इस बस्ती को कोई गोद लेगा?

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पीर अज़हर
कुपवाड़ा, कश्मीर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आम चुनाव में दुबारा अभूतपूर्व सफ़लता प्राप्त करने का श्रेय उनकी सरकार के पहले कार्यकाल में  शुरू की गई कई जनकल्याणकारी योजना को भी जाता है। इन्हीं में एक सांसद आदर्श ग्राम योजना भी शामिल है। इसके तहत सभी सांसदों को एक गांव गोद लेने और उसका विकास करने के लिए प्रेरित किया गया था। इसके अंतर्गत गांव में सभी मूलभूत बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के अलावा रोज़गार के नए अवसर पैदा करना था ताकि पलायन को रोका जा सके और सभी हाथ को काम मिल सके। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के जियापुर और नागेपुर गांव को सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया था। प्रधानमंत्री के पहल पर विपक्ष के भी अनेक सांसदों ने इस योजना के अंतर्गत अपने क्षेत्र के एक पिछड़े गांव की दशासुधारने के लिए गोद लिया था।

हालांकि अभी भी देश के ऐसे कई गांव और बस्तियां हैं जिन्हें गोद लेकर उनका विकास करने की आवश्यकता है। जम्मू-कश्मीर के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्र कुपवाड़ा के करालागुंड तहसील से एक किमी दूर शेखपाड़ी नाम की एक ऐसी ही अति पिछड़ी बस्ती है जिसे विकास की सबसे ज्यादा ज़रूरत है। यह बस्ती 21वीं सदी में भी बुनियादी सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है। केंद्र अथवा राज्य सरकार की किसी भी योजनाओं का लाभ इस बस्ती में रहने वालों को प्राप्त नहीं हो सका है। यहां रहने वाले परिवारों की गरीबी का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें जीवनयापन के लिए भिक्षा मांगनी पड़ती है। केंद्र और राज्य सरकार के साथ साथ स्थानीय समाज की उपेक्षाओं ने भी इस बस्ती को विकास से कोसों दूर कर दिया है। अति पिछड़े समुदाय से जुड़े इस बस्ती के लोग पिछले चार दशकों से यहां आबाद हैं। बस्ती के निवासियों का दर्द है कि सरकारी योजनाओं का सबसे अधिक हकदार होने के बावजूद उन्हें आज तक किसी योजना का लाभ नहीं मिला है। न तो इन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत पक्के मकान दिए गए हैं और न ही स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय का निर्माण कराया गया है। आज भी यहां के लोग टीन के बने अस्थाई मकानों में जिंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं। जबकि शौच के लिए इन्हें दूसरों के खेतों में जाना पड़ता है और कई बार शौच के दौरान खेत मालिकों द्वारा हिंसा और शोषण का शिकार भी होना पड़ता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शौचालय को इज्ज़त घर से जोड़ा है। ताकि घर की महिलाएं न केवल खुले में शौच से मुक्ति पा सकें बल्कि स्वस्थ्य और स्वच्छ समाज के निर्माण में योगदान भी दे सकें। लेकिन इस बस्ती की महिलाओं को शौचालय की सुविधा नहीं होने से न केवल उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है बल्कि कई बार बस्ती की युवतियों को शोषण का शिकार भी होना पड़ा है। वहीँ दूसरी ओर लकड़ी के चूल्हे और उसके धुंए से मुक्ति दिलाने वाली उज्जवला योजना के तहत मिलने वाले गैस कनेक्शन की सुविधा से भी वंचित हैं। हैरत की बात तो यह है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने और सभी बुनियादी सविधाओं से वंचित होने के बावजूद खाद्य एवं उपभोगता विभाग की ओर से इन परिवारों को बीपीएल की बजाये एपीएल कार्ड उपलब्ध कराये गए हैं। परिणामस्वरूप इन परिवारों को कई सुविधाओं और स्कीमों के लाभ से महरूम होना पड़ रहा है।

इतना ही नहीं केंद्र सरकार जहां सौभाग्य योजना के तहत घर-घर बिजली पहुँचाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है वहीँ जम्मू-कश्मीर के बिजली विभाग ने आठ वर्ष पूर्व न केवल इस बस्ती को अंधेरे में पहुंचा दिया बल्कि वहां से बिजली के तार भी हटा लिए हैं। हालांकि बिजली की सुविधा छिनने के बावजूद आज भी इन परिवारों को इसका बिल भरने पर मजबूर होना पड़ता है। इसके अलावा यहां आबाद लोगों को पीने का साफ़ पानी तक उपलब्ध नहीं है और न ही आजतक पेयजल विभाग ने इस बस्ती को वाटर सप्लाई स्कीम के दायरे में लाने के बारे में कभी गंभीरता से ध्यान दिया है। पीने के पानी और दूसरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए घर की औरतों को दूर-दराज़ नदी, झरनों और बारिश के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है।

बस्ती के ज़्यादातर निवासी अशिक्षित हैं। हालांकि शिक्षा के महत्व को समझते हुए वह अपनी नई पीढ़ी को शिक्षित बनाना चाहते हैं और इसीलिए अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजते हैं लेकिन स्कूल प्रशासन और शिक्षकों का रवैया इन बच्चों के प्रति बहुत ही उदासीन रहता है। गरीबी और गंदगी में रहने के कारण न तो शिक्षक इन्हें पढ़ाने में विशेष रूचि लेते हैं और न ही इन्हें साफ़-सफाई के प्रति जागरूक बनाने का प्रयास करते हैं। आज़ादी के बाद से ही देश में पिछड़े और अति पिछड़े समुदाय के उत्थान के लिए विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। इनके लिए जहां कई कल्याणकारी योजनायें चलाई जा रही हैं वहीँ समय समय पर विभिन्न आयोगों का गठन कर इन्हें समाज में बराबरी का स्थान दिलाने का गंभीरता से प्रयास भी किया जाता रहा है। कुपोषण से लड़ने में विशेष मदद, बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आंगनबाड़ी सुविधा, बीपीएल राशन कार्ड, स्कूल और कॉलेजों में छात्रवृतियां, उच्च पदों में भर्ती की तैयारी के लिए मुफ्त कोचिंग, आर्थिक आधार पर रोज़गार के लिए वित्तीय सहायता, नौकरियों में विशेष आरक्षण और महिलाओं के लिए आरक्षण जैसी सुविधाएं शामिल हैं। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह सारी स्किमें किस काम की जब ऐसे ज़रूरतमंद परिवारों तक इसका उचित लाभ नहीं पहुंच पा रहा है? आवश्यकता है कुपवाड़ा के इस शेखपाड़ी और इसके जैसी अन्य बस्तियों को गोद लेकर उनका सर्वांगीण विकास करने की। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के मूलमंत्र को सार्थक किया जा सकता है।

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