भारत की सुरक्षा, गंभीर नहीं केन्द्र सरकार

india-chinaभारतीय गुप्तचर संस्था रॉ ने हाल ही में चीन द्वारा प्रायोजित स्टडी सेंटरों के बारे में जो जानकारी दी है उससे यह तो साफ हो गया कि चीन न केवल भारत के अन्य पडौसी देशों पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बंगलादेश, बर्मा को मोहरा बनाकर अपने हित में इस्तेमाल कर रहा है बल्कि भारत में अंदर भी उसने अनेक स्थानों पर अध्ययन केन्द्र के नाम पर हिन्दुस्थान की जाजूसी करने वाले सेंटर खोल रखे हैं। अभी तक केवल यही समाचार आ रहे थे कि चीन अरूणाचल प्रदेश पर अपना दावा प्रस्तुत कर रहा है। वह भारतीय सीमा के अंदर घुसपैठ करता रहता है या उसने सीमा पर गोली बारी और युद्ध अभ्यास किया। किन्तु स्टडी सेंटर के नाम पर जगह-जगह उसने जिस तरह के जाजूसी केन्द्र खोले हैं यह ज्यादा खतरनाक और चौकाने वाली सूचना है। अभी नेपाल जो कभी घोषित हिन्दू देश था अब वैसे भी माओवादी प्रभाव के कारण चीन के स्वर में, स्वर मिला रहा है। जहाँ कभी भारतीय पुजारियों का अपमान किया जाता है तो भी भारतीय व्यापारी उनके निशाने पर रहते हैं। ऐसे में भारत के लिए अपने पडौसी मुल्कों से खतरा ओर बढ गया है। क्योंकि यदि रॉ की सूचना को सही माना जाए तो भारत-नेपाल सीमा पर ही 24 स्टडी सेंटर ऐसे हैं जो भारत में हो रही प्रत्येक गतिविधि पर पैनी नजर रखते हैं। रॉ के आला अधिकारियों को इस बात के भी साक्ष्य मिले हैं कि व्यापार के नाम पर 30 ऐसी फर्मे हैं जो न केवल भारत में सस्ता चीनी इलेक्ट्रॉनिक एवं अन्य प्रकार के माल की सप्लाई कर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं बल्कि वह भी भारत की जाजूसी का काम कर रही हैं। यह चीनी फर्मे भारतीय इलेक्ट्रॉनिक बाजार पर अपना आधिपत्य जमा चुकी हैं क्योंकि भारत में बनने वाले इलेक्ट्रॉनिक सामान की नकल कर यह फर्मे चीन में निर्मित करती हैं और कम दामों पर भारतीय बाजारों में बांट देती हैं।

यह तो एक संकेत मात्र है इसके पीछे का पूरा सच जब सामने आएगा तो हो सकता है देश की सुरक्षा से जुडा यह मसला अत्याधिक गंभीर निकले, क्योंकि देश की राजधानी दिल्ली में ही जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी से लेकर अनेक उच्च शिक्षा से जुडे केन्द्र हैं जहाँ बडी तादात में चीनी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, कई एजेंसियाँ ऐसी भी है जो सांस्कृतिक गतिविधियों के नाम पर एक देश से दूसरे देश में आती-जाती रहती हैं। उनमें भी भारत की जासूसी करने वाले लोग हो सकते हैं? वैसे भी भारत के दरवाजे सभी के लिये खुले हैं। जब 4 करोड से ज्यादा बंग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिये यहाँ आराम से रह सकते हैं, पाक के जासूसों का नेटवर्क अटक से कटक और जम्मू-कश्मीर से कन्या कुमारी तक हो सकता है तो अब पडोसी चीन के खूफिया जासूसों को भारत में भला कौन रोकेगा? दूसरी ओर नेपाल में चल रही राजनीतिक उठापटक का लाभ चीन भारत विरोधी गतिविधियों को संचालित करने में कर रहा है। उसे नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचण्ड के स्तीफे और माधवकुमार के प्रधानमंत्री बनने के बाद से जारी आपसी गृह कलह का लाभ मिल रहा है। वहां नेपाल में सत्ताधारियों और माओवादियों के बीच अभी भी संघर्ष जारी है। चीन माओवादियों को विचारधारा के स्तर पर अपना मानते हुए भरसक मदद दे रहा है ताकि न केवल नेपाल में चीन का वर्चस्व रहे बल्कि नेपाल के जरिये वह भारत में अपनी खूफिया गतिविधियों को संचालित कर सके।

चीन एक के बाद एक भारत जैसे सम्प्रभू देश की सम्प्रभूता को चोट पहुँचाने के लिए अपनी दुस्साहसपूर्ण चाले चल रहा है और भारत सरकार चीन की इन हरकतों को छुपाने का प्रयास कर रही है। आखिर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार की वह कौन सी मजबूरी आडे आ रही हैं जो वह सच बताना नहीं चाहती, लेकिन शायद सरकार भूल गई थी कि चीनी हरकतों को उसके द्वारा उजागर न करने पर भी वह अपने सही अर्थों में भारतीय जनता तक पहुँच जाएगी, क्योंकि लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली सशक्त मीडिया का भी जनक है।

मीडिया के द्वारा चीन के भारत विरोधी खौफनाक इरादों की पल-पल की जानकारी आज भारतीय जनता तक पहुंच रही हैं। पिछले एक वर्ष में चीन द्वारा भारतीय सीमा का उल्लंघन करने की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। 2007 में 140 बार चीन सेना ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया था जबकि 2008 में 270 बार उसने घुसपैठ की। इस वर्ष 21 जुलाई से लेकर अगस्त तक वह 44 बार चीनी सेना भारतीय सीमा में न केवल घुसी बल्कि जगह-जगह अपने अवशेष भी छोड गई। 14 सितम्बर को चीन के सैनिकों ने इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस के दो जवानों को घायल कर दिया था। सिक्किम के केरांग इलाके में गोली-बारी हुई। वास्तविकता पर पर्दा डालकर भारत सरकार न केवल अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने कमजोर नजर आ रही है बल्कि भारत के आम नागरिक को भी यही संदेश दे रही है कि भारत अभी चीन से दो-दो हाथ करने की स्थिति में नहीं है और न ही केन्द्र सरकार का मनोबल दृढ है कि वह चीन की इन हरकतों के लिए उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बना सके।

आज भारत खतरनाक रूप से चीन के हाथों खेल रहा है। ऐसे ही सन् 1962 में चीन के आक’मण के समय भारत खेला था। पं. नेहरू ने नारा दिया हिन्दी-चीनी भाई-भाई, उन्होंने भी चीन की तरफ से अपनी ऑंखे मूंद रखी थी, उसका परिणाम सभी ने देखा। सन् 1962 के भारत-चीन युध्दा में भारतीय सैनिकों को पराजय का सामना तो करना ही पडा, बल्कि इससे भी बडे परिणाम के रूप में 65 हजार वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्रफल हमेशा के लिए चीन ने दबा लिया। बेशक! भारतीस संसद इस क्षेत्र को वापिस लेने के लिए संकल्पिक है लेकिन क्या भारतीय नेताओं का मनोबल कभी दिखा है कि वह चीन की कम्युनिष्ट सरकार को यह बता पाए कि बहुत हुआ भारत अब चीन की किसी भी हरकत को नजर अंदाज नहीं करेगा। अक्साई चीन जो कभी भारतीय हिस्सा था आज बार-बार भारत की कमजोर विदेश नीति की याद दिलाता है।

जरूरत आज इस बात की है कि राजनीतिक स्तर पर चीन के खिलाफ ह्ढ इच्छाशक्ति का परिचय दिया जा सके नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब चीन बीजिंग से दिल्ली तक आ जाये। अभी तो केवल ड्रेगन ने उत्तराखण्ड-अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की है। वह इन छोटी-छोटी घुसपैठ से भारतीय राजनेताओं के मनोबल को टटोल रहा है। हल्का प्रतिकार बार-बार यही संदेश दे रहा है कि भारत आज भी चीन से हुए युद्ध के 47 वर्ष बीत जाने के बाद एक सुदृढ सम्प्रभू राष्ट्र के रूप में सामरिक स्तर पर अपने शत्रुओं से लोहा लेने के लिए तैयार नहीं है।

जिस तरह के समाचार आ रहे हैं वह तो यही संकेत दे रहे हैं कि केन्द्र सरकार भारत की सुरक्षा को हल्के से ले रही है। नहीं तो एक के बाद एक दुस्साहस पूर्ण हरकत करने की हिम्मत हमारा पडोसी मुल्क कभी नहीं जुटा पाता। अब केन्द्र सरकार को चाहिए वह शीघ’ अपने गुप्तचर एजेंसियों के द्वारा उन सभी चीनी जाजूसों का पता लगाये जो भारत में छद्मभेष में रहते हुए भारत की जासूसी कर रहे हैं । उन्हें पकडकर चीन के आगामी मंसूबों को जानना आज भारत की पहली आवश्यकता है ताकि हम चीन से दो-दो हाथ करने की आवश्यकता आ पडे तो कमजोर साबित न हो सकें।

-मयंक चतुर्वेदी

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

1 COMMENT

  1. हमारी तो आदत है हर चीज को इजी लेने की। आज भी चीन को हमारी सरकार हर तरह से आसानी में ले रही है जिसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। हमारे देश ने कभी इतिहास से कोई सबक नहीं लिया है और न ही हमारे देशवासियों को कभी अपने इतिहास से अवगत होने दिया है। ऐसे में हमारे खून में उबाल कहां से आऐगा।

    हमारे देश में जनता को सुरक्षा के प्रति जागरूकता पैदा करनी चाहिए। अभी तक यह कार्य केवल पुलिस और सेना का की माना जाता है। जन सामान्य को भी अनौपचारिक ट्रेनिंग देनी चाहिए।

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