ये कैसी राजनीति ?

सुप्रिया सिंह

 

बिहार विधानसभा चुनाव में व्यस्त भाजपा के लिए इस समय उसके सहयोगी ही उसकी परेशानियों का कारण बने हुए है और पार्टी की फजीहत कराने में लगे है। लम्बे समय से गठबंधन में रहे भाजपा और शिवसेना इस समय एक दूसरे पर बयानी वार छोड़ने का काम कर रहे है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजो से ही दोनों पार्टियो के रिश्ते ठीक नही चल रहे है। सरकार बनाने से लेकर मंत्री बनाने तक दोनों में से कोई भी दूसरे के सामने झुकने को तैयार नही था और न ही बिना सरकार बनाये रहने को तैयार था । उस समय आपसी समझौते से दोनों ने अपने मतभेद तो शान्त कर लिए थे लेकिन मनभेद अभी तक दूर नही कर पाये है। शिवसेना ने महारष्ट्र में हर बार किसी न किसी रूप में ऐसा गठबंधन धर्म निभाया कि भाजपा को जवाब देना मुश्किल हो गया। चाहे वे सूखा प्रभावित क्षेत्र का सवाल हो या चिक्की घोटाले का सवाल हो हर मुद्दे पर शिवसेना ने विपक्ष की तरह बर्ताव किया। शिवसेना को भी समझना होगा कि वे भाजपा की सहयोगी है न कि विपक्षी। इस समय एक बार फिर शिवसेना का राष्ट्रवादी और हिंदुत्व का रूप जाग गया है। शिवसेना पाकिस्तानी कलाकारों का जिस तरह विरोध कर रही और आयोजको को खुली चेतावनी दे रही है ,वे वाकई चिंता की बात है। शिवसैनिको दवारा जिस तरफ आयोजकों को आयोजन कराने के बाद परिणाम भुगतने की चेतावनी दी जा रही है और पाकिस्तानी लेखको की पुस्तक विमोचन कराने वालो पर हमला किया जा रहा है , ये देश कि छवि के लिए नुकसानदायक है। शिवसेना इस तरह पाकिस्तानी कलाकारों का विद्रोह कर अपने आप को सबसे बड़ा देशभक्त साबित करना चाहती और देश में यह साबित करना चाहती है कि उसके इस फरमान में देशवासी उसका साथ दे रहे है। पर यह सभी जानते है कि शिवसेना का प्रभाव क्षेत्र महाराष्ट्र के अतिरिक्त देश के किसी अन्य क्षेत्र में कितना है ? इन सब घटनाओ पर भाजपा कि नरमी शिवसेना के हौसले बुलंद कर रही है। शिवसेना का विरोध न करने के पीछे भाजपा कि अपनी भी राजनीति है। भाजपा इस समय अपने सहयोगी शिवसेना का विरोध नही करना चाहती क्योकि ऐसा करके वे इस समय महाराष्ट्र की अपनी सरकार को बीच मझधार में नही छोड़ सकती है। भाजपा इस समय अपना ध्यान बिहार चुनाव पर ही केन्द्रित रखना चाहती है चाहे इसके लिए उसे शिवसेना का विरोध ही क्यों न झेंलना पड़े। क्या खूब राजनीति कर रही है ये पार्टिया ??????? दोनों अपना -अपना स्वार्थ देख रही है। देश की धूमिल होती छवि पर दोनों में से किसी का ध्यान नही जा रहा है। एक पार्टी निगम चुनाव पर तो दूसरी बिहार चुनाव पर विजय के सपने सजाये बैठी है। दोनों में से कोई भी पार्टी ये नही सोच रही है कि इससे देश की छवि अंतर्राष्ट्रीय पटल पर खराब हो रही हैं।आंतरिक राजनीति अपनी जगह ठीक है पर कोई भी राजनीति ऐसी नही होनी चाहिए कि उससे देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अपनी बढ़ती भूमिका खो बैठे।

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