नेपाली सीमाओं की घेराबंदी हुए तीन माह बीत गए और नेपाल सरकार की आंख अब खुली है। 50 लोग मारे गए और लाखों लोगों का जीना दूभर हो गया, तब जाकर नेपाल सरकार ने मधेसियों की मांगों पर अपना रवैया ढीला किया है। पहले उसने भारत के माथे सारा ठीकरा फोड़ा, फिर वह न्यूयार्क और जिनीवा में जाकर भारत-विरोधी आवाज़ें लगाता रहा। जब उसने देखा कि चीन ने उसे जो चूसनी थमाई थी, उससे भी उसका पेट नहीं भर रहा है तो अब थक-हार कर उसने अपने संविधान में संशोधन करने की घोषणा की है लेकिन उसे मधेसी नेताओं ने अस्वीकार कर दिया है। क्या हैं, वे प्रस्तावित संशोधन?
पहला, यह कि मधेसियों को संसद में उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें दी जाएंगी। दूसरा, मधेसी प्रांतों का पृथक सीमांकन होगा। तीसरा, राज्य की सभी संस्थाओं में उनको उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलेगा। मधेसी नेताओं ने रियायतों को रद्द करते हुए कहा है कि उनकी 11 मागें थीं। उनमें से सिर्फ तीन पर ही सरकार ने विचार किया है, वह भी अधूरा, अस्पष्ट और दृष्टिहीन है। इससे मधेसियों को न्याय दिलाने की बजाय भुलावे में रखने का काम होगा।
चारों मधेसी संगठनों के नेताओं ने कहा है कि जनसंख्या के आधार पर सीटें बांटी जाएगी तो क्या संसद की आधी सीटें मधेसियों को मिलेंगी? उच्च सदन में सभी राज्यों को एक बराबर सीटें दी गई हैं तो क्या मधेसियों को भी उचित संख्या में सीटें मिलेंगी? क्योंकि मधेसियों के राज्य तो कम बनेंगे लेकिन जनता ज्यादा होगी। सरकारी नौकरियों में मधेसियों का उचित प्रतिनिधित्व कैसे होगा, क्योंकि अनेक जातीय समूहो के लिए पहले से कई नौकरियां आरक्षित हैं? इसके अलावा नया सीमांकन भी संदेहास्पद है, क्योंकि उसका निर्णय भी नेतागण ही करेंगे।
मधेसियों की ये आपत्तियां निराधार नहीं हैं लेकिन वे ऐसी भी नहीं है कि उनका समाधान न हो सके। भारत ने नेपाल सरकार के प्रस्तावों को ‘रचनात्मक’ कहा है। उसे भी चाहिए कि वह सिर्फ बयान जारी करना ही अपना कर्तव्य न समझे। दोनों पक्षों को साथ बिठाकर वह समझौता करवाए और घेराबंदी खत्म करवाए। यदि यह घेराबंदी चलती रही तो भारत के प्रति नेपाल की सद्भावना को ऐसा धक्का लगेगा, जिसे कई वर्षों तक सुधारा नहीं जा सकेगा। नरेंद्र मोदी सरकार ने भूकंप के दौरान नेपाल से जो अपूर्व आभार पाया था, वह भाव अब लगभग समाप्त हो चुका है। भारत-नेपाल संबंधों में इससे ज्यादा गिरावट आई तो हमारी कूटनीतिक प्रतिष्ठा सारे दक्षिण एशिया में भी आहत होगी। भारत सिर्फ दृष्टा न बना रहे, कुछ सक्रिय पहल करे।
भारत सरकार पिछले लम्बे समय से नेपाल की राजनीति में नेताओं के अभिनय तथा सरकार बनाने में पार्टियो शक्ति सन्तुलन को समझने में असफल रही है। भारत को संभल के कदम चलने चाहिए जिससे सीमांतीकृत समूहों को न्याय भी प्राप्त हो तथा नेपाल में विद्यमान भारत विरोधी भावनाए और अधिक न भड़के, दोनों बातों का ख्याल रखना चाहिए. नेपाल और भारत में एक ख़ास प्रकार का मीडिया है जो नेपाल में भारत विरोध प्रोपगंडा फैलाने का काम करता रहा है. सिर्फ नेपाल ही नही बल्कि दक्षिण एशिया के सभी देशो में जनस्तर पर परस्पर अच्छे सम्बन्ध के बावजूद एक ख़ास प्रकार मीडिया आपसी द्वन्द और अविश्वास बढ़ाने में सक्रीय रहता है। सभी देशो के राजनेताओ और जनता को उस मीडिया को नजर अंदाज करते हुए सम्बन्ध अच्छे करने का प्रयास करना होगा। नेपाल में उत्तर या दक्षिण के पड़ोसी से ज्यादा आकाश का पड़ोसी ज्यादा सक्रिय दिखता है।