भारत के विषय में विदेशियों के अनुसंधान एवं उनका कथन भाग-2

राकेश कुमार आर्य

गतांक से आगे…..
समस्या का समाधान

हमारे देश के विषय में उन विदेशी विद्वानों के बहुत ही सुंदर विचार रहे हैं जिन्होंने भारत की आत्मा को जानने और समझने का गंभीर प्रयास किया है। हमने पिछले लेख में ऐसे विद्वानों के विचारों को प्रस्तुत किया था। अपने देश के विषय में जानने और समझने के लिए हमारे लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्र में ऐसे विद्वानों, शोधार्थियों, बुद्घिजीवियों की एक धर्म संसद हो जो राष्ट्रहित में, समाजहित में और प्राणिमात्र के हित में, अपने निष्कर्षों और परिणामों की ओर देश की संसद का ध्यान आकृष्ट करते हुए अपनी सम्मति से उसे समय-समय पर अवगत कराये। इस धर्म संसद में राष्ट्र के विभिन्न विषयों के विद्वानों, विशेषज्ञों एवं मर्मज्ञों को ही स्थान मिले। इस धर्म संसद के विद्वानों के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वह भारत के प्राचीन इतिहास, धर्म, और संस्कृति की वैज्ञानिकता और महत्व को समझने वाले और गंभीरता से जानने वाले हों। ऐसे विद्वानों की विचारधारा में किसी भी प्रकार का दोगलापन या अधकचरापन न हो। क्योंकि विचारों का दोगलापन और अधकचरापन ही देश में छदम, धर्म निरपेक्षता और राष्ट्रघाती तुष्टीकरण की नीति का जनक होता है।

हमारी धर्म संसद के विद्वानों के मानसिक स्तर को और उनके ज्ञान की गंभीरता को आरक्षण का पचड़ा छुए तक नही। अपने कार्यों में यह धर्म संसद पूर्णत: स्वतंत्र हो। इसके अनुभवपूर्ण निष्कर्षों को मानने के लिए देश का शासक वर्ग बाध्य हो। इस धर्म संसद का सर्वोपरि लक्ष्य-राष्ट्र समाज और प्राणीमात्र का हित साधन हो। मत, पंथ, संप्रदाय से यह बिल्कुल अछूती हो। इस धर्म संसद में प्रत्येक स्थिति में ऐसे न्यायप्रिय लोग जाने चाहिए जो प्रत्येक प्रकार के मजहबी और जातीय विद्वेषभाव और पूर्वाग्रहों से मुक्त हों। क्योंकि व्यक्ति के भीतर व्याप्त किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह उसे संकीर्ण बनाता है।

पश्चिम की नकल में बहकर हमने लोकतंत्र के जिस स्वरूप को अपने देश में आश्रय और प्राथमिकता प्रदान की है वह राजतंत्र और तानाशाही से भी अधिक भयावह सिद्घ हो चुका है। आज भारत में लोकतंत्र कुछ लोगों की जागीर बन चुका है। जिससे लोकतंत्र भारत में सिसकियां लेता दिखाई देता है।
देश में जिधर भी आप देखेंगे उधर ही वोट माफिया, थैली माफिया, गुण्डा माफियाओं ने लोकतंत्र की दुल्हन का अपहरण कर लिया है। देश पर जिन लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपना आधिपत्य और वर्चस्व स्थापित कर लिया है उनसे राष्ट्र के मूल्यों के संरक्षण और संवर्धन के लिए उन मूल्यों की प्रहरी धर्म संसद ही हो सकती है। इस धर्म संसद को देश के हर वर्ग और संप्रदाय की मान्यता और स्वीकृति प्राप्त होनी चाहिए। परंतु यदि कोई वर्ग या संप्रदाय इस धर्म संसद का केवल इसलिए विरोध करे क्योंकि यह वैदिक मान्यताओं के अनुसार विश्वशांति की कामना करती है और लोगों के मध्य किसी भी प्रकार के वैमनस्य को समाप्त करना अपना उद्देश्य घोषित करती है तो ऐसे वर्ग या संप्रदाय के लेागों की किसी भी बात पर ध्यान न दिया जाए।
वर्तमान संसद विद्वानों, विशेषज्ञों और बुद्घिजीवियों के लिए हेय वस्तु साबित हो चुकी है और बना भी दी गयी है। ये लोग इस संसद से बचते हैं और बचा भी दिये जाते हैं। क्योंकि इस संसद में देश के गुण्डा किस्म के लोगों ने अपना आधिपत्य स्थापित करने और लोकतंत्र का अपहरण करने का पूरा-पूरा प्रबंध कर लिया है।

ऐसे उपायों का सहारा लिया जाए जिससे समाज में सामाजिक समरसता उत्पन्न हो सके और राष्ट्र की निजता को उद्घाटित और स्थापित करने वाले इतिहास और साहित्य के निर्माण पर बल दिया जाए तभी यह राष्ट्र बचेगा, तभी इसके मूल्य बचेंगे, तभी इसकी प्राणिमात्र की हित साधिका संस्कृति बचेगी।

हमें अपने शहीदों का सम्मान करते हुए उनके साथ पुन: गाना होगा-

उरूजे कामयाबी पे कभी हमारा हिन्दोस्तां होगा।
रिहा सैय्याद के हाथों से अपना आशियां होगा।।
वतन की आबरू से पास देखें कौन करता है।
सुना है आज मकतब में हमारा इम्तहां होगा ।। 1

कभी वो दिन भी आये जब अपना राज देखेंगे।
जब अपनी जमीं होगी और अपना आसमां होगा।।
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले।
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा ।। 2।।

हमारे देश की स्थिति वास्तव में आज तक भी वैसी नही बन पाई है जैसी कल्पना हमारे शहीदों ने अपना बलिदान देते समय इस देश के बारे में की थी। हमारी वास्तविक स्थिति तो कुछ इस प्रकार है-

अभी वतन सैय्याद के हाथों से रिहा नही है।
अभी मकतब में इम्तहां भी हमारा बाकी है।।
अभी अपना राज भी नही देख पाये हम।
ऐसा राज जो माफियाओं से मुक्त होगा ।। 1।।

अभी ना अपनी जमीं है और न अपना आसमां है।
अत: स्पष्ट है कि युद्घ हमारा अभी जारी है।।
हमारा आह्वान है क्यों बैठ गये हो थक कर।
घटाओं से घिरे सूरज का मतलब शाम नही है ।। 2

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