मिलता है जिनके नाम हैं -शेरे हिंद, सरदारे जंग, वीरे हिंद, शहीदे भारत। आजाद हिंद फौज का अपना तराना भी था जिसका शीर्षक था “कदम कदम बढाये जा ख़ुशी के गीत गाये जा”। इस तराने की अपील बहुत ही मार्मिक और सैनिकों का मनोबल बढ़ाने वाली होती थी। नेताजी ने आजाद हिंद फौज को “जयहिंद” का नारा दिया। जयहिंद भारत में प्रचलित एक देशभक्ति पूर्ण नारा है। जो कि भाषणों तथा संवादों में देशभक्ति प्रकट करने के लिये दिया जाता है जिसका अर्थ है ”भारत की विजय“ । यह नारा क्रांतिकारी चम्पक रमण पिल्लई द्वारा दिया गया था जिसका बाद में नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा आजाद हिंद फौज के युद्धघोष के रूप में प्रचलित किया गया। इस प्रकार नेताजी ने देश की आजादी की लड़ाई को भी एक नई दिशा प्रदान की थी। यदि उनकी इस लड़ाई को तत्कालीन कांग्रेस का भी पूर्ण समर्थन प्राप्त हो जाता तो आज देश का इतिहास कुछ और ही होता।

 

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