राजनीति

राजनैतिक विद्वेष की भावना से प्रेरित लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट

सत्रह वर्षों में 399 बार सुनवाई, 102 गवाही, 48 बार कार्यकाल बढ़ाने और 8 करोड़ रूपये खर्च करने के बाद लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश होने से पहले ही एक अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र ‘द इण्डियन एक्सप्रेस’ में लीक हो गई, जिसके बाद विपक्षी दलों द्वारा रिपोर्ट को संसद में पेश करने की मांग के बाद, आखिरकार एक हजार पृष्ठों की रिपोर्ट व 13 पृष्ठों की कार्रवाई रिपोर्ट के साथ सदन के पटल पर रख दी गई। उक्त रिपोर्ट के निष्कर्षों में 6 दिसंबर 1992 की घटना को सुनियोजित षडयंत्र बताते हुए आंदोलन से जुड़े सभी 68 लोगों को दोषी करार दिया है। रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व पूज्य संत देवरही बाबा का नाम भी लिया गया है। लिब्रहान आयोग ने अपनी रपट में भाजपा, संघ और विहिप को भी चिन्हित किया है।

आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्ष दुर्भावना से प्रेरित व समाजिक विघटन को बढ़ावा देने वाले हैं। यह रिपोर्ट जिस एक तरफा ढ़ंग से बनायी गयी है उससे यह स्पष्ट हो रहा है कि जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्रहान एक कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में अपने कार्य को अंजाम दे रहे थे। रिपोर्ट के प्रस्तुत करने के तौर-तरीकों के बाद राजनीतिक दलों के बीच उसको भुनाने की प्रक्रिया भी प्रारम्भ हो गई है। आयोग के निष्कर्षों व सिफारिशों को स्वीकार करने के बाद कांग्रेस पार्टी सर्वाधिक रूप से फंस गई है। अब उसके लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई जैसी स्थिति पैदा हो गई है। अब कांग्रेस को यह भय सताने लगा है कि यदि सरकार दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आगे बढ़ती है तो हिंदू वोट बैंक का एक बहुत बड़ा हिस्सा कांग्रेस के हाथ से छिटक जाएगाऔर भाजपा को भविष्य में इसका लाभ मिलेगा। लिब्रहान आयोग ने एक बार फिर उन सभी नेताओं को मंच पर लाने को मजबूर कर दिया है जो किसी न किसी कारणवश भाजपा से दूर हो गए थे। जिसमें उमा भारती व कल्याण सिंह जैसे नेता प्रमुख हैं।

लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट निश्चय ही कांग्रेसी पम्फलैट व अल्पसंख्यक धर्म की भावनाओं को और अधिक गहरा करने का दस्तावेज ही लग रहा है। यह रिपोर्ट जिस प्रकार से लीक हुई वह एक बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व सुनियोजित षडयंत्र का हिस्सा लगती है। सर्वाधिक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि आयोग ने अपने निष्कर्षों में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्री पी. वी. नरसिंह राव की सरकार को छुआ तक नहीं है और न ही आयोग के अध्यक्ष ने कभी भी अयोध्या का भ्रमण किया, जिसके कारण भी रिपोर्ट में तकनीकी खामियां है। परम पूज्य संत देवरही बाबा जिनकी विवादित ढ़ांचा विध्वंस से काफी समय पूर्व ही मृत्यु हो चुकी थी, उनका नाम भी आयोग ने अपनी सूची में डाल दिया है।

6 दिसंबर 1992 की घटना की जांच पूरी हो गयी है, रिपोर्ट लीक भी हुई उसके बाद वह सदन के पटल पर भी रख दी गई व सरकार ने ‘एक्शन टेकन रिपोर्ट’ में सभी सिफारिशों को स्वीकार भी कर लिया है। अब देखना यह है कि सरकार इस रिपोर्ट के माध्यम से क्या दोषियों पर कार्रवाई कर पाएगी? क्या केन्द्र सरकार में, मुआवजे के रूप में बाबरी ढ़ांचे को फिर से खड़ा करने का साहस है? यह कुछ यक्ष प्रश्न हैं, जो कि अभी भी अपने उत्तर खोज रहे हैं। अनेक विद्वानों का मत है कि अब अयोध्या प्रकरण में वह जोश, उमंग व उत्साह नहीं रहा जो 6 दिसंबर 1992 को था। अयोध्या का मुद्दा बहुसंख्यक समाज के आत्म-सम्मान का प्रश्न है। अयोध्या आंदोलन राष्ट्रीय चेतना के प्रवाह को पुष्ट करता है, तथा आगे भी करता रहेगा। यदि अयोध्या में भव्य राम मंदिर को लेकर फिर कोई जनआंदोलन होता है अथवा अयोध्या कूच का आहवान होता है तो हिंदू जनमानस एक बार फिर अपनी ताकत अवश्य दिखाएगा, क्योंकि यह आराध्य श्रीराम का प्रश्न है। अयोध्या काण्ड में दोषी पाए गए लोगों ने रिपोर्ट को रद्दी का टुकड़ा करार दिया है और उसे खारिज कर दिया है। अब तो यह डर सता रहा है कि जिस रिपोर्ट का देश को 17 साल से इंतजार रहा कहीं वह अब ढाक के तीन पात न रह जाए।

– मृत्युंजय दीक्षित