गहन अंधकार को भी मिटाने वाला प्रकाश पर्व: दीपावली

मृत्युंजय दीक्षित

भारतीय संस्कृति पर्वों की संस्कृति है। हमारी पर्व परम्परा में पांच दिवसीय दीपावली पर्व का विशिष्ट स्थान है।दीवाली शब्द का अर्थ है “दीपों की पंक्ति, दीपों की माला।“ दीपावली का पर्व कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है।अमावस्या की अंधकारपूर्ण रात्रि में प्रकाश का उत्सव मनाकर जनमानस ने प्रकाश की महत्ता को ग्रहण करता है। दीपावली का पर्व क्यों और कैसे प्रारंभ हुआ इस विषय पर अनेक प्रकार की कथाएं प्रचलित हैं। आमतौर पर समाज में यह धारणा है कि भगवान श्रीराम अपना वनवास पूरा करके रावण सहित भयंकर राक्षसों का वध करके इसी दिन अयोध्या वापस आए थे। अयोध्या वासियों ने अपनी प्रसन्न्ता का इजहार करने के लिए पूरी अयोध्या को दीपकों से सजाया था। उसी दिन से दीपावली का पर्व मनाये जाने की परम्परा प्रारम्भ हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह का रूप धारण करके हिरण्यकश्यप का वध किया था। और भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। इसके अतिरिक्त एक मान्यता यह भी है कि जब श्रीकृष्ण ने नरकासुर जैसे आततायी का वध किया एवं उसके कारागार में बंद 16 हजार कन्याओं का उद्धार किया तब नगरवासियों ने दीप जलाकर अपना उल्लास प्रकट किया।

दीपावली का पर्व सिर्फ एक दिन में ही समाप्त नहीं हो जाता अपितु यह अनेक पर्वों को अपने साथ लेकर आता है।कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को प्रातः तेल स्नान किया जाता है व्यापारी वर्ग वर्ष की समाप्ति पर हिसाब- किताब खत्म करके सायंकाल यमराज को दीपदान करते हैं। रात्रि के प्रथम प्रहर में आरोग्य के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है। इस दिन लोग नये बरतन आदि खरीदते हैं। घर, दुकान, कार्यालयों आदि की साफ सफाई की जाती है। बाजार की रौनक इस दिन देखने वाली होती है। एक प्रकार से यह त्यौहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। इस दिन घर में लक्ष्मी का निवास भी माना जाता है। पुराणों के अनुसार धन्वनंतरि वैद्य समुद से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए धनतेरस को धन्वंतरि जयंती भी कहते है। चतुर्दशी के दिन तेल मालिश कर स्नान करने सिर पर अपामार्ग की टहनी को घुमाने यम के लिए तिलयुक्त जल के तर्पण और यम के विभिन्न सात या चौदह नाम लिये जाने का प्राविधान है। इसी दिन सायंकाल मठों एवं मंदिरों में तथा घरों में दीप प्रज्जवलीत किये जाते हैं।सर्वप्रथम चार दीपों को प्रज्जवलीत कर यम देवता को समर्पित कर दिया जाता है। अमावस्या का दिन सर्वाधिक महत्व का है। प्रातःकाल तेल स्नान दरिद्रता को दूर भगाने के लिए लक्ष्मी पूजन का विधान है। भविष्योत्तर पुराण के अनुसार अमावस्या को अभ्यंग स्नान, देव- पितरों की पूजा पार्वण श्राद्ध, पुरोहित भोजन, नृत्योत्सव,तम्बूल सेवन रेशमी वस्त्रों के धारण का विधान है। इस दिन स्नान के पश्चात् पितरों का पूजन- तर्पण भगवती लक्ष्मी का शोडपोचार पूजन , भगवान गणेश लक्ष्मी की नवीन मूर्तियों की पूजा,तथा वरूण देव की पूजा के साथ नवग्रह अष्टसिद्धि महाकाली सरस्वती तथा कुबेर की पूजा का विधान है।इन सबके बाद दीप मालिका का पूजन किया जाता है। रात्रि जागरण करने के पश्चात् अगले दिन सूर्योदय का दर्शन अवश्य किया जाता है। दीपावली के पश्चात् कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की अत्यंत शुभ तिथियों में एक है। उस दिन प्रातःकाल तेल स्नान कर बलिपूजन किया जाता है। इस दिन दिया गया दान अक्षयदान कहलाता है और विष्णु को प्रसन्न करता है। पुराणों के अनुसार शिव- पार्वती ने इसी दिन जुआ खेला था।इसलिए आज भी घरों में जुआ खेलने का बड़ा प्राविधान है लेकिन समय के अनुसार इसका स्वरूप बिगड़ गया है। बलिपूजा, दीपदान, पशुओं की पूजा, गोवर्धन पूजा, मार्गपाली बंधन, नव वस्त्र धारण का महत्व इसी दिन है। अगले दिन चन्द्र दर्शन करके एवं भाईयों द्वारा विवाहित बहनों को सम्मनित करने का भी महत्व है। शाम को यम देवता को चार दीपक जलाकर समर्पित किए जाते हैं। भाई- बहन के स्नेह का प्रतीक यह त्यौहार भाई दूज कहलाता है और इसी के साथ पांच दिवसीय दीपावली का पर्व सम्पन्न होता है।

दीपावली के दिन कई महत्वपूर्ण घटनाएं भी घटित हुईं हैं। जैनधर्म के संस्थापक भगवान महावीर तथा कवि संत रामतीर्थ का महानिर्वाण भी इसी दिन हुआ था। श्रमण भगवान महावीर जैसे लोकोत्तर चरित्र वाले महापुरूष इस धरती पर यदा- कदा ही जन्म लेते हैं। ऐसे चरित्र के महामानव किसी एक जाति या समाज के न होकर सम्पूर्ण संसार के कल्याणकारी होते हैं। सिक्खों के लिए भी यह दिन काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मंदिर का शिलन्यास हुआ था। इसी दिन सिखों के छठवें गुरू हरगोविंद जी को जेल से रिहा किया गया था। उस समय सिख समुदाय ने अपनी प्रसन्नता का इजहार किया था । नेपालियों के लिए यह त्यौहार इसलिए महान है क्योंकि इसी दिन नेपाल संवत् प्रारम्भ हुआ था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों ही दीपावली के दिन हुए थे। वैसे तो दीपावली का मूल प्रारम्भ रामायणकाल से ही माना गया है। आज जबकि सारा संसार संकटों से जूझ रहा है, सर्वत्र हिंसा और अराजकता का बोलबाला है तब इन विशम परिस्थितियों में उपर्युक्त सभी संतों का जीवन व उपदेश समाज के कल्याणकारी हो सकते है।

दीपावली के दिन तांत्रिक अनुष्ठनों का भी बड़ा महत्व है।इसी दिन लोग अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विभिन्न मंत्रों यंत्रों और तंत्रों को मंत्रोच्चारित करके उन्हें धारण भी करते हैं। एक प्रकार से दीपावली का पर्व सभी जाति वर्ग में मनाया जाने वाला तथा आम जनमानस में उल्ल्लास व उमंग का वातावरण जगाने वाला पर्व है। दीपावली पर घरों में साफ सफाई होती है। लोग नए वस्त्र धारण करते हैं । आपस में हर प्रकार का वैर भाव भुलाकर गणेष- लक्ष्मी की आराधना करके आतिशबाजी करते हैं ,मिठाईाआं बाटतें हैं और खाते- खिलाते हैं। दीपावली का पर्व यह सन्देष भी देता है कि चाहे जितना भी अन्धकार छा जाए,लेकिन अपना साहस न छोड़ते हुए मनोबल को ऊँचा रखते हुए आशाओं का एक दीपक अवश्य जलता ही रहना चाहिए। दीपावली का पर्व राक्षसी प्रवृत्तियों से लड़ने का मार्ग भी दिखाता है। जैसा कि पहले ही कहा गया है आज भ्रश्टाचार चारों ओर फैल गया है तथा प्रतिदिन किसी न किसी प्रकार के घोटाले सामने आ रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज इन अत्याचारियों को समाप्त करने के लिए फिलहाल कोई भगवान राम का अवतार सामने नहीं आ रहा है। अतः हमें तमाम कठिनाईयों के बावजूद भ्रष्टाचार को समाप्त करके ही दम लेना है।

दीपावली के संदर्भ में एक बात और आज आर्थिक उदारीकरण के दौर में दीपावली का पर्व लगभग पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। अमेरिका और ब्रिटेन आदि देशों में तो विशेष उल्लास के साथ मनाया जाता है। वही पड़ोसी चीन के उत्पादों से देश का बाजार पटा जा रहा है। अब तो घरों में लगने वाली झालरों से लेकर गणेष- लक्ष्मी, बच्चे के लिए आतिशबाजी से सम्बंधित खिलौने आदि बाजारों में भरे पड़े हैं एक पत्रकार से दीपावली के बाजार को चीन के व्यापारियों ने अपने उत्पादों से भर दिया है। दिन पर दिन चीनी उत्पाद भारतीय बाजार में छा रहे हैं जिसके कारण स्वदेशी बाजार बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। अतःप्रत्येक भारतीय जो दीपावली को मनाते हैं उन्हें चीनी उत्पादों से परहेज करना चाहिए और पूरी तरह से स्वदेशी दीपावली ही मनानी चाहिए। आज चीनी उत्पादों के चलते स्वदेशी कुम्हारों पर संकट के गहरे बादल छा रहे हैं हमें उनको भी बचाना है। एक बात और दीपावली पर आजकल व्यापारी वर्ग अपने मुनाफें के लिए मिलावटी खोया, दूध, पनीर आदि ,खाद्य सामग्री को बाजार में उतारने लग गया हैं । हमें मिलावटी धंधा करने वाले तथा पवित्र त्यौहार को अपवित्र करने वाले व्यापारियो, कालाबाजारियों का भी बहिश्कार करना चाहिए। आजकल एक बहुत बड़ी बहस समाज में छिड़ जाती है वह दीपावली को लेकर होने वाली आतिशबाजी को लेकर । आतिशबाजी को लेकरा यह कहा जाता है कि इससे वातावरण प्रदूषित हो जाता है। ध्वनि युक्त पटाखों के कारण कानों में बहरेपन की समस्या बढ़ जाती हैं । यह सब कुछ हिंदू धर्म को बदनाम करने केी साजिशें भी होती हैं। प्रदूषण होता है , इनके कारण अग्निकांड भी होते हैं। अतः हम सभी को आतिशबाजी बहुत ही सावधानी के साथ प्रयोग करनी चाहिए। जिससे किसी को हानि भी न हो। दीपावली का पर्व खुशियों का पर्व है इसे ख़ुशी के साथ मनायें सभी के लिए मंगल की कामना करें।

मृत्युंजय दीक्षित

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here