कविता

बारिश हो इतनी,कि सब नफरते धुल जाये

बारिश हो इतनी,कि सब नफरते धुल जाये |
आपस के हमारे सब गिले-शिकवे धुल जाये ||

इन्सानियत तरस गयी है,अब मोहब्बत के शैलाब को |
मन-मुटाव को छोड़ कर एक दूजे के गले मिल जाये ||

फट गये है जो दिल,आपस के मन मुटाव से |
सिलाई कभी न उधडे,ऐसे वे अब सिल जाये ||

अमन चैन हो दुनिया में,दुश्मनी किसी से न हो |
दोस्ती के सभी दरवाजे,सभी के लिये खुल जाये ||

जाति-धर्म का कोई भेद न हो,बस एक हिन्दुस्तान हो जाये |
सियासत अब बंद हो,सभी एक दूजे की पार्टी में मिल जाये ||

गुजारिस है रस्तोगी की सभी से,सब एक हो जाये |
फिरका परस्ती छोड़ कर,सब आपस में मिल जाये ||

आर के रस्तोगी 
मो 9971006425