जलेबी

jalebi

करना नहीं बहाना बापू|
आज जलेबी लाना बापू||

रोज सुबह कह कर जाते हैं,
आज जलेबी ले आयेंगे|
दादा दादी अम्मा के संग,
सभी बैठ मिलकर खायेंगे|
किंतु आपकी बातों में अब,
दिखता नहीं ठिकाना बापू|
आज जलेबी लाना बापू||

इसी जलेबी में अम्मा की,
बीमारी का राज छुपा है|
जब तक खाई गरम जलेबी,
जब तक अच्छा स्वास्थय र‌हा है|
एक तश्तरी गरम जलेबी,
माँ को रोज खिलाना बापू|
आज जलेबी लाना बापू||

जब जब खाती गरम जलेबी,
घुर्र घुर्र सो जाती दादी|
वैसे तो कहती रहती है,
नींद न आती नींद न आती|
कितना अच्छा वृद्ध जनों को,
नीँद मजे की आना बापू |
आज जलेबी लाना बापू||

जैसे पर्वत जंगल जंगल,
हमको मिलती शुद्ध हवा है|
वैसे ही तो गरम जलेबी,
सौ दवाओं की एक दवा है|
गरम जलेबी में होता है,
मस्ती भरा खजाना बापू |
आज जलेबी लाना बापू||

दादाजी को गरम जलेबी,
खाना बहुत बहुत भाता है|
खाकर खुशियों का गुब्बारा,
आसमान में उड़ जाता है|
हर दिन गरम जलेबी लाकर,
अपना धर्म निभाना बापू |
आज जलेबी लाना बापू||   

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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