रामस्वरूप रावतसरे
चिक्कबल्लापुर में मीडिया से बातचीत में कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने सीएम सिद्धारमैया के बारे में कहा, “मेरे पास और क्या चारा है? मुझे उनके साथ खड़ा होना है और उनका साथ देना है। मुझे इसमें कोई ऐतराज नहीं है। पार्टी हाईकमान जो कहेगा, जो फैसला करेगा, वो पूरा होगा, मैं अभी इस पर कुछ बोलना नहीं चाहता। लाखों कार्यकर्ता इस पार्टी के साथ हैं।‘
कर्नाटक की सियासत में एक बार फिर डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने साफ कर दिया है कि वह पूरे पाँच साल तक अपनी कुर्सी पर बने रहेंगे। इस बयान ने शिवकुमार और उनके समर्थकों के अरमानों पर पानी फेर दिया। शिवकुमार ने मजबूरी में सिद्धारमैया का साथ देने की बात कही लेकिन उनके बयान में छिपी निराशा साफ झलक रही थी।
राजनीतिक पंडितों की माने तो डीके शिवकुमार का यह कहना कि मेरे पास और कोई रास्ता नहीं, मुझे उनके साथ खड़ा होना ही है। यह बयान उनकी उस हताशा को दिखाता है जो बार-बार हाईकमान के फैसलों से उपज रही है। दरअसल, कर्नाटक में कॉन्ग्रेस की सत्ता को मजबूत करने में शिवकुमार की मेहनत को कोई नकार नहीं सकता, फिर भी उन्हें बार-बार इंतजार करने को कहा जा रहा है। क्या वह हमेशा ‘सीएम इन वेटिंग’ बने रहेंगे या कोई बड़ा सियासी कदम भी उठा सकते हैं?
इधर सिद्धारमैया ने पत्रकारों से बातचीत में दो टूक कहा, “हाँ, मैं मुख्यमंत्री बना रहूँगा। आपको क्यों शक है?” उन्होंने भाजपा और जेडी(एस) पर नेतृत्व परिवर्तन की अफवाहें फैलाने का आरोप लगाया। दूसरी तरफ डीके शिवकुमार ने सिद्धारमैया के बयान के बाद कहा, “मुख्यमंत्री के सामने मेरा कोई सवाल ही नहीं उठता। मैंने किसी से मेरे पक्ष में बोलने को नहीं कहा।‘ डीके ने यह भी जोड़ा कि कॉन्ग्रेस हाईकमान का जो भी फैसला होगा, वह उसे मानेंगे लेकिन उनके इस बयान में वह जोश और आत्मविश्वास नहीं दिखा, जो पहले उनके भाषणों में झलकता था। यह साफ है कि हाईकमान ने एक बार फिर सिद्धारमैया को प्राथमिकता दी है और शिवकुमार को इंतजार करने को कहा गया है।
साल 2023 के विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस की जीत के बाद शिवकुमार को उम्मीद थी कि उन्हें सीएम की कुर्सी मिलेगी। उनकी मेहनत और संगठन कौशल ने पार्टी को 135 सीटें दिलाई थीं। सूत्रों की मानें तो उस वक्त ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले की बात हुई थी, जिसमें सिद्धारमैया और शिवकुमार बारी-बारी से सीएम बनते। लेकिन अब सिद्धारमैया ने साफ कर दिया है कि वह पूरे कार्यकाल तक कुर्सी नहीं छोड़ेंगे और हाईकमान ने भी इस पर मुहर लगा दी है।
बताया जाता है कि कर्नाटक की सियासत में जाति का एंगल हमेशा से अहम रहा है। डीके शिवकुमार ताकतवर वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं जो कर्नाटक की राजनीति में बड़ा प्रभाव रखता है। उनके समर्थकों का मानना है कि पार्टी ने उनके साथ नाइंसाफी की है। हाल ही में वोक्कालिगा समुदाय के कुछ धर्मगुरुओं ने भी शिवकुमार के पक्ष में बयान दिए थे। दूसरी तरफ सिद्धारमैया पिछड़े वर्ग (कुर्मी) से हैं, और उनका सामाजिक आधार भी मजबूत है। कॉन्ग्रेस हाईकमान ने सिद्धारमैया को समर्थन देकर यथास्थिति बनाए रखने का फैसला किया।
कॉन्ग्रेस विधायक इकबाल हुसैन ने दावा किया था कि 100 से ज्यादा विधायक शिवकुमार को सीएम बनाने के पक्ष में हैं। उन्होंने कहा था कि अगर कॉन्ग्रेस को 2028 में सत्ता में वापसी करनी है तो शिवकुमार को मौका देना होगा लेकिन हाईकमान ने हुसैन को नोटिस थमाकर चुप करा दिया। यह दिखाता है कि पार्टी में अनुशासन की आड़ में शिवकुमार के समर्थकों को दबाया जा रहा है। कर्नाटक विधानसभा में कॉन्ग्रेस के 138 विधायक हैं जिसमें से करीब 100 शिवकुमार के साथ माने जाते हैं। फिर भी हाईकमान ने सिद्धारमैया को प्राथमिकता दी।
कॉन्ग्रेस हाईकमान ने इस पूरे मामले में सधी हुई चाल चली। सूत्रों के मुताबिक, बिहार चुनाव तक सिद्धारमैया को बनाए रखने का बहाना बनाया गया। हाईकमान को डर है कि सिद्धारमैया को हटाने से बिहार में पिछड़े वर्ग के बीच गलत संदेश जाएगा और भाजपा इसे भुनाएगी। साथ ही शिवकुमार के खिलाफ चल रही सीबीआई जाँच को भी फैसले में शामिल किया गया। 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग केस में उनकी जेल यात्रा को याद दिलाकर कहा गया कि अगर वह सीएम बने तो भाजपा जाँच एजेंसियों को और सक्रिय कर सकती है जिससे कॉन्ग्रेस को नुकसान हो सकता है। यही नहीं, मल्लिकार्जुन खरगे ने सिद्धारमैया के पक्ष में फैसला लेते हुए यह भी सुनिश्चित किया कि उनके बेटे प्रियांक खरगे का नाम भी सीएम की दौड़ में बना रहे। सूत्रों का कहना है कि सिद्धारमैया ने शिवकुमार के सामने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ने की शर्त रखी थी लेकिन शिवकुमार ने इसे ठुकरा दिया। इसके बाद गेंद हाईकमान के पाले में गई और खरगे ने यथास्थिति बनाए रखने का फैसला किया।
जानकारों की माने तो शिवकुमार की स्थिति एमपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया, छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव और राजस्थान में सचिन पायलट जैसी है, जिन्हें भी कॉन्ग्रेस ने लंबे समय तक इंतजार कराया। सिंधिया ने आखिरकार बगावत कर भाजपा का दामन थाम लिया जबकि पायलट ने धैर्य रखा। हालाँकि शिवकुमार ने अब तक तो कॉन्ग्रेस के प्रति वफादारी दिखाई है लेकिन उनके समर्थकों में बेचैनी बढ़ रही है। वोक्कालिगा समुदाय का गुस्सा और उनकी अपनी महत्वाकांक्षा देर-सबेर कोई बड़ा सियासी तूफान ला सकती है। क्या शिवकुमार बगावत करेंगे? यह संभावना कम लगती है क्योंकि वह कॉन्ग्रेस के लिए कर्नाटक में एक मजबूत चेहरा हैं लेकिन अगर हाईकमान बार-बार उनकी अनदेखी करता रहा तो उनके धैर्य की भी सीमा टूट सकती है। फिलहाल उन्होंने हाईकमान के फैसले को स्वीकार कर लिया है लेकिन उनके समर्थकों का मानना है कि यह शांति ज्यादा दिन नहीं टिकेगी।
कर्नाटक की सियासत में यह ड्रामा अभी थमा नहीं है। सिद्धारमैया की कुर्सी फिलहाल सुरक्षित है लेकिन शिवकुमार और उनके समर्थकों की बेचैनी बनी रहेगी। अगर कॉन्ग्रेस 2028 के चुनाव में कमजोर प्रदर्शन करती है, तो शिवकुमार के लिए मौका बन सकता है लेकिन अगर हाईकमान ने फिर से उनकी अनदेखी की, तो कर्नाटक में कॉन्ग्रेस की एकता पर सवाल उठ सकते हैं। भविष्य में क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
रामस्वरूप रावतसरे