“भारत की राष्ट्रीयता हिन्दुत्व है।”

hindutva  हिन्दू शब्द का प्रयोग कब प्रारम्भ हुआ यह बताना कठिन है। परन्तु यह सत्य है कि हिन्दू शब्द अत्यंत प्राचीन वैदिक वाङ्मय के ग्रन्थों मे साक्षात् नहीं पाया जाता है। परन्तु यह भी निर्विवाद है कि हिन्दू शब्द का मूल निश्चित रूप से वेदादि प्राचीन ग्रन्थों में विद्यमान है।

भारत में हिन्दू नाम की उपासना पद्धति है ही नही यहां तो कोई वैष्णव है या शैव अथवा शक्य है कबीरपंथी है सिख है आर्यसमाजी है जैन और बौद्ध है। वैष्णवों में भी उपासना के अनेक भेद हैं. अर्थात् जितने व्यक्ति उपासना और आस्था की उतनी ही विधियां हर विधि को समाज से स्वीकारोक्ति प्राप्त है। पश्चिम के राजनीतिज्ञ व समाजशात्री  भारतीय संस्कृति और समाज के इस पक्ष को या तो समझ ही नहीं सके या उन्होने पश्चिमी अवधारणाओं के बने सांचों में ही भारत को ढ़ालने का प्रयास किया।

अनेक सज्जनों द्वारा विभिन्न प्रकार की व्याख्याओं से यह शब्द भी विवादित हो गया है। यद्यपि यह शब्द भारत का ही पर्याय है और यह जीवन पद्धति की ओर इंगित करता है। विख्यात स्तम्भकार पद्म श्री मुजफ्फर हुसैन कहते हैं कि-

‘‘भारतीयता तो भारत की नागरिकता है, भारत की राष्ट्रीयता हिन्दुत्व है।’’

ऐसा भी प्रचारित किया गया है कि हिन्दू नाम अपमानजनक है जैसा कि भारतीय फारसी के शब्दकोशों में मिलता है। इनमें हिन्दू का अर्थ द्वेषवश, काला, चोर आदि किया गया है जो कि पूर्णतया असत्य है। अरबी व फारसी भाषा में ‘हिन्द’ का अर्थ है ‘सुन्दर’ एवं ‘भारत का रहने वाला’ आदि। हिंदू चिंतक श्री कृष्णवल्लभ पालीवाल बताते हैं कि जब 1980-82 में, मैं बगदाद में ईराक सरकार का वैज्ञानिक सलाहकार था तो मुझे वहां यह देखकर आश्चर्य हुआ कि अनेक युवक व युवतियों के नाम ‘अलहिन्द’ व ‘विनत हिन्द’ थे। तो मैंने आश्चर्यवश उनसे पूछा कि ये नाम तो हिन्दुओं जैसे लगते है जिसका अर्थ है ‘सुन्दर’ और इसी भाव में हमारे ये नाम है।

कुछ लोगों ने अपने को ‘हिन्दू’ न कहकर ‘आर्य‘ कहना ज्यादा उचित समझा है, किंतु रामकोश में सुस्पष्ट लिखा है कि-

हिन्दूर्दुष्टो न भवति नानार्याे न विदूषकः।

सद्धर्म पालको विद्वान् श्रौत धर्म परायणः।।

यानी ‘‘हिन्दू दुष्ट, दुर्जन व निन्दक नहीं होता है। वह तो सद्धर्म का पालक, सदाचारी, विद्वान, वैदिक धर्म में निष्ठावान और आर्य होता है। अतः हिन्दू ही आर्य है और आर्य ही हिन्दू है। समय की मांग है कि हम इस विवाद को भूलकर मिल जुलकर हिन्दू धर्म व हिन्दू संस्कृति को उन्नत करने और हिन्दू राज्य स्थापित करने प्रयास करें।

स्वामी विज्ञानानन्द ने हिन्दू नाम की उत्पति के विषय में कहा कि हमारा हिन्दू नाम हजारों वर्षों से चला आ रहा है जिसके वेदो संस्कृत व लौकिक साहित्य में व्यापक प्रमाण मिलते है। अतः हिन्दू नाम पूर्णतया वैदिक, भारतीय और गर्व करने योग्य है। वस्तुतः यह नाम हमें विदेशियों ने नहीं दिया है बल्कि उन्होंने अपने अरबी व फारसी भाषा के साहित्य में उच्च भाव में प्रयोग किया है।

शताब्दियों से सम्पूर्ण भारतीय समाज ‘‘हिन्दू नाम को अपने धार्मिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय एवं जातिय समुदाय के सम्बोधन के लिए गर्व से प्रयोग करता रहा है। आज भारत ही नहीं, विश्व के कोने-कोने में बसे करोड़ों हिन्दू अपने को हिन्दू कहने में गर्व अनुभव करते हैं। वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने धर्म एवं संस्कृति से प्रेरणा पाकर असीम सफलता प्राप्त कर रहे हैं। वे हिन्दू जीवन मूल्यों से स्फूर्ति पाकर समता और कर्मठता के आधार पर, भारत में ही नहीं, विदेशों में भी, अपनी श्रेष्ठता का परिचय दे रहे हैं। वे श्रेष्ठ मानवीय जीवन मूल्यों के आधार पर समाज में प्रतिष्ठित भी हो रहे है।

हिन्दू पुनर्जागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द सरस्वती, युवा हिन्दू सम्राट स्वामी विवेकानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, योगी श्री अरविंद, भाई परमानन्द, स्वातान्त्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर आदि महापुरुषों ने ‘हिन्दू’ नाम को गर्व के साथ स्वीकार कर आदर प्रदान किया है। स्वामी विवेकानन्द एवं स्वातन्त्र्य वीर सावरकर ने हिन्दू नाम के विरूद्ध चलाए जा रहे मिथ्या कुप्रचार का पूर्ण सामथ्र्य से विरोध किया। सावरकर जी ने प्राचीन भारतीय शास्त्रों के आधार पर इस नाम की मौलिकता को बड़ी प्रामाणिता के साथ पुनः स्थापित किया तथा बल देकर सिद्ध किया कि ‘‘हिन्दू नाम पूर्णतया भारतीय है जिसका मूल वेदों का प्रसिद्ध ‘सिन्धु’ शब्द है।’

हिन्दू शब्द का प्रयोग कब प्रारम्भ हुआ, इसकी निश्चित तिथि बताना कठिन अथवा विवादास्पद होगा। परन्तु यह सत्य है कि हिन्दू शब्द अत्यन्त प्राचीन वैदिक वाङ्मय के ग्रन्थों में साक्षात् नहीं पाया जाता है। परन्तु यह भी निर्विवाद है कि हिन्दू शब्द का मूल निश्चित रूप से वेदादि प्राचीन ग्रन्थों में विद्यमान है। औपनिषदिको काल के प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत एवं मध्यकालीन साहित्य में हिन्दू शब्द पार्यप्त मात्रा में मिलता है। अनेक विद्वानों का मत है कि हिन्दू शब्द प्राचीन काल से सामान्य जनों की व्यावहारिक भाषा में प्रयुक्त होता रहा है। जब प्राकृत एवं अपभ्रंश शब्दों का प्रयोग साहित्यिक भाषा के रूप में होने लगा, उस समय सर्वत्र प्रचलित हिन्दू शब्द का प्रयोग संस्कृत ग्रन्थों में होने लगा। ब्राहिस्र्पत्य कालिका पुराण, कवि कोश, राम कोश, कोश, मेदिनी कोश, शब्द कल्पद्रुम, मेरूतन्त्र, पारिजात हरण नाटक, भविष्य पुराण, अग्निपुराण और वायु पुराणादि संस्कृत ग्रंन्थों में हिन्दू शब्द जाति अर्थ में सुस्पष्ट मिलता है।

इससे यह स्पष्ट होता है कि इन संस्कृत ग्रन्थों के रचना काल से पहले भी हिन्दू शब्द का जन समुदाय में प्रयोग होता था।

संस्कृत साहित्य में ‘हिन्दू’ शब्द

संस्कृत साहित्य में पाए गए हिन्दू शब्द प्रस्तुत है-

हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्परः।

वेद… हिन्दू मुख शब्दभाक्।।

(वृद्ध स्मृति)

‘‘जो सदाचारी वैदिक मार्ग पर पर चलने वाला, हिंसा से दुःख मानने वाला है, वह हिन्दू है।

बलिना कलिनाच्छन्ने धर्मे कवलिते कलौ।

यावनैर वनीक्रान्ता, हिन्दवो विन्ध्यमाविशन्।।

(कालिका पुराण)

‘जब बलवान कलिकाल ने सबको प्रच्च्छन्न कर दिया और धर्म उसका ग्रास बन गया तथा पृथ्वी यवनों से आक्रान्त हो गई, तब हिन्दू खिसककर विन्ध्याचल की ओर चले गए।’’

इसी प्रकार का भाव यह श्लोक भी प्रकट करता हैः

यवनैरवनी क्रान्ता, हिन्दवो विन्ध्यमाविशन्।

बलिना वेदमार्र्गाेऽयं कलिना कवलीकृतः।।

(शार्ङ्धर पद्धति)

‘यवनों के आक्रमण से हिन्दू विन्ध्याचल पर्वत की ओर चले गए।’

हिन्दूः हिन्दूश्च प्रसिद्धौ दुष्टानां च विघर्षणे।

(अ˜ुत कोश)

‘हिन्दू’ और ‘हिन्दू’ दोनों शब्द दुष्टों को विघर्षित करने वाले अर्थ में प्रसिद्ध हैं।’

‘‘हिन्दू सद्धर्म पालको विद्वान् श्रौत धर्म परायणः।

(राम कोश)

हिन्दूः हिन्दूश्च हिन्दवः।

(मेदिनी कोश)

 हिन्दू, हिन्दू और हिन्दुत्व तीनों एकार्थक है।’

हिन्दू धर्म प्रलोप्तारौ जायन्ते चक्रवर्तिनः।

हीनश्च दूषयप्येव स हिन्दूरित्युच्यते प्रिये।।

(मेरु तन्त्र)

‘‘हे प्रिये! हिन्दू धर्म को प्रलुप्त करने वाले चक्रवर्ती राजा उत्पन्न हो रहे हैं। जो हीन कर्म व हीनता का त्याग करता है, वह हिन्दू कहा जाता है।’’

हिनस्ति तपसा पापान् दैहिकान् दुष्टमानसान्।

हेतिभिः शत्रुवर्गः च स हिन्दूः अभिधीयते।।

(परिजातहरण नाटक)

‘जो अपनी तपस्या से दैहिक पापों को दूषित करने वाले दोषों का नाश करता है, तथा  अपने शत्रु समुदाय का भी संहार करता है, वह हिन्दू है।’

हीनं दूषयति इति हिन्दू जाति विशेषः

(शब्द कल्पद्रुमः)

‘हीन कर्म का त्याग करने वाले को हिन्दू कहते हं।’

इन प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि प्राचीन एवं अर्वाचीन संस्कृत साहित्य में हिन्दू शब्द का पर्याप्त उल्लेख के साथ  साथ हिन्दू के लक्षणों को भी दर्शाया गया है।

 

डॉ. सौरभ मालवीय

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डॉ. सौरभ मालवीय
उत्तरप्रदेश के देवरिया जनपद के पटनेजी गाँव में जन्मे डाॅ.सौरभ मालवीय बचपन से ही सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र-निर्माण की तीव्र आकांक्षा के चलते सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए है। जगतगुरु शंकराचार्य एवं डाॅ. हेडगेवार की सांस्कृतिक चेतना और आचार्य चाणक्य की राजनीतिक दृष्टि से प्रभावित डाॅ. मालवीय का सुस्पष्ट वैचारिक धरातल है। ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया’ विषय पर आपने शोध किया है। आप का देश भर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं अंतर्जाल पर समसामयिक मुद्दों पर निरंतर लेखन जारी है। उत्कृष्ट कार्याें के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है, जिनमें मोतीबीए नया मीडिया सम्मान, विष्णु प्रभाकर पत्रकारिता सम्मान और प्रवक्ता डाॅट काॅम सम्मान आदि सम्मिलित हैं। संप्रति- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। मोबाइल-09907890614 ई-मेल- malviya.sourabh@gmail.com वेबसाइट-www.sourabhmalviya.com

6 COMMENTS

  1. एक बार विस्कोन्सीन युनिवर्सिटी में मेरा व्याख्यान हुआ था। भारतीय छात्रों के भारत की राष्ट्रीयता के विषय में प्रश्न पर मैं ने, फलक पर, तीन प्रश्नार्थक समीकरण रखे थे।
    प्रामाणिक उत्तर से आप ही आप आपको भी स्पष्ट हो जाएगा, जैसा वहाँ भी हुआ था।
    इस प्रकार के तर्क को अंग्रेज़ी में रिडक्षियो-एड-एब्सर्डम कहा जाता है।
    (१) भारत-हिंदुत्व =? —सोचिए (फिर नीचे देखिए)
    (२)भारत – इस्लाम=?
    (३)भारत- इसाइयत=?
    -सोचिए (फिर नीचे देखिए)
    —————————————————————-
    (१) भारत-हिंदुत्व =? ——छात्रों की ओरसे, इसका, (एक)-पाकीस्तान (दो) शून्य यह उत्तर मिला था।
    (२) और (३) के उत्तर भी सही थे।
    बताउंगा तो चकित होना पडेगा। नहीं बताउंगा।
    जानकार पहचान गए होंगे, कि, सर्व समन्वयी हिंदू के ही कारण भारत में अल्पसंख्यक भी सुरक्षित है।
    अब बताइए, कि, कश्मिर से किसे भगाया गया? और क्यों?
    क्या, इसी प्रश्न को आप टाल जाओगे?
    क्यों?

  2. ईसा से कई शताब्दी पूर्व रजा डेरियस के शिलालेख में हिन्दू शब्द का प्रयोग हुआ है क्योंकि उस काल में भी ईरान एवं अफगानिस्तान के रहने वाले सिन्धु के लिए हिन्दू शब्द का प्रयोग करते थे। वेदों में, उपनिषदों में, रामायण में, महाभारत आदि ग्रंथों में हिन्दू शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। जो सज्जन भारोपीय भाषा-परिवार की भाषाओं के बारे में जानना चाहते हैं, वे मेरा प्रवक्ता में प्रकाशित विश्व भाषाओं शीर्षक लेख पढ़ने की कृपा कर सकते हैं। यदि इससे संतोष न हो तो मैं भारतीय आर्य भाषा शाखा और ईरानी आर्य शाखा के बारे में अलग से लेख लिख सकता हूँ। सम्प्रति, एक उदाहरण प्रस्तुत है। भारतीय आर्य भाषा शाखा में असुर शब्द का प्रयोग होता था। ईरानी आर्य भाषा शाखा में उसे अहुर कहा जाता था।

  3. स्पष्ट है, हिन्दू न तो कोई वाद है और न ही धर्म, यह भारतीय सनातन संस्कृति का एक अटूट व् अभिन्न अंग है |

  4. यह कहना भ्रामक है कि हिन्दु शब्द का प्रयोग वेदों, उपनिषदों, आरण्यकों में हुआ है। प्राचीन ग्रंथों में हिन्दु शब्द का प्रयोग नहीं मिलता। अफगानिस्तान और ईरान के रहने वाले सिंधु का उच्चारण हिन्दु करते थे। भारोपीय भाषा-परिवार की भारत-ईरानी शाखा की भाषाओं में पर्याप्त समानताएँ हैं मगर कुछ अंतर भी हैं। भारतीय शाखा की प्राचीनतम भाषा वैदिक संस्कृत और ईरानी शाखा की प्राचीनतम भाषा अवेस्ता है। भारतीय शाखा की भाषाओं की “स” ध्वनि का उच्चारण ईरानी शाखा की भाषाओं में “ह” होता है।

  5. इसा से कई शताब्दी पूर्व के राजा डेरियस के शिलालेखों में हिन्दू शब्द का उल्लेख मिलता है.

  6. इसा से कई शताब्दी पूर्व के रजा डेरियस के शिलालेखों में हिन्दू शब्द का उल्लेख मिलता है.

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