जम्‍मू-कश्‍मीर वार्ताकार रिपोर्ट का अंतिम प्रतिवेदन

जम्मू और कश्मीर के लिए वार्ताकारों का समूह
जम्मू और कश्मीर की जनता के साथ एक नया समझौता
अंतिम प्रतिवेदन
 
राधा कुमार
एम.एम.अंसारी
दिलीप पडगाँवकर, अध्यक्ष
 
मूल अंग्रेजी रिपोर्ट का गैर-सरकारी हिन्दी अनुवाद  
अनुवादक – डॉ. महेश चन्द्र गुप्त; पूर्व निदेशक (राजभाषा) गृह मंत्रालय
 
जम्मू और कश्मीर के लिए वार्ताकारों का समूह
जम्मू और कश्मीर की जनता के साथ एक नया समझौता
अंतिम प्रतिवेदन
 
कार्यसाधक सारांश
इस प्रतिवेदन की सामग्री मुख्यतः जम्मू और कश्मीर के सब 22 जिलों में 700 से अधिक प्रतिनिधिमण्डलों और तीन गोलमेज़ सम्मेलनों में समूहों के साथ वार्ता का परिणाम है। हमने 13 अक्टूबर 2011 को अपनी नियुक्ति के बाद यह सब कार्य किया। प्रतिनिधि मण्डलों में राज्य और स्थानीय स्तर की राजनीतिक पार्टियों, मानव अधिकारों की रक्षा में लगे सिविल सोसायटी समूहों, विकास और सुशासन के कार्य में लगे संघों, छात्र संगठनों, शैक्षिक बन्धु-बान्धवों, वकीलों के संघों, पत्रकारों और व्यापारियों, व्यापार संघों, मज़हबी संस्थाओं, विशिष्ट जातिगत समूहों के सामुदायिक संगठनों, लड़ाई या स्थानिक हिंसा के कारण अपने घरों से उजड़े लोगों, नव-निर्वाचित पंचायत सदस्यों, पुलिस के उच्च अधिकारियों, अर्धसैन्यबलों और सेना का प्रतिनिधित्व था। तीन गोलमेज़ सम्मेलनों में जिनमें से दो श्रीनगर में और एक जम्मू में हुआ, एक साथ महिलाएं, पढ़े-लिखे लोग/स्वयंसेवक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता शामिल हुए जो राज्य के तीनों क्षेत्रों अर्थात् जम्मू, कश्मीर और लद्दाख से संबंधित थे।
जिन तीन बड़ी सभाओं में हम शामिल हुए उनमें कई हज़ार सामान्य-नागरिक आए और उन्होंने अनेक मामलों पर अपने विचार प्रकट किए। इसके साथ-साथ श्रीनगर में केन्द्रीय कारागार में हम दहशतगर्दों और पत्थर मारने वालों से भी मिले और मानवाधिकारों के दुरुपयोग के तथाकथित शिकार लोगों के परिवारों से भी मिले। इस प्रतिवेदन में जम्मू और कश्मीर से संबंधित व्यापक साहित्य, विद्वत्तापूर्ण अध्ययन और पत्रकारों द्वारा दी गई रिपोर्टें, मुख्यधारा और मुख्यधारा से बाहर के राजनीतिक संगठनों द्वारा जारी किए गए वे प्रलेख जिनमें राजनीतिक समझौता के  प्रस्ताव थे, चिंतकों की रचनाएं, पिछले कई दशकों के दौरान केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा स्थापित विभिन्न कार्यकारी समूहों और आयोगों की रिपोर्टें, भारत संघ में जम्मू और कश्मीर के विलय से लगाकर राजनीतिक सांविधानिक क्रियाकलापों से संबंधित सरकारी प्रलेख शामिल किए गए हैं।
कश्मीर घाटी में वर्तमान उत्पीड़न की गहरी भावना का पूरा लेखा-जोखा लेकर हमने राजनीतिक समझौता प्रस्तावित किया है। निश्चित रूप से इस पर पूरी संवेदनशीलता से गौर करने की जरूरत है। इसके साथ-साथ हमने किसी एक क्षेत्र या मानव जातीय या धार्मिक समुदाय के नज़रिए से राज्य को सताने वाले असंख्य मामलों को देखने की फाँसों से बचने की कोशिश की है।
हमारे साथ हुई वार्ताओं से यह पता चला है कि जनता की मान-मर्यादा से जीवन जीने की व्यापक इच्छा है। विशेषतः उन्होंने निम्नलिखित इच्छाएं व्यक्त की हैं:-
  मज़हबी अतिवाद संबंधी सब शक्तियों, मानव जातीय या क्षेत्रीय दुराग्रहों और बहुसंख्यावादी उस अहंभाव जो साम्प्रदायिक और अंतरक्षेत्रीय भाईचारे को अस्त-व्यस्त करता है, इन सबसे छुटकारा
  एक अपारदर्शी और गैर-जिम्मेदार प्रशासन से छुटकारा,
  उन आर्थिक ढाँचों, नीतियों और कार्यक्रमों से छुटकारा, जो राज्य के सब भागों के समग्र आर्थिक विकास और संतुलित उन्नति को बढ़ाने संबंधी प्रयासों को कमज़ोर करते हैं।
  उन सब सामाजिक ढाँचों और नीतियों से छुटकारा जो वंचित सामाजिक समूहों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को हानि पहुँचाते हैं।
  उन कठोर कानूनों या कठोरता से लागू किए जाने वाले कानूनों और न्यायिक देरियों (विलम्ब) से छुटकारा जिनके कारण उचित असहमति वाले मामले सुलझ नहीं पाते।
  उस अभित्रास और हिंसा से छुटकारा जिसके कारण लोगों को अपने पर्यावास (हैबिटैट)  छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ता है।
  सब समुदायों की मज़हबी, भाषायी और सांस्कृतिक अस्मिता को मिल रही धमकियों से छुटकारा
  प्रचार माध्यमों, पत्रकारों, सूचना-अधिकार कार्यकर्ताओं, नागरिक अधिकारों के लिए संघर्षरत समूहों और सांस्कृतिक संगठनों पर बनाए जा रहे दबावों से छुटकारा
हमारा विश्वास है कि निम्नलिखित बिन्दुओं पर व्यापक सहमति विद्यमान है:-
  सब पणधारियों (जिनका सब कुछ दाँव पर लगा है) जिनमें वे भी शामिल हैं जो मुख्यधारा के भाग नहीं हैं, के बीच संवाद के द्वारा जम्मू-कश्मीर  में राजनीतिक समझौता होना चाहिए।
  लोकतंत्र और बहुलतावाद के प्रति उनका समर्पण असंदिग्ध होना चाहिए।
  भारत संघ के भीतर जम्मू और कश्मीर एकल सत्ता के रूप में बना रहना चाहिए।
  राज्य की अलग पहचान की गारंटी देने वाला अनुच्छेद 370 बना रहना चाहिए। विगत दशाब्दियों में हुए इसके क्षरण का पुनः मूल्यांकन किया जाना चाहिए ताकि इसमें उन शक्तियों का समावेश हो जाए जिनकी राज्य को अपने तौर पर लोगों के कल्याण के बढ़ावे के लिए ज़रूरत है।
  राज्य के नागरिक और भारतीय नागरिक के नाते पिछले तनावों के बिना लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग कर सकें अन्यथा पारदर्शी और जिम्मेदार शासन सुनिश्चित नहीं किया जा सकता और न ही स्वाधीनता और सांस्कृतिक पहचान, सम्मान और प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा सुनिश्चित की जा सकती।
  जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीनों क्षेत्रों और विभिन्न मानव-जातीय और मज़हबी समूहों, लड़ाइयों या स्थानिक हिंसा के कारण अपने घरों से बेघर हुए लोगों के उप क्षेत्रों की भिन्न-भिन्न आकांक्षाओें की पूर्ति के प्रति ध्यान दिया जाना चाहिए।
  क्षेत्र, जिला, खण्ड और पंचायत/नगर-पालिका परिषद स्तर पर निर्वाचित निकायों को वित्तीय और प्रशासकीय शक्तियां देकर सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है।
  राज्य को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता देने के लिए केन्द्र और राज्य के बीच एक नई वित्तीय व्यवस्था की आवश्यकता है। इसके लिए पहाड़ी, पिछड़े और दूरस्थ क्षेत्रों और सामाजिक रूप से वंचित समूहों के लिए विशेष व्यवस्था की आवश्यकता होगी।
  नियंत्रण रेखा और अन्तरराष्ट्रीय सीमा के आर-पार जनता, साजो-समान और सेवाओं का बाधा-रहित संचलन तत्परता से सुनिश्चित किया जाना चाहिए जिससे आपसी हित और आवश्यकताओं के सब क्षेत्रों में पूर्व शाही राज्य के दोनों भागों के बीच संस्थागत सहयोग हो जाए।
  यह अच्छी तरह से तभी हो सकता है जब उस जम्मू और कश्मीर के, जो इस समय पाकिस्तान के नियंत्रण में है, विभिन्न भागों में राज्य, क्षेत्र, उपक्षेत्र स्तर पर लोकतांत्रिक शासन के संस्थान स्थापित हो जाएं।
इस सहमति के निर्माण के लिए हमारी संस्तुति है कि सन् 1952 के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद राज्य में लागू हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेदों और सब केन्द्रीय अधिनियमों की समीक्षा के लिए सांविधानिक समिति बनाई जाए। इसके प्रधान ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्ति होने चाहिए जिन्हें जम्मू और कश्मीर के लोगों और संपूर्ण भारत के लोगों का विश्वास प्राप्त हो। इसके सदस्यों में ऐसे सांविधानिक विशेषज्ञ होने चाहिए जिन्हें सब प्रमुख पणधारियों का विश्वास सुलभ हो। इसके निष्कर्ष जो छः महीने के भीतर प्राप्त होने हैं, उन सभी पर बंधनकारी होंगे।
सांविधानिक समिति को हमारे द्वारा प्रस्तावित निम्नलिखित आधार पर समीक्षा करने का अभिदेश (मेन्डेट) दिया जाएगा।
इसे (उस समिति को) जम्मू और कश्मीर के दोहरे चरित्र को ध्यान में रखना होगा अर्थात् यह भारत संघ की एक घटक ईकाई है और इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 में उल्लिखित उक्त संघ में विशेष दर्जा प्राप्त है और राज्य के लोगों की भी दोहरी स्थिति है अर्थात् वे राज्य और भारत दोनों के नागरिक हैं। इसलिए इस समीक्षा से यह निर्धारण करना होगा कि क्या और किस हद तक उन केन्द्रीय अधिनियमों और भारत के संविधान के अनुच्छेदों ने जो राज्य पर संशोधन सहित या संशोधन के बिना लागू किए गए हैं, जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और राज्य की जनता का कल्याण करने वाली सरकार की शक्तियों को छोटा किया है। सांविधानिक समिति को भविष्योन्मुखी होना चाहिए अर्थात् इसे पूर्णतया राज्य की शक्तियों के आधार पर समीक्षा करनी चाहिए जिनकी आवश्यकता राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख तीनों क्षेत्रों और इसके उपक्षेत्रों के लोगों और समुदायों की आकांक्षाओं, शिकायतों, आवश्यकताओं, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हितों से निबटने के लिए जरूरत है। इस संबंध में समिति को यह बताना पड़ेगा कि तीनों क्षेत्रों के शासन के सब स्तरों यानि क्षेत्रीय, जिला, पंचायत/नगर-पालिका परिषद को राज्य सरकार की तरफ से किस मात्रा में विधायी, वित्तीय और प्रशासकीय शक्तियां दी जानी चाहिए।
सांविधानिक समिति की सिफारिशें आम सहमति द्वारा की जानी चाहिए जिससे कि वे राज्य की विधान सभा और संसद में प्रतिनिधित्व प्राप्त सब पणधारियों को स्वीकार्य हों। अगला कदम राष्ट्रपति जी को उठाना होगा जो संविधान के अनुच्छेद 370 के खण्ड (1) और (3) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके सांविधानिक समिति की सिफारिशों का समावेश करते हुए एक आदेश जारी करके किया जाएगा। इस आदेश की अभिपुष्टि संसद के दोनों सदनों में एक विधेयक प्रस्तुत करके की जाएगी और साथ-साथ राज्य विधान मण्डल के दोनों सदनों में प्रत्येक सदन में मतदान करा के उपस्थित कुल सदस्यों के दो तिहाई बहुमत के द्वारा अभिपुष्टि करानी आवश्यक होगी। इसके बाद इसे राष्ट्रपति जी की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
इस क्रियाविधि के पूरा होने पर अनुच्छेद 370 के खण्ड (1) और (3) क्रियाशील नहीं रहेंगे और इसके बाद अंतिम आदेश की तारीख से उक्त खण्डों के अधीन राष्ट्रपति जी के द्वारा कोई भी आदेश जारी नहीं किया जाएगा।
सांविधानिक समिति के कार्य को सुविधाजनक बनाने के लिए हम अपने सुझाव नीचे सूचीबद्ध कर रहे हैं:-
हम जम्मू और कश्मीर के साथ एक नया समझौता चाहते हैं। इसमें व्यापक तौर पर राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मामले होंगे।
राजनीतिक घटक: केन्द्र राज्य संबंध
हमारा विश्वास है कि पिछले छह दशकों में राज्य पर लागू किए केन्द्रीय कानूनों के बने रहने से कोई जोरदार आपत्तियां पैदा नहीं होनी चाहिएं। उन्हें उस रूप में ही देखा जाना चाहिए जैसे वे हैं: अहानिकर कानून जो राज्य को और इसकी जनता को लाभप्रद रहे हैं और राज्य इनके कारण अन्तरराष्ट्रीय मानकों, मापदण्डों और विनियमों के अनुरूप बन सका है। उदाहरण के लिए अफीम, समाचार-पत्र और पुस्तकों का पंजीयन, मज़दूरी का भुगतान और बीमा संबंधी कानून।
हमारा यह विश्वास है कि सातवीं अनुसूची की सूची प्प्प् में से कुछ विषय  राज्य को अंतरित कर दिए जाएं तो राष्ट्रीय हितों पर विशेष प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। नए समझौते के राजनीतिक घटकों के अध्याय में इस संबंध में विस्तृत सुझाव दिए गए हैं। वस्तुतः जो भविष्य-उन्मुखी मार्ग हमने सुझाया है – उसमें रणनीतिक, राजनीतिक, आर्थिक और राज्य में सांस्कृतिक परिवर्तन, संपूर्ण भारत में, दक्षिण एशियाई क्षेत्र में और वैश्वीकरण के फलस्वरूप उसके आगे होने वाले परिवर्तनों पर पूरा ध्यान रखा जाना है – इस परिप्रेक्ष्य में भारत के संविधान के उन अनुच्छेदों पर जो राज्य को लागू किए गए हैं त्वरित समझौता कर लेने में पणधारियों को सुगमता होगी।
 
विवाद के कुछ मामलों में हमारी सिफारिशें निम्नलिखित हैं:-
 संविधान के अनुच्छेद 370 के शीर्षक और भाग ग्ग्प् के शीर्षक से ‘अस्थायी’ शब्द हटाना। इसके बजाए अनुच्छेद  371 (महाराष्ट्र और गुजरात), अनुच्छेद 371-ए (नागालैण्ड), अनुच्छेद 371-बी  (असम), अनुच्छेद 371-सी (मणिपुर), अनुच्छेद 371-डी और ई (आन्ध्र प्रदेश), अनुच्छेद 371-एफ (सिक्किम), अनुच्छेद 371-जी (मिज़ोरम), अनुच्छेद 371-एच (अरुणाचल प्रदेश), अनुच्छेद 371-आई (गोवा) के अधीन अन्य राज्यों की तर्ज पर ‘विशेष’ शब्द रखा जाए।
 राज्यपाल के चयन के लिए राज्य सरकार विपक्षी पार्टियों से परामर्श करके राष्ट्रपति को तीन नाम भेजेगी। आवश्यक होने पर राष्ट्रपति अधिक सुझाव माँग सकते हैं। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और वह राष्ट्रपति जी की कृपा से पदधारण करेगा।
 अनुच्छेद 356: वर्तमान में राज्यपाल की कार्रवाई को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। वर्तमान व्यवस्था इस परन्तुक के साथ जारी रह सकती है कि राज्यपाल  राज्य विधानमण्डल को निलम्बित अवस्था में रखेगा और तीन महीने के भीतर नए चुनाव कराएगा।
 अनुच्छेद 312: अखिल भारतीय सेवाओं से लिए जा रहे अधिकारियों का अनुपात धीरे-धीरे कम किया जाएगा और प्रशासनिक दक्षता में रुकावट बिना राज्य की सिविल सेवा से लिए जाने वाले अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जाएगी।
 अंग्रेजी में गवर्नर और मुख्यमंत्री के नाम जैसे आज हैं वैसे ही रहेंगे। उर्दू प्रयोग के दौरान उर्दू पर्यायवाची शब्द इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
 तीन क्षेत्रीय परिषदें बनाना , जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लिए अलग-अलग (लद्दाख आगे से कश्मीर का एक मण्डल नहीं रहेगा)। उन्हें कुछ विधायी, कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां दी जाएं। समग्र पैकेज के भाग के रूप में पंचायती राज संस्थाओं को राज्य के स्तर पर, ग्राम पंचायत, नगर-पालिका परिषद या निगम के स्तर पर कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां भी देनी होंगी। ये सब निकाय निर्वाचित होंगे। महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व के लिए प्रावधान होंगे। (भाग-टप् देखिए)
 विधायक पदेन सदस्य होंगे, जिन्हें मतदान का अधिकार होगा।
 संसद राज्य के लिए कोई कानून तब तक नहीं बनाएगी जब तक इसका संबंध देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से और इसके महत्वपूर्ण आर्थिक हित, विशेषतः ऊर्जा और जल संसाधनों की उपलब्धि के मामलों से न हो।
 पूर्व शाही रियासत के सब भागों में ये परिर्वतन समान रूप से लागू होने चाहिए। नियंत्रण रेखा के आर-पार सहयोग के लिए सब अवसरों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए पाकिस्तान नियंत्रित जम्मू और कश्मीर में पर्याप्त सांविधानिक परिवर्तन आवश्यक होंगे।
 दक्षिण और मध्य एशिया के बीच जम्मू और कश्मीर एक सेतु बन जाए इसके लिए सब उचित उपाय करने होंगे।
सातवीं अनुसूचीकी सूची प् प् में से वे विषय जो राज्य विधान मण्डल से क्षेत्रीय परिषदों को अंतरित किए जा सकते हैं,  हमारी रिपोर्ट में विस्तार में दिए गए हैं।
राज्य विधान मण्डल को चाहिए कि राज्य विधान मण्डल को अंतरित सूची प्प्प् के विषयों में से क्षेत्रीय परिषदों को कुछ विषय दे देने के बारे में विचार करे। गोरखालैण्ड पर हुए समझौते के ए और बी भागों में सूचीबद्ध विषयों पर भी विचार किया जा सकता है।
पंचायती राज संस्थाओं को दी जाने वाली वित्तीय और प्रशासकीय शक्तियां भारत के संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों की तर्ज पर होंगी।
बी-सांस्कृतिक सीबीएम (विश्वास स्थापन के उपाय)
राज्य के तीनों क्षेत्रों के पुनः एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए नीचे लिखे सांस्कृतिक कदम उठाए जाएं:-
अंतर और अंतः कश्मीर संवाद आरंभ किए जाएं, छात्रों, लेखकों, कलाकारों और शिल्पकारों का आदान-प्रदान शुरु किया जाए, कलाओं के लिए उचित मूलभूत ढाँचा बनाया जाए, बहु-सांस्कृतिक पाठ्यचर्या विकसित की जाए, राज्य की अनेक भाषाओं में अनुवाद की सेवाओं की व्यवस्था की जाए, राज्य की लोक-परंपराओं को पुनः मजबूत किया जाए, नियंत्रण रेखा के आर-पार पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए और राज्य की भाषाओं में रेडियो और टीवी के कार्यक्रम आरंभ किए जाएं।
सी- आर्थिक और सामाजिक सीबीएम (विश्वास स्थापन के उपाय)
सरकार – जनता की साझेदारी के आधार पर सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अन्य भारतीय राज्यों के सर्वोत्तम तौर तरीके अपनाए जाएं; उद्योग को बढ़ावा देने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाए जाएं जिनका विस्तार उत्तर-पूर्वी राज्यों की तर्ज पर वित्तीय और आर्थिक प्रोत्साहन देकर किया जाए; कश्मीरी हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए आकर्षक निर्यात प्रोत्साहन दिए जाएं; बागवानी उद्योग में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता का विस्तार किया जाए; राज्य की पारिस्थितिकी और जैव विविधता का संरक्षण किया जाए; सुरक्षा बलों के अधिकार में जो औद्योगिकी संस्थापन और अन्य भवन हैं उनको शीघ्र खाली कराया जाए; प्राकृतिक संसाधनों के बतौर जो खनिज और पदार्थ हैं, उनके दोहन का अध्ययन किया जाए; अन्तरराष्ट्रीय स्थानों से पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए श्रीनगर में अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का संचालन आरंभ किया जाए; राज्य के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने वाले और सीमाओं के आर-पार रेललाइनों और सड़कों की आधारभूत ढांचागत परियोजनाओं को पूरा करने के काम में तेजी लाई जाए; केन्द्रीय क्षेत्र में बिजली उत्पादन की परियोजनाओं को राज्य को दे दिया जाए; पहाड़ी, दूरस्थ और पिछड़े क्षेत्रों को विशेष विकास क्षेत्र घोषित कर दिया जाए।
एक समग्र शैक्षिक नीति का होना; स्वास्थ्य योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन और पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन भी आवश्यक है।
कार्ययोजना 
इन राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्ययोजना संवाद क्रियाविधि की विश्वसनीयता, मुख्य सीबीएम (विश्वास स्थापन के उपाय) के कार्यान्वयन और प्रमुख पणधारियों के बीच सहमति के बनने पर निर्भर करती है।
क्षेत्र में स्थिति का अवलोकन करने पर और पिछले शांतिप्रयासों से प्राप्त सीख के आधार पर सुलझाव हेतु विश्वसनीय संवाद बनाने में नीचे लिखे सीबीएम (विश्वास स्थापन के उपाय) सहायक होंगे।
(ए) मानव अधिकारों और कानून के शासन संबंधी सुधारों में गति लाना।
इसमें शेष सब पत्थर मारने वालों और राजनीतिक बंदियों की रिहाई शामिल है,  जिन पर गंभीर आरोप नहीं हैं, जिन्होंने पहली बार अपराध किया है या छोटे-मोटे अपराध करने वाले हैं, उनके विरुद्ध प्रथम सूचना रपटों का वापिस लेना, उन आतंकवादियों को क्षमा करना जो हिंसा छोड़ने को तैयार होें और उनका पुनर्वास, हिंसा के शिकार सब लोगों का पुनर्वास, सुरक्षा बलों की राज्य के भीतरी क्षेत्रों में से उपस्थिति कम करना, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए बने विभिन्न अधिनियमों के कार्यान्वयन की लगातार समीक्षा और कश्मीरी पंडितों की वापसी सुनिश्चित करना, इसके साथ-साथ जम्मू और करगिल से बेघर हुए लोगों को उनके घरों में वापिस लाना जिससे वे सुरक्षा, सम्मान और मर्यादा का जीवन व्यतीत करें। पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर से आए लोगों को पर्याप्त मुआवज़ा देना और उनको राज्य के नागरिक के तौर पर मान्यता देना।
(बी) पीएसए (लोक सुरक्षा अधिनियम) का संशोधन और डी ए (डिस्ट्रिब्यूटेड एरिया ) और एएफएसपीए (सशस्त्र सेना  विशेष अधिकार अधिनियम ) की समीक्षा
(सी) पुलिस और जनता के संबंधों में सुधार
(डी) सुरक्षा संस्थापनों के  फैलाव को कुछ रणनीतिक स्थानों तक घटाकर और तत्काल कार्रवाई के लिए  चल-इकाइयां बनाकर युक्तिसंगत बनाना
(ई) प्रधानमंत्री के कार्य समूह की जो कि विशेषतः सीवीएम  (विश्वास स्थापन के उपाय) पर था, सिफारिशों का  त्वरित कार्यान्वयन
 सब कश्मीरियों, मुख्यतः पंडितों (हिन्दू अल्पसंख्यक) की राज्य नीति के भाग के तौर पर वापसी सुनिश्चित करना
 राज्य में हिंसा के दौरान हुई विधवाओं और अनाथों के लिए जिनमें आतंकवादियों की विधवाएं और अनाथ शामिल होंगे, बेहतर सहायता और पुनर्वास की व्यवस्था करना
 नियंत्रण रेखा के आर-पार फँसे हुए कश्मीरियों की वापसी सुनिश्चित बनाना, जिनमें से बहुत से शस्त्रास्त्र के प्रशिक्षण के लिए बाहर चले गए थे किन्तु अब शांतिपूर्वक वापिस आना चाहते हैं,
(एफ) नियंत्रण-रेखा के आर-पार के संबंधों पर बने प्रधानमंत्री के कार्यदल की सिफारिशों का त्वरित कार्यान्वयन।  इससे हल के लिए सहमति बनाने के प्रयत्नों में सहायता मिलेगी और इस कार्यान्वयन में नियंत्रण-रेखा के  आर-पार के सब मार्गों को खोलना, बहु-प्रवेश परमिट/वीज़ा द्वारा व्यापार और यात्रा सुविधाजनक बनाना  शामिल होना चाहिए।
(जी) अचिह्नित कब्रों की पहचान के लिए एक न्यायिक आयोग बनाया जाए जिसमें खो गए/लापता व्यक्तियों की  पहचान पर जोर रहे।
इन सीबीएम (विश्वास स्थापन के उपाय) में से अधिकांश का आंशिक कार्यान्वयन हुआ है। बेहतर कार्यान्वयन के लिए इस समूह की सिफारिशें की सीबीएम (विश्वास स्थापन के उपाय) के प्रबोधन के लिए एक सशक्त समूह बनाया जाए।
सम्वाद प्रक्रिया
राजनीतिक संवाद के सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए समूह की निम्नलिखित सिफारिश हैं :-
(ए) जितना शीघ्र हो सके भारत सरकार और हुर्रियत के बीच संवाद आरंभ किया जाए। इस संवाद से प्रत्यक्ष परिणाम आने चाहिए और इसे अबाध बनाया जाए।
(बी) सीसी (सांविधानिक समिति) द्वारा तैयार की गई सिफारिशों और भारत सरकार – हुर्रियत के संवाद से उभरे बिन्दुओं पर संवाद के लिए पाकिस्तान और पाकिस्तान नियंत्रित जम्मू और कश्मीर को तैयार करना चाहिए।
(सी) नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ जम्मू और कश्मीर के लिए सिविल सोसायटी के बीच संपर्क को बढ़ावा देने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता करना।
नियंत्रण रेखा के आर-पार के संबंधों को सुसंगत बनाना
उन प्रतिनिधि मंडलों में से जिनसे हम मिले, अधिकांश का यह विश्वास है कि जब तक पूर्व शाही रियासत के उन भागों पर जो पाकिस्तानी प्रशासन के अधीन हैं, भी प्रस्तावित हल लागू न हो, तब तक कोई स्थायी या दीर्घकालीन हल नहीं निकल सकता। यह स्थिति सन् 1994 के संसद के उस प्रस्ताव के अनुकूल है जिसमें पूर्व शाही रियासत के पूरे भाग पर समझौते की अपेक्षा थी। पाकिस्तान नियंत्रित भागों का प्रशासन भारी रूप में बदला है। पाकिस्तान नियंत्रित जम्मू और कश्मीर फिलहाल दो भागों में बँटा है, जिनके राजनीतिक स्तर भिन्न-भिन्न हैं। राज्य की जन-सांख्यिकी उल्लेखनीय तौर पर बदली है जो कि पाकिस्तान के अन्य प्रान्तों से आए हुए लोगों के कारण हुई है।
केन्द्र-राज्य संबंधों को सुसंगत बनाने और क्षेत्रीय, राज्य और पंचायत/नगर-पालिका परिषद के स्तरों पर नियंत्रण रेखा के आर-पार शक्तियां देने की कोशिश को सुसंगत बनाने के लिए पाकिस्तान नियंत्रित जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर सांविधानिक परिवर्तन आवश्यक होंगे। यदि इस  पर सहमति हो जाए तो इससे विकास, संसाधन निर्माण और अन्य दुतरफी मामलों के लिए नियंत्रण रेखा के आर-पार संयुक्त संस्थानों को बनाने में इस सुसंगतिकरण से आसानी होगी। इसलिए इस समूह की सिफारिश है कि इन मामलों के बारे में चर्चा नियंत्रण रेखा के दूसरे तरफ के संबंधित प्रतिनिधियों से की जाए।
अंततः इस समूह की यह सिफारिश है कि हल की खोज को भारत-पाकिस्तान वार्ता पर अवलंबित न किया जाए। यदि जम्मू और कश्मीर में पणधारी समझौते के लिए सहमत हों तो पाकिस्तान के भी शामिल होने के लिए द्वार सदा खुले रखे जा सकते हैं।
जैसा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है प्रधान लक्ष्य है नियंत्रण रेखा को असंगत बनाना। यह सौहार्द्र और सहयोग का प्रतीक बन जाए।

4 COMMENTS

  1. दरसल भारत के संविधान का प्रारूप जब बन रहा था और संविधान सभा के तत्कालीन प्रकांड पुरोधा उस के विभिन्न नीति निर्देशक सिद्धांतों या प्रावधिक कानून कायदों पर ‘आम सहमति’ के लिए जद्दोजहद कर रहे थे तब भारत की कुल आबादी[लग्भग४० करोड़] का मात्र आधा प्रतिशत ही इतना शिक्षित था कि ‘राष्ट्र,कानून,संविधान,मोलिक अधिकार,नागरिक कर्तब्य,संसदीय प्रजातंत्र,मताधिकार और राष्ट्रनिष्ठता’ का सही अर्थ समझ सके. आज़ादी के ६५ साल बाद जबकि हमारे देश भारत ने एक महान लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में अपने आपको सुध्ड़ता से स्थापित किया है और पड़ोस में एक अर्धविक्षिप्त बीमार राष्ट्र[पकिस्तान] की निरंतर काली करतूतों के वावजूद भारत की महान ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक सहिष्णुता पूर्ण प्रजातांत्रिक’ अवधारणा ने कभी भी उकसावे में आकर भावनात्मक अंधराष्ट्रवाद का समर्थन नहीं किया. हम समझ सकते हैं कि ‘जम्मू और काश्मीर के लिए वार्ताकारों का समूह’ अत्यंत सुलझे हुए दूरदृष्टि सम्पन्न जिम्मेदार देशभक्तों का मंच है किन्तु जिस समस्या को इतिहास ने सेकड़ों वर्षों में पैदा किया है उसका निदान इन तीन साथियों के मात्र अंशकालिक प्रयाशों के परिणामस्वरूप सुझाये गए क़दमों से रातों रात भले ही संभव न हो सके कितु इस विकट और डरावनी ऐतिहासिक समस्या के समाधान का चिराग तो इन तीनो साथियों ने अवश्य ही जलाया है.जिसका सभी को स्वागत करना चाहिए.

  2. इस से बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा की देश के शासक ही देश के विघठनकी योजनायें बनायें और उन्हें कार्यान्वित करें संप्रग सर्कार की नीति यही रही है की धीरे धीरे देश की जनता कश्मीर को भारत से अलग हो जाने को स्वीकार कर ले. वार्ताकारों के चयन से ही सर्कार की मंशा ज़ाहिर हो जाती है. कितने आश्चर्य की बात है की जब दो वार्ताकारों का आई एस आई एजेंट घुलाम नबी फाई से सम्बन्ध होने का तथ्य उजागर हुआ तो तीसरे वार्ताकार श्री अंसारी ने कहा था की इन दोनों वार्ताकारों को त्याग पत्र देकर इस कार्य से अलग हो जाना चाहिए . परन्तु हुआ क्या दोनों वार्ताकार निर्लज्जता पूर्वक अपने कार्य में लगे रहे . उस से भी बड़ी त्रासदी यह है की भारत सर्कार ने फाई कुचक्र में संलिप्तता को कोई दोष न मानते हुए ऐसा व्यवहार किया की जैसे कुछ हुआ ही नहीं. क्या ऐसे लोगों को शासन में बने रहने का कोई औचित्य है ? यहाँ यह बताना भी प्रासंगिक होगा की भारत सर्कार के एक और चहेते भूतपूर्व न्यायमूर्ति सच्चर भी घुलाम नबी फाई के आतिथ्य का आनंद ले चुके हैं. अब यदि आई एस आई भारत के प्रधान मंत्री कार्यालय में जड़ें जमा चूका है तो देश का क्या भविष्य होगा आप स्वयं समझ सकते हैं

  3. यह प्रतिवेदन एक बहुत बड़ा धोखा है. क्योंकि गुलाब नबी फाई की बिरयानी खाकर इसमें बिलकुल प्रो-पाकिस्तान, प्रो-जेहादी लोग शामिल थी. काश्मिरी हिन्दू प्रजा की अनदेखी कई गयी है.

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