बाल कविता : बच्चों की कल्पना

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village मिलन सिन्हा

बच्चों  की  कल्पना

यही वह अपना गाँव है

हम बच्चों का गाँव है।

 

बन्दर है,   मदारी  है

पनघट है, फूलों की क्यारी है

खेत  है,   खलिहान है

झूमते पेड़, खुला आसमान  है।

 

यही वह अपना गाँव है

हम बच्चों का गाँव है।

 

मदरसा है, पाठशाला है

कोई गोरा, कोई  काला  है

कुश्ती है, कबड्डी है

कोई अव्वल, कोई फिसड्डी है।

 

यही वह अपना गाँव है

हम बच्चों का गाँव है।

 

न गम है, न तनाव है

सबका अच्छा स्वभाव है

न  कहीं  कोई  पेंच है

न कहीं कोई दांव  है।

 

यही वह अपना गाँव है

हम बच्चों का गाँव है।

 

चिड़ियों  की चहकार है

इधर नदी, उधर पहाड़ है

खुशबु है, संगीत की बहार है

हर ओर  प्यार-ही-प्यार है।

 

यही वह अपना गाँव है

हम बच्चों का गाँव है।

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