धर्मनिरपेक्ष जंग है बाबरीमस्जिद पुनर्निर्माण

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के कल कहा कि अधिकांश हिन्दू चाहते हैं कि राम जन्मभूमि की जगह पर राममंदिर बने। उल्लेखनीय है 24 सितम्बर 2010 को उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट का बाबरीमस्जिद विवाद पर फैसला आने वाला है। इसके पहले अदालत ने दोनों ही पक्षों को बुलाया है जिससे इस विवाद का कोई सामंजस्यपूर्ण हल निकल आए। इस फैसले के आने के पहले ही संघ प्रमुख ने कहा है कि वे चाहते हैं कि रामजन्मभूमि की जगह पर ही राममंदिर बने।

मोहन भागवत चाहते हैं कि मंदिर निर्माण में मुस्लिम मदद करें। यदि फैसला राममंदिर निर्माण के पक्ष में नहीं आता है तो संघ परिवार कानूनी लड़ाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाएगा। इसी क्रम में मोहन भागवत ने कहा कि राम हमारी राष्ट्रीय पहचान के प्रतीक हैं। मंदिर बनने से मुसलमानों के प्रति अविश्वास खत्म होगा। और मुसलमानों का राष्ट्र के साथ एकीकरण होगा।

इस बयान में कई खतरनाक बातें हैं जो मोहन भागवत के फासीवादी नजरिए को व्यक्त करती हैं। पहली बात यह है कि मोहन भागवत ने राष्ट्र की पहचान के साथ राम को जोड़ा है। हिन्दू धर्म को जोड़ा है। राष्ट्र के रूप में भारत की पहचान का आधार धर्म नहीं हो सकता। धर्म के आधार पर ही वे राम को राष्ट्र की पहचान के साथ जोड़ रहे हैं। राम स्वयं में हिन्दू धर्म के एकमात्र प्रतिनिधि देवता नहीं हैं।

जनश्रुति के अनुसार भारत में हिन्दू धर्म में तैतीस करोड़ देवी-देवता हैं और उनमें से एक राम भी हैं। मोहन भागवत बताएं कि उन्होंने किस तर्क के आधार पर राष्ट्र की पहचान के साथ जोड़ा है। आधुनिक समाज में सिर्फ कट्टर ईसाईयत वाले अपने लेखन और नजरिए में धर्म के साथ राष्ट्र को जोड़ते हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान भी अनेक साम्राज्यवादी विचारक धर्म की पहचान और राष्ट्र की पहचान को जोड़ते थे। मोहन भागवत ने राम की पहचान से राष्ट्र को जोड़कर खतरनाक साम्राज्यवादी संदेश दिया है।

उनका दूसरा संदेश यह है कि भारत में मुसलमानों का अभी तक एकीकरण नहीं हुआ है। यदि वे बाबरी मस्जिद की जगह राममंदिर बनाने में मदद दें तो उन्हें राष्ट्र के साथ एकीकरण का मौका मिलेगा।

संघ मार्का फासीवाद की खूबी है कि ये लोग अपने अपनी गलती नहीं मानते। अपनी भूमिका और अन्यायपूर्ण काम के लिए दूसरों के सिर पर जिम्मेदारी ड़ालते हैं। संघ परिवार और उसके संगठन ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए जिम्मेदार हैं। इस विध्वंस के लिए उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए। बाबरी मस्जिद को गिराकर उन्होंने अपराध किया था । उन्होंने एक ऐतिहासिक इमारत गिराने के साथ ही

साथ राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को भी खण्डित किया।साम्प्रदायिक सौहार्द को नष्ट किया । इसके कारण भारत के अनेक शहरों में साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनमें मुसलमानों की करोड़ों रूपये की संपत्ति नष्ट हुई। अनेक निर्दोष लोगों को दंगाईयों ने मौत के घाट उतार दिया। बाबरी मस्जिद का मामला सामाजिक और राजनीतिक अपराध की कोटि में आता है।

कायदे से संघ परिवार को इस मुद्दे को लेकर लचीला नजरिया अपनाना चाहिए। हिन्दू-मुसलमानों के संबंधों में आयी खटास और देश में फैले जहरीले वातावरण को खत्म करने में संघ भूमिका अदा कर सकता है बशर्ते वह दोबारा बाबरी मस्जिद का पुरानी जगह पर निर्माण कराकर दे। अदालत को भी इस पर ध्यान देना चाहिए कि बाबरी मस्जिद ऐतिहासिक इमारत थी जिसे राममंदिर के नाम पर आंदोलन कर रहे संघ परिवार के नेताओं की मौजूदगी में अवैध ढ़ंग से गिराया गया। इस पाप में संघ परिवार के साथ अप्रत्यक्ष ढ़ंग से कांग्रेस भी शामिल है। बाबरी मस्जिद की जमीन पर स्व.राजीव गांधी ने राममंदिर का शिलान्यास करके अपने चुनाव अभियान की अयोध्या से ही शुरूआत की थी।

अदालत का यह फर्ज बनता है कि वह सरकार को बाबरी मस्जिद बनाने का आदेश दे और यह मस्जिद केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार के सरकारी धन से बनायी जाए क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभायी, भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अदालत को दिया वायदा पूरा नहीं किया जिसके लिए वे सुप्रीम कोर्ट से दण्डित भी हुए हैं।

दूसरी बात यह कि बाबरी मस्जिद तोड़ने लिए उन नेताओं और दलों को दण्डित किया जाए जो इस पाप में शामिल थे। उनसे बाबरी मस्जिद नवनिर्माण की पूरी कीमत दण्ड स्वरूप वसूल की जाय। इस प्रसंग में केन्द्र सरकार को पहल करनी चाहिए और जिस तरह ब्लूस्टार ऑपरेशन के बाद स्वर्णमंदिर को बनाया गया वैसे ही बाबरीमस्जिद का भी निर्माण किया जाना चाहिए। सेना की कार्रवाई से ब्लूस्टार ऑपरेशन के दौरान स्वर्णमंदिर को जबर्दस्त क्षति पहुँची थी। यहां पर भी वही हुआ लेकिन भिन्न तरीके से हुआ है।

बाबरीमस्जिद का पुरानी जगह पर नवनिर्माण का आदेश नहीं आता है तो इससे मुसलमानों का मन गहरे सदमे में चला जाएगा और उससे होने वाली सामाजिक क्षति की भरपाई करना संभव नहीं होगा। मुसलमानों का दिल जीतने और इस देश के कानून में आस्था पुख्ता करने लिए जरूरी है कि बाबरी मस्जिद का पुरानी जगह पर निर्माण कराया जाए। मस्जिद गिराने वालों को कड़ी सजा दी जाए।

संघ परिवार के लिए राममंदिर एक नकली विवाद है ,यह मंदिर कभी अयोध्या में नहीं था। उस मंदिर को किसी ने नहीं देखा था। वे जनता में इसे लेकर अलगाव की भावनाएं फैलाते हुए स्वयं अलगाव के शिकार बन गए हैं। संघ परिवार के खिलाफ अदालत का एक कड़ा फैसला आता है तो इससे भारत के धर्मनिरपेक्ष वातावरण को बचाए रखने में मदद मिलेगी। मुसलमानों का भारत के कानून पर विश्वास बढ़ेगा। संघ परिवार के हौंसले पस्त होंगे। वे आगे किसी भी मस्जिद को गिराने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे। यदि अदालत ने किसी भी कारण से यह फैसला बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण के पक्ष में नहीं दिया तो इससे भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की अपूरणीय क्षति होगी। बाबरी मस्जिद गिराने के लिए संघ परिवार दोषी है और बाबरी मस्जिद की जगह राममंदिर बनाने के नाम पर हिन्दू-मुसलमानों के बीच गंभीर सामाजिक विभाजन बनाने का काम कर रहा है। उनके इस कदम से देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की गंभीर क्षति हुई है।

7 COMMENTS

  1. अगर किसि को “धर्मनिर्पेक्षाता” का मतलब बाबरी मस्जिद से समझम मे आता है तो ये मान कर चलिये की बुधि मे भंयंकर दोष है,धर्म से निरपेक्ष लोगो को धर्म से क्या मतलब??बिना बात हर जगह अपनी टांग नही अडानी चाहिये,मस्जिद का सम्र्थन करना धर्म्निरपेक्षता है???एसा है तो भारत ने एस्को उठा कर ६ दिसम्बर को फ़ेक दिया है,और हिन्दु समाज ने एसा किया है किसि संघठन विशेष ने नही,और अगर फ़ैसला हिन्दुओ के पक्ष मे नही आया तो आप कल्पना भी नही कर पायेंगे एसा ज्वार उठेगा……………………………………जैसा समुद्र होता वैसे मानव समुद्र आयेगा,आज का हिन्दु ९२ के हिन्दुओ से कही ज्यादा ताकतवर और जागरुक है,मुसलमानो का चाहिये कि तिनो स्थान हिन्दुओ को सौफ़ कर हर प्रकार के झगडे को खत्म कर दे,जिन लुटेरो ने मन्दिर तोडे वो विदेशि आक्रान्ता थे और आक्रान्ताओ से अपने को जोडना देश्द्रोह है……………

  2. जगदीश्वर जी, अब क्या बात करें……. यानी दुबारा मस्जिद बना दी गई तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश हो जाएगा. और अगर पुराना मंदिर दुबारा बन गया तो ……….. शायद विनाश हो जाये……… मैं भी मानता हूँ. फिर उस मंदिर को गिराने मध्य एशिया से मुस्लिम आक्रांता आयेंगे. फिर भारत को लहुलुहान करेंगे. और अब तो उनके पक्षधर आप जैसे बुद्धिजीवी भी है.

  3. रामचरित मानस में श्रीराम वन गमन प्रसंग में एक प्रसंग है की दक्षिण में उत्तरवर्ती यायावरों के लिए सभी नगर अनजान थे ,अतेव श्रीराम जी ने ऋषि अगस्त से पूंछा की मुनिवर हम कहाँ रहें?इसके उत्तर में मुनि अगस्त ने जो कहा वह सच्चे राम भक्तों के लिए अनुकरणीय है ;
    तुम पूछहु की रहों कहाँ , मैं पूँछत सकाचाऊं . .
    जहँ न होऊ तहं देऊन कहँ,तुम्हें बताबों ठाँव..
    हे . राम आप पूंछते हैं की में कहाँ निवास करूँ .और मैं आपसे ही पूंछता हूँ की आप ही बताएं किआप कहाँ पर नहीं हैं ,पहले वो जगह बत्तायें ..
    गुनानानक्देव जी का किस्सा सबको मालूम है .
    और ग़ालिब के शब्दों में -ये साकी मय पीने दे मस्जिद में बैठकर ,वर्ना वो जगह बता जहां खुदा न हो .-यहाँ सूफियाना अंदाज में प्यार को मय कहा गया है .
    माना कि अयोध्या में एक नहीं सेकड़ों मंदिर पुराने ज़माने में थे और आज भी हैं ,किन्तु जिस जगह विवाद है उस के कुछ तो प्रमाण मिले ही होंगे ,फिर चिता काहे कि .अदालत पर भरोसा कीजिये जैसे कि मुस्लिम उलेमाओं ने कहा है कि हम हर हाल में अदालत का फैसला मानेगे .तो कोई वजह नहीं कि सुसरे पक्ष के कुछ लोग अनावश्यक पूर्वाग्रही टिप्पणियों से वातावरण प्रदूषित करें .श्री जगदीश्वर जी ने
    विगत वर्षों में मंदिर बनाम मस्जिद के नाम पर सामाजिक ताने बाने को क्षतिगृस्त करने वालों को बे नकाब ही किया है ,ताकि देश कि सर्व धर्म समभाव कि फिजां में अब कोई जहर न घोल पाए .जिन लोगों को चतुर्वेदी जी का गंभीर आलेख समझ नहीं आया मुझे उनसे सहानुभूति है .वे स्वयम को अद्द्तन करते रहें .कभी तो उनको वास्तविकता का ahshash hoga

  4. ”धर्म निरपेक्ष जंग है बाबरी मस्जिद निर्माण” में लेखक द्वारा जो विचार प्रकट किए गए है वो आम भारतीयो की स्वाभाविक मंशा से कोसो देर है। लेखक ने भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर मस्जिद बनाने को धर्म निरपेक्षता करार देते हुए वहां मंदिर निर्माण के लिए प्रयास करने वालों को अप्रत्यक्ष रूप से साम्प्रदायिक करार दिया है। जग विदित है कि इस पुण्य पावन देव भूमि पर बने भव्य मंदिर को जब विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी बाबर ने अपने क्रूर प्रहारों से ध्वस्त कर दिया तभी से यहां के समाज को अनेकों लड़ाईयां लडऩी पड़ी। इस जन्मभूमि के लिए सन् 1528 से 1530 तक 4 युद्ध बाबर के साथ, 1530 से 1556 तक 10 युद्ध हुमांयू से, 1556 से 1606 के बीच 20 युद्ध अकबर से, 1658 से 1707 ई में 30 लड़ाईयां औरंगजेब से, 1770 से 1814 तक 5 युद्ध अवध के नवाब सआदत अली से, 1814 से 1836 के बीच 3 युद्ध नसिरूद्दी हैदर के साथ, 1847 से 1857 तक दो बार वाजिदअली शाह के साथ, तथा एक-एक लड़ाई 1912 व 1934 में अंग्रेजों के काल में हिन्दू समाज ने लड़ी। इन लड़ाईयों में भाटी नरेश महताब सिंह, हंसवर के राजगुरू देवीदीन पाण्डेय, वहां के राजा रण विजय सिंह व रानी जय राजकुमारी, स्वामी महेशानन्द जी, स्वामी बलरामाचार्य जी, बाबा वैष्णव दास, गुरू गोविन्द सिंह जी, कुंवर गोपाल सिंह जी, ठाकुर जगदम्बा सिंह, ठाकुर गजराज सिंह, अमेठी के राजा गुरदत्ता सिंह, पिपरा के राजकुमार सिंह, मकरही के राजा, बाबा उद्धव दास तथा श्रीराम चरण दास, गोण्डा नरेश देवी वख्स सिंह आदि के साथ बडी संख्या में साधू समाज व हिन्दू जनता ने इन लड़ाईयों में अग्रणी भूमिका निभाई। श्री राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए उपरोक्त कुल 76 लड़ाईयों के अलावा 1934 से लेकर आज तक अनगिनत लोगों ने संधर्ष किया व इन सभी में लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी। किन्तु, न कभी राम जन्मभूमि की पूजा छोड़ी, न परिक्रमा और न ही उस पर अपना कभी दावा छोड़ा। अपने संघर्ष में चाहे समाज को भले ही पूर्ण सफलता न मिली हो किन्तु, कभी हिम्मत नहीं हारी तथा न ही आक्रमणकारियों को चैन से कभी बैठने दिया। बार-बार लड़ाईयां लडक़र जन्म भूमि पर अपना कब्जा जताते रहे। 6 दिसम्बर 1992 की घटना इस सतत् संघर्ष की एक निर्णायक परिणति थी, ऐसे में रामजन्मभूमि स्थान पर मंदिर का निर्माण करना हिन्दू समाज का नैतिक अधिकार तो है ही साथ ही पिछले एक हजार सालों के विदेशी अपमान के प्रतीकों को धोने का उपक्रम भी है।

  5. श्रीमान जगदीश जी, आपने अपने लेख में जो विचार व्यक्त किये हैं वो आपके व्यक्तिगत विचार हैं तो भी आपको घर बैठ कर ठन्डे दिमाग से उन पर फिर से मनन कर लेना क्योंकि शब्दों की जो बाजीगरी आप कर रहे हैं उसने ही आजादी के बाद से आज तक सभी भारतीयों का स्वत्व भुलाये रखा हैं. आदरणीय जगदीशजी अगर आप भारत के इतिहास के बारे में ठीक तरह से जानते हैं तो आपको याद होगा कि लोर्ड मेकाले नाम के अंग्रेज ने जिस प्रकार की शिक्षा का ताना – बना भारत में अपना राज चलाने के लिए बुना था उससे शिक्षाप्राप्त ऐसे काले अंग्रेजो की पीढ़ी भारत में पैदा हुई जो शारीरिक रूप से तो भारतीय थी किन्तु मानसिक रूप से अंग्रेजी मानसिकता से ओत – प्रोत थी. इन काले अंग्रेजो या साम्यवादी विचारधारा से प्रेरित लोगो को ऐसा कुछ भी अच्छा नहीं लगता जो भारतीयों को गौरव का बोध करता हो. आपने अपने लेख में सरे हिन्दू समाज के आदर्श भगवन राम पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया जो कि हम सब भारतीयों के जीवंत मार्गदर्शक हैं. देश का हिन्दू समाज आपस में अभिवादन राम- राम से करता हैं, कष्टों में भी राम-राम का समरण करता हैं, हमारी अंतिम यात्रा भी राम-नाम सत्य के साथ होती हैं. हिन्दू संस्कृति के अनुसार जननी और जनम भूमि का दर्जा तो स्वर्ग से भी बढ़कर बताया गया हैं ऐसे में भगवन राम और उनकी जन्मभूमि के बारे में हिन्दू समाज कोई समझोता करेगा या वामपंथियों की सलाह के अनुसार जन्मभूमि के स्थान पर किसी प्रकार की कोई मस्जिद बनाने की स्वीकृति प्रदान कर देगा यह सोचना भी दिन में खुली आँखों से सपना देखने के समान हैं. मेरा यह मानना हैं की देश की छीन चुकी भूमि शौर्य से, गया धन मेहनत से, विजय बल से प्राप्त की जा सकती हैं किन्तु यदि देश की राष्ट्रीय चेतना ही सो जाये तो उसे संसार का कोई भी शौर्य, बल, मेहनत नहीं प्राप्त कर sakte . राम जन्मभूमि भारत की राष्ट्रीय चेतना का pratik हैं. जो कि सारे हिन्दू समाज को फिर से गौरव का बोध karayegi

  6. श्री जगदीश चतुर्वेदी के प्रतेक आलेख में मानवीयता सामाजिक समरसता -न्याय और देशभक्ति लबालब भरी हुई होती है .इस आलेख में आसन्न राष्ट्रीय विपदा के निवारण हेतु वैचारिक अवदान को लखनऊ खंड पीठ .इलाहावाद उच्च न्यायलय तथा भारत की ९५ प्रतिशत जनता का समर्थन प्राप्त है .धर्मान्धता में आकंठ जो डूबे हैं उनको रसातल में जाने की तमन्ना है तो इस में किसी का क्या दोष ?

  7. देखिये जगदीश्वर चतुर्वेदी जी…क्षमा करें इस कथन के लिये किन्तु प्रथम तो हमें आपके वामपंथ में हे विश्वास नहीं है. आपको तो ये भी विश्वास नहीं है कि भगवान् राम का कभी जमन भी हुआ था या नहीं, जबकि भारत की अधिकतर जनसँख्या की भगवान् राम में अविचल आस्था है. तो जिस भारत के उत्कर्ष के लिये आपने अपनी ये राय प्रकट की है उस भारत की ८० प्रतिशत जनसँख्या का आपकी विचारधारा से मतभेद होगा, तो भारत के उत्कर्ष में आपकी सलाह नगण्य है जहा के नागरिकों का आपकी विचारधारा में विश्वास ही नहीं है.दूसरी बात ये कि आपको बाबर जो कि भारत के लिये एक आक्रमणकारी था, जिसने भारत के असंख्य हिन्दू परिवारों को नष्ट कर दिया था, जिसने जबरन हिन्दुओं को इस्लाम अपनाने के लिये मजबूर किया, जिसने भारत के असंख्य बच्चो को अनाथ बनाया,जिसने भारत की कई स्त्रियों को विधवा बनाया,जिसने भारत की धन संपदा को लूटा और विजय का रक्त चन्दन लगा मुगलों के माथे पर जो कि हमारे देश के आक्रमणकारी थे, उनकी चिंता आपको है, वो आपको अपने लगते हैं, किन्तु भगवान् राम जो भारत के जनमानस के भीतर तक समाये हहुए हैं, जिन्हें मर्यादा पुर्शोतम कहा जाता है, जिन्होंने दुष्टों का नाश किया, भक्तों का कल्याण किया, धरती पर सत्य की विजय में जिनका योगदान है वो भगवान् राम आपको पराये लगते है, उनका जन्म हुआ भी था या नहीं आपको इसमें संदेह है, तो आपकी सलाह कि हमें आवश्यकता नहीं है. मुसमानों का दिल आप प्यार से जीतना चाहते हैं तो ये बाताएं आज तक कितने लादेन और मुल्ला उमरों के दिल आप जीत पाए हैं, और आपने जीते भी हो तो हमें क्या फर्क पड़ेगा आप तो उन्हें की जुबान बोलेंगे. गुजरात के मुसलमानों का मरना याद है आपको किन्तु कश्मीरी पंडितों के पीड़ा को आप भूल जायेंगे, आसाम और बंगाल में हो रहे हिन्दू संहार से आपका कोई लेना देना नहीं है क्यों की आपका अपना कोई नहीं मारा उसमे. तो चतुर्वेदी जी अपनी सलाह अपने पास हे रखें और छोड़ दें हमारे भारत को क्यों कि इस देश को आप अपना नहीं मानते हैं, इस देश के प्राचीन कथाओं में आपकी आस्था नहीं है,आपकी आस्था तो लेनिन, माओ जैसे विदेशियों में है. हम लेनिन और माओ का विरोध नहीं करते, वो अपने अपने देश के महान क्रांतिकारी थे और उन्होंने अपने देश की आज़ादी के लिये महान संघर्ष किया है. किन्तु ये उनके देश का मामला है उन्ही के देश तक सीमित रहने दें, हमारे देश में इसे थोपने की कोशिश न करें… धन्यवाद…

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