भारत-अमेरिका के सुधरते व्यापारिक रिश्ते

भारत-अमेरिका संबंध

– योगेश कुमार गोयल

      पिछले माह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दो दिवसीय भारत यात्रा को दोनों राष्ट्रों के बीच एक नए युग की शुरूआत कहा गया। डोनाल्ड ट्रम्प की इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच करीब तीन अरब डॉलर (21 हजार करोड़ रुपये) के रक्षा समझौतों पर सहमति बनी और तीन समझौता पत्रों पर भी हस्ताक्षर किए गए, जिनमें से एक समझौता ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित है। अपनी यात्रा को अविस्मरणीय, असाधारण और सार्थक बताते हुए ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका-भारत की साझेदारी सही मायने में पहले से काफी मजबूत हुई है और दोनों देशों ने शानदार समझौते किए हैं। 22 सितम्बर 2019 को ह्यूस्टन शहर में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम के पांच माह बाद ट्रम्प की भारत यात्रा को देखते हुए कहा जा सकता है कि दोनों देशों के बीच एक-दूसरे के महत्व को समझने की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है और यह भी स्पष्ट है कि अमेरिकी नेतृत्व और राजनीति में भारत के लिए बड़े सकारात्मक बदलाव आए हैं। ट्रम्प द्वारा मोदी को कठिन वार्ताकार कहे जाने का सीधा का अर्थ है कि एक ओर जहां अमेरिका अपने फायदे वाले कुछ बड़े सौदों पर भारत से वार्ता कर रहा है, वहीं भारत अपने हित साधने के लिए अपनी जिद पर अड़ा है। भले ही ट्रम्प की भारत यात्रा का ज्यादा कारोबारी महत्व नहीं रहा हो लेकिन इससे एक बात अवश्य स्पष्ट हुई कि भारत अब अपने व्यापारिक हितों की अनदेखी नहीं करता है। दरअसल ट्रम्प कई बार कह चुके हैं कि भारत कई वर्षों से अमेरिकी व्यापार को प्रभावित कर रहा है लेकिन मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए कयास लगाए जाने लगे हैं कि आने वाले दिनों में भारत के प्रति ट्रम्प का उदार रवैया देखने को मिल सकता है।

अमेरिका में भारतीयों की बढ़ती ताकत

      अमेरिका में 3 नवम्बर 2020 को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और वहां करीब 44 लाख भारतीय बसे हैं, जिनमें से लगभग 15 लाख भारतीय राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मतदान करेंगे। दरअसल अमेरिका में रह रहे भारतीयों की वहां काफी प्रभावशाली भूमिका है। हालांकि वहां रह रहे भारतीयों की कुल संख्या वहां की कुल 32.7 करोड़ आबादी का करीब एक फीसदी के आसपास ही है लेकिन जिस तरीके से वहां रह रहे भारतीयों की पेशेवर और राजनीतिक ताकत निरन्तर बढ़ रही है, उसे देखते हुए राजनीतिक दलों के लिए उनकी अनदेखी करना असंभव है। ट्रम्प के लिए इसी साल के अंत में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर इन्हीं भारतीय मतदाताओं को साधना इसलिए भी बेहद जरूरी है क्योंकि वहां बसे अधिकांश भारतीय विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक माने जाते रहे हैं। पिछले चुनाव में ट्रम्प को केवल 16 फीसदी भारतीयों ने ही अपना मत दिया था। इसीलिए कुछ लोगों ने भले ही ट्रम्प के दौरे को उन भारतीयों को साधने के लिए महज ट्रम्प के राजनीतिक फायदे वाला दौरा करार दिया हो किन्तु ट्रम्प और मोदी के घनिष्ठ होते संबंधों को देखते हुए माना जाना चाहिए कि ट्रम्प की भारत यात्रा के बाद अब भारत-अमेरिका संबंधों को नई ऊंचाई मिलेगी। सही मायनों में ट्रम्प की यात्रा भारत के साथ भारतीयों की बढ़ती ताकत का भी स्पष्ट संकेत है।

व्यापारिक रिश्तों की बाधाएं

      हालांकि राष्ट्रपति ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के रिश्तों को मजबूती मिली है और दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध काफी मजबूत हुए हैं लेकिन दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों में कुछ बाधाएं बनी हुई हैं। इन बाधाओं की शुरूआत उस समय हुई थी, जब ट्रम्प द्वारा चीन सहित कुुछ और देशों के खिलाफ व्यापार युद्ध की शुरूआत की गई थी, जिसका असर भारत पर भी पड़ा। भारत के खिलाफ भी उन्होंने कई कड़े कदम उठाए। 8 मार्च 2018 को अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर 1962 के व्यापार विस्तार अधिनियम की धारा 232 के तहत भारत से निर्यात होने वाले स्टील पर 25 और एल्युमिनियम पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगा दिया था। लगातार मांग के बावजूद भारत को कोई राहत नहीं दिए जाने पर आखिरकार भारत को भी कठोर कदम उठाते हुए 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर के सामान पर 23.50 करोड़ डॉलर के शुल्क लगाने पर मजबूर होना पड़ा था, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ गया था। भारत ने 23 सितम्बर 2019 को बादाम-अखरोट, सेब इत्यादि अमेरिका के 28 उत्पादों पर 70 से 120 फीसदी तक सीमा शुल्क लगा दिया था। अमेरिका डेयरी उत्पादों के आयात पर 16 प्रतिशत ड्यूटी लगाता है जबकि भारत करीब 64 फीसदी और पिछले कुछ समय से अमेरिका की कोशिश यही रही है कि इस ड्यूटी को हटाते हुए वाहन, कृषि और डेयरी उत्पादों को विशेष छूट दे तथा अपना बाजार अमेरिका के लिए खोले।

      भारत के अनुरोध के बावजूद अमेरिका ने इराक पर तेल प्रतिबंधों को लेकर 1 मई 2019 के बाद कोई राहत देने से इन्कार कर दिया था, जिसके बाद से भारत को महंगा तेल खरीदना पड़ रहा है। इसी प्रकार 1 जून 2019 को ट्रम्प ने यह कहते हुए 5.6 अरब डॉलर के भारतीय उत्पादों को 1970 से लागू बगैर शुल्क अमेरिकी निर्यात की व्यवस्था ‘जीएसपी’ से अलग किया था कि भारत अब गरीब देश नहीं रहा। अमेरिका को भारत द्वारा उठाए गए कुछ कदमों पर भी आपत्ति रही है, जिनमें 13 फरवरी 2018 को दवाओं, स्टेंट, घुटना प्रत्यारोपण जैसे सभी चिकित्सा उपकरणों की कीमत निर्धारित करने, 6 अप्रैल 2018 को आरबीआई द्वारा संवेदनशील डाटा सुरक्षित करने के मामले में नियम सख्त करते हुए डाटा देश में ही संरक्षित रखने के नियम बनाने तथा 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार द्वारा भारी छूट से बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बिगाड़ने तथा खुदरा कारोबारियों के नुकसान के दृष्टिगत ई-कॉमर्स के लिए नई गाइडलाइन जारी करने जैसे फैसले शामिल हैं। दरअसल इन फैसलों का सीधा असर अमेरिका बाजार पर पड़ता है और भारत ने अमेरिका के व्यापार समझौते के मुद्दे पर हर बार यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अपने हितों के लिए अमेरिका दबाव में झुकने को कतई तैयार नहीं है। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प नरेन्द्र मोदी को ‘टफ नेगोशियटर’ की संज्ञा देते नजर आए हैं।

तनाव के बावजूद सुधरते व्यापारिक रिश्ते

      तमाम व्यापारिक गतिरोधों के बावजूद दोनों देशों के बीच पिछले दो वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच व्यापार करीब 10 फीसदी वार्षिक दर से बढ़ा है और अमेरिका का लाभ लेने में भारत अब चीन से भी आगे निकल रहा है। सूत्रों के अनुसार जहां 2018 में यह करीब 142.6 अरब डॉलर था, वहीं इस साल बढ़कर 150 अरब डॉलर को पार कर सकता है। भारत ने अमेरिका से 2017 में तेल और गैस खरीदना शुरू किया था, उसी के चलते भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 2016-17 के 22 अरब डॉलर से घटकर 2018-19 में करीब 17 अरब डॉलर रह गया। कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत अब माल एवं सेवाओं के व्यापार मामले में अमेरिका का आठवां सबसे बड़ा हिस्सेदार देश है। 2018 में अमेरिका भारत के लिए यूरोपीय संघ के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यात बाजार रहा। भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 16 फीसदी और यूरोपीय संघ की 17.8 फीसदी रही थी।

      अमेरिका का रक्षा बाजार बहुत बड़ा है, वह आधुनिकतम तकनीक से निर्मित खतरनाक से खतरनाक साजो-सामान का निर्माण करता है, जिन्हें बेचने के लिए उसे भारत जैसे बड़े बाजार की जरूरत रहती है। वर्ष 2016 में अमेरिका ने भारत को अपने प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में मान्यता प्रदान की थी, जिसके तहत वह अपने सहयोगी देशों को उच्च रक्षा तकनीक बेचने का निर्णय कर सकता है। 2018 में अमेरिका ने भारत को सामरिक व्यापार अधिकार की पहली सूची में भी पदोन्नत कर दिया था, जिसके बाद भारत सशस्त्र ड्रोन जैसी संवेदनशील तकनीकों का भी अमेरिका से आयात कर सकता है। भारत का रूस से हथियार आयात 2008 से 2013 के बीच करीब 78 फीसदी था, जो 2013 से 2018 के बीच घटकर 58 फीसदी रह गया जबकि अमेरिका से यह आयात 2013 से 2018 के बीच करीब 569 फीसदी बढ़ा है। अमेरिका से भारत की रक्षा खरीद वर्ष 2007 के बाद से 17 अरब डॉलर तक पहुंच गई है। ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान तीन अरब डॉलर के रक्षा सौदों पर तो औपचारिक सहमति बनी ही है, इससे पहले 14 जुलाई 2018 को भी भारत का अमेरिका के साथ 22 अपाचे अटैक तथा 15 चिनूक हेलीकॉप्टरों के लिए 210 अरब रुपये से भी ज्यादा का समझौता हुआ था। इसके अलावा 12 फरवरी 2019 को 700 करोड़ रुपये का 71400 अमेरिकी राइफलें खरीदने तथा 11 फरवरी 2020 को 24 सी-हॉक हेलीकॉप्टर खरीदने का 182 अरब रुपये का एक बड़ा समझौता भी हुआ था।

अमेरिकी नीति में भारत का बढ़ता महत्व

      बदलते दौर में अमेरिकी नीति में भारत का महत्व काफी बढ़ा है। इसे इस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा सकता है कि 3 जुलाई 2019 को अमेरिकी संसद द्वारा एनडीएए कानून को मंजूरी देते हुए भारत को अमेरिका के नाटो सैन्य साझेदारों जैसा दर्जा दिया गया, जो अब तक केवल जापान, आस्ट्रेलिया तथा दक्षिण कोरिया जैसे देशों को ही मिला है। राष्ट्रपति रहते बराक ओबामा ने दो बार भारत के दौरे किए और जिस प्रकार ट्रम्प ने भी भारत आकर भारत की महत्ता को स्वीकारा, उससे इसका स्पष्ट आभास हो जाता है। बहरहाल, यह तय है कि ट्रंप की भारत यात्रा के बाद वैश्विक व्यवस्था में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाले नए भारत की भूमिका को अब और मजबूती से स्थापित करने में मदद मिलेगी और भारत-अमेरिका के व्यापारिक रिश्ते भी और मजबूत होंगे।

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