श्रीराम तिवारी
इस आलेख का शीर्षक पढ़कर जिन्हें रंचमात्र भी खेल भावना का अहसास होगा वे अवश्य ही एसियाड में भारत की खेल सम्बन्धी स्थिति और चीन का विराट अश्वमेधी अभियान के सन्दर्भ में आशावादी दृष्टिकोण पर खुश होंगे. गत १२ दिसंबर २०१० को भारत की शीर्ष बेडमिन्टन खिलाडी साइना नेहवाल ने त्रिस्तरीय गेम्स के संघर्षपूर्ण मुकाबले में चीन की शिझियाँ वांग को हराकर ‘होंगकोंग ओपन सुपर सीरिज “ख़िताब जीतकर करोड़ों भारतीयों के दिलों को राष्ट्रीय स्वाभिमान से संपृक्त कर दिया. २० वर्षीय साइना ने वांचाई में खेली गई इस विश्व स्तरीय स्पर्धा के फ़ाइनल में विश्व की शीर्ष वरीयता {तीसरी}प्राप्त चीनी खिलाडी को १५-२०, २१-१६, २१-१७, से मात देकर भारी उलटफेर कर दिखाया .साइना ने यह मुकाबला एक घंटे और ११ मिनिट में जीता .साइना की यह इस साल की तीसरी और व्यक्तिगत करियर की चौथी शानदार उपलब्धि है .
साइना ने विगत ओक्टोबर में कामन वेल्थ गेम्स में भी स्वर्ण पदक जीतने से पहले “इंडियन ओपन ग्रापी ” “सिगापुर ओपन सीरीज “और इंडोनेशियन सुपर सीरिज ‘के अंतर राष्ट्रीय खिताबों पर कब्ज़ा करके भारत का न केवल मान बढाया बल्कि सदियों से दमित-शोषित – पराजित भारतीय जन -गन को वर्तमान प्रतिस्पर्धी युग के अनुरूप बेहतरीन उत्प्रेरक प्रदान किया है. अब भारत की जनता का सच्चा और देशभक्त तबका हर क्षेत्र में नेतृत्व करने को बाध्य होगा. यह एक अकेले साइना नेहवाल के एकल प्रयास का प्रश्न नहीं है .
भारत के कतिपय कट्टर दक्षिणपंथी लोग खेलों को अंतर राष्ट्रीय परिदृश्य पर पाकिस्तान बनाम भारत के नजरिये से देखते रहे और उसी की ये परिणिति है कि आम तौर पर हम क्रिकेट, हाकी या अन्य किसी भी खेल में पाकिस्तान के खिलाड़ियों को भारतीय खिलाड़ियों के हाथों पराजित किये जाने पर क्षणिक आनंद में मग्न रहे और उधर चीन रूस कोरिया, अमेरिका समेत एक दर्जन देश हमसे आगे निकलते चले गए. कुछ लोग चीन में खेलों के विकाश को नकरात्मक ढंग से प्रस्तुत करते हुए अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं. जबकि प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा के उपरान्त खेलों की मूलगामी समीक्षा की जाते रहनी चाहिए. चीन में ऐसा है होता है …भारत में एक शृंखला {क्रिकेट की] जीतने के बाद या एक स्वर्ण पदक किसी अंतर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्राप्त करने के बाद द्वारा उसे हासिल कर पाने की सम्भावना काम ही हुआ करती है .साइना नेहवाल ने यह कर दिखाया. लगातार तीन टॉप की स्पर्धाओं में नंबर वन होना निश्चय ही भारत के गौरव की अभिवृद्धि तो है ही साथ ही यह देश के युवाओं और देशप्रेमी जनता को सन्देश भी की. प्रतिभाओं को तराशने बाबत उचित सहयोग प्रदान करें.
श्री राम तिवारीजी की इस बात से तो मैं पुर्णतः सहमत हूँ की हमारी सोच हमेशा यही रहती थी की हमने पाकिस्तान पर विजय पा ली तो मानो विश्व चैम्पियन हो गए.मुझे अभी भी याद है की शायद १९७१ या १९७३ में जब हॉकी के विश्व कप में सेमी फ़ाइनल में हमने पाकिस्तान को हराया था तो संसद तक में जश्न मनाई गयी थी पर जब फ़ाइनल में हम हालैंड के हाथों दो के मुकाबले चार गोलों से हार गए थे हमें कोई खास अफ़सोस नहीं हुआ था.खेल कूद की दुनिया में हमारे आगे न बढ़ने के बहुत से अन्य कारण भी हैं.एक खास कारण खेल कूद के बारे में हमारी मानसिकता भी है.
साएना नेहवाल ने वो कर दिखाया है जो हम भारतवासी बस सोच सकते थे पर किसी ने इस के लिए कुछ करने की पहल नहीं की! मेरा उद्देश्य हमारे खेल विभागों से है! उनका कहना तो बस यही होता था की नहीं नहीं ये नहीं हो सकता! आज हम सब हमारी इस महान खिलाडी साएना नेहवाल के लिए न केवल भगवान् से दुआ मांग सकते हैं बल्कि सरकार और खेल जगत से जुड़े बाशिंदों से बोल सकते हैं की आप भारतियों को एक मौका दो हम कर दिखायेंगे! भारतवर्ष में क्रिकेट के इलावा और बहुत से खेल हैं जिसमे अगर मौका दिया जाये तो हम साबित कर देंगे की हमसे बढकर कोई नहीं है इस दुनिया में! पर इसके लिए भ्रष्टाचार ख़तम हो तभी हम कुछ कर सकने की हिम्मत कर सकते हैं!
साएना नेहवाल को मेरी तरफ से ढेरों शुभकामनाये!
मनोज सरदाना
जी न्यूज़!