जसवंत सिंह! सरदार पटेल पर उंगली क्यों?

23
454

मोहम्मद अली जिन्ना के जीवन पर आधारित बीजेपी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह की किताब जिन्ना: इंडिया-पार्टीशन इंडीपेंडेंस हाल ही में प्रकाशित हुई है. पुस्तक पर बीजेपी, संघ परिवार सहित देश के समूचे बौद्धिक जगत में एक बहस छिड गई है। प्रवक्ता डॉट कॉम के अनुरोध पर युवा पत्रकार राकेश उपाध्याय ने बहस में हस्तक्षेप करते हुए शृंखलाबद्ध आलेख लिखा है। प्रस्तुत है आलेख की चौथी किश्त- संपादक

जसवंत सिंह की पुस्तक के अध्ययन से जो निष्‍कर्ष निकलता है उससे साफ है कि पुस्तक जिन्ना की अतिरेकी प्रशंसा के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यह भारतीय राजनीति के स्थापित नेताओं के खण्डन का बौद्धिक प्रयास है।

vallabhbhai-patel2पुस्तक में लेखक खुद ही अन्तर्द्वन्द्वों के घेरे में एक नहीं अनेक स्थानों पर घिरे नजर आते हैं। वह जो सिद्ध करना चाहते हैं उसके माकूल उद्धरण नहीं मिलने पर वह जिन्ना के खिलाफ भी खड़े होते हैं। लेकिन इसके बावजूद पूर्वाग्रह इतना प्रबल है कि जसवंत सिंह के अनुसार जिन्ना विभाजन का दोशी नहीं था। यह कहने में उनकी हिचकिचाहट बार-बार नजर आती है।

सवाल उठता है कि विभाजन गलत था तो जिन्ना सही कैसे था? माना कि गांधी-नेहरू-पटेल ने विभाजन स्वीकार किया लेकिन ये मांग किसकी थी और यह मांग करने वाला जिन्ना विभाजन के आरोप से बरी कैसे किया जा सकता है?

इतिहास के झरोखे से विविध उद्धरणों को उठाकर जसवंत ने जिन्ना को निर्दोष साबित करने का प्रयास किया लेकिन इतिहास क्या सचमुच जिन्ना को निर्दोष मानता है। यहां सवाल यह भी उठता है कि 1857 की क्रांति के बाद क्या जिन्ना पहले मुसलमान नेता थे जिनका शुरूआती जीवन कथित तौर पर राष्‍ट्रवादी था और कालांतर में वह घोर सांप्रदायिक व्यक्तित्व में परिवर्तित हो गया।

आखिर सर सैयद अहमद खां की जीवनी लिखें तो क्या वह सार्वजनिक जीवन की शुरूआत में राष्‍ट्रवाद की वकालत नहीं करते थे? क्या उन्होंने ये नहीं कहा था कि हिंदू और मुसलमान भारत मां की दो आंखें हैं। लेकिन बाद में ऐसा क्या हुआ कि सर सैयद हिंदुओं को सरेआम कोसने लगे जबकि उन्हीं हिंदुओं ने उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय की स्थापना में भरपूर सहयोग दिया?

हम चाहे सुहरावर्दी की बात करें या लियाकत अली खां की, रहमत अली की बात करें या अल्लामा इकबाल की, आजादी के आंदोलन में जिन मुस्लिम नेताओं पर भी राजनीति का सुरूर चढ़ा वे जीवन के अंत में कहां जा कर खड़े हुए? यदि इस मानसिकता का अध्ययन होगा तभी भारत विभाजन और तत्कालीन मुस्लिम नेतृत्व का सही अध्ययन हम कर पाएंगे।

इसके विपरीत मक्का में पैदा हुए, मिश्र में पले बढ़े मौलाना अबुल कलाम आजाद, अफगानिस्तान की आबोहवा में पल बढ़े खां अब्दुल गफ्फार खां जैसे नेताओं को देखें तो हम पाते हैं कि वे जीवन की अंतिम सांस तक अपनी मूल भूमि की एकता और अखण्डता के प्रति वफादार रहे।

तो सवाल उठता है कि भारत के मूल प्रवाह के साथ रह रहे मुसलमानों को क्या कहीं बरगलाया तो नहीं गया? जसवंत कहते हैं कि नहीं, उन्हें तो गांधी-नेहरू और पटेल ने किनारे लगाने का प्रयास किया। जसवंत ने पुस्तक में बार बार कांग्रेस को हिंदू कांग्रेस कहकर संबोधित किया है, आखिर क्‍यों? इतिहास के अध्येता जानते हैं कि चाहे गांधी हों या पटेल या फिर नेहरू, इन सभी नेताओं ने आजादी के आंदोलन में मुस्लिम समुदाय को साथ लाने के लिए अपना सारा जीवन अर्पित कर दिया। अनेक सवालों पर ये नेता हिंदू समाज की मुख्य धारा के खिलाफ भी खड़े हो गए। हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग 1857 की क्रांति की असफलता के बाद भी इस बात पर अडिग था कि सषस्त्र संघर्ष के रास्ते अंग्रेजों को बाहर खदेड़ा जा सकता है। वासुदेव बलवंत फड़के आदि क्रांतिकारियों ने 18वीं सदी के अंत में ही इस मार्ग को प्रशस्त कर दिया था। लोकमान्य तिलक और योगी अरविंद इस मार्ग के द्वारा आजादी के मार्ग की संभावनाओं को टटोल रहे थे। कालांतर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह ने जिस मार्ग को अपना जीवनपथ ही बना लिया, जिस मार्ग की वकालत वीर सावरकर कर रहे थे, अपने शुरूवाती जीवन में डाक्टर हेडगेवार ने भी जिस मार्ग की वकालत की उस क्रांतिकारी मार्ग पर चलने से भारत के धर्मप्राण समाज को आखिर किसने रोका? क्रांति बलिदान मांगती है, जाहिर है हिंसा के बीज भी इसमें अन्तर्निहित रहते हैं और भारत के इतिहास पर एक विहंगम दृष्टि डालने से स्पष्‍ट भी होता है कि इस अधर्म के विरूद्ध हिंसक संघर्ष को भारत का लोकजीवन सदा से ही अपना समर्थन देता आया है। हिंदुओं से जुडे सभी पौराणिक ग्रंथ, वैदिक परंपरा, वेद, रामायण, महाभारत और गीता ने न्याय की रक्षा, असत्य के विनाष के लिए इस हिंसक संघर्ष के पथ को मान्य किया है।

लेकिन गांधी, नेहरू और पटेल ने इस परंपरा के विरूद्ध जाकर हिंदुओं को अहिंसा का मंत्र दिया। ये मंत्र सही था अथवा गलत, इसकी मीमांसा समय आज भी कर रहा है और आगे आने वाले समय में भी करेगा। वस्तुत: गांधी-नेहरू पर कोई आरोप लग सकता है तो यही लग सकता है कि इन नेताओं ने हिंदू समाज को सशस्त्र संघर्ष के मार्ग से परे ढकेल दिया इसके विपरीत जिन्ना और उसकी मंडली लड़कर लेंगे पाकिस्तान का नारा बुलंद कर रही थी। खलीकुज्जमां चौधरी, लियाकत अली खां जैसे लीगी नेता जब ये कह रहे थे कि यदि पाकिस्तान का निर्णय तलवार के बल पर होना है तो मुसलमानों के इतिहास को देखते हुए ये ज्यादा महंगा सौदा नहीं है, तो उस समय गांधी और नेहरू आखिर क्या जवाब दे सकते थे जबकि उनके हाथों में तलवार तो क्या एक चाकू भी नहीं था।

इसके विपरीत जिन्ना खुद ही सीधी कार्रवाई का ऐलान कर रहे थे कि हमने अब सभी संवैधानिक उपायों को तिलांजलि दे दी है और हम बता देना चाहते हैं कि हमारी जेब में भी पिस्तौल है। नि:संदेह देश में गृहयुद्ध के हालात पैदा किए जा रहे थे और ये सारा काम मुस्लिम लीग अंग्रेजों की शह पर कर रही थी।

हमने पहले ही ये सिद्ध किया कि जिन्ना ने कभी आजादी के किसी आंदोलन में भाग नहीं लिया। गांधी के सन् 1915 में भारत आने के पहले भी नहीं और बाद में भी नहीं। कांग्रेस पक्ष में भी वह मुसलमानों का वकील बनकर खड़ा दिखाई देता था यद्यपि व्यक्तिगत जीवन में उसका ईश्‍वर, अल्लाह या ऐसी किसी पराशक्ति के उपर शायद ही कोई विश्‍वास था। उसका जीवन ऐशो आराम और भोग की चरम पराकाष्‍ठा पर था। इसके बावजूद जब जसवंत सिंह गांधी को प्रांतीय और धार्मिक नेता कहते हैं और जिन्ना को राष्‍ट्रवादी तो हंसी आती है। जरा देखिए कि गांधी 1915 के बाद देश में क्या कर रहे हैं और जिन्ना किस काम में लगे हैं। गांधी एक ओर चम्पारण में नीलहे किसानों के साथ खड़े हैं, गुजरात में खेडा के किसानों के पक्ष में सरदार पटेल का साथ दे रहे हैं तो दूसरी ओर जिन्ना लखनऊ में मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मण्डलों के आरक्षण के सवाल पर बहस कर रहे हैं। और इससे जो समय बचता है तो अपने एक पारसी मित्र दिनशा पेटिट की 15 साल की लड़की को फुसलाकर भगाने के काम में सक्रिय रहते हैं। जिन्ना अंतत: पेटिट की बेटी रत्ती को घर से भगा ले जाते हैं। इस पर दिनशा पेटिट जिन्ना के खिलाफ अपनी बेटी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करवाते हैं और इतिहास गवाह है कि जिन्ना सन् 1917 से 1918 के बीच फरारी का जीवन व्यतीत करते हैं।

सहज से सवाल उठता है कि मुसलमानों का नेतृत्व करने की कोई योग्यता जिन्ना में नहीं थी फिर भी उसने मुसलमानों का दिल जीत लिया तो उसके पीछे कारण गांधी, नेहरू या पटेल नहीं थे उसके पीछे का कारण वह विष बेल थी जिसे अंग्रेजों ने हिंदुस्तान में पैदा किया। जिसका ताना बाना लंदन में चर्चिल के नेतृत्व में बुना गया कि हिंदुस्तान वाले यदि आजादी चाहते हैं तो उन्हें ऐसा हिंदुस्तान सौंपो जिसके कम से कम तीस टुकड़ें हो जाएं।

जसवंत सिंह क्या बात करेंगे? समय रहते ही अंतरिम सरकार में सरदार पटेल ने मुस्लिम लीग की अंग्रेजों से मिलीभगत को पहचान लिया था। सरदार ने अनेक स्थानों पर इस बात का जिक्र भी किया कि जिन्ना रूपी जहर को निकाला जाना जरूरी हो गया है अन्यथा देश को अंग्रेज एक नहीं दर्जनों टुकड़ों में विभक्त कर देंगे।

और तब जो बरबादी होती क्या उसकी कल्पना किसी ने की थी। सरदार तो पाकिस्तान देने के भी इच्छुक नहीं थे, लेकिन दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने इसे स्वीकृति दी। और क्या अंग्रेजों ने सिर्फ पाकिस्तान का ही निर्माण किया? इतिहास गवाह है कि देश की सभी रियासतों को अंग्रेजों ने कह दिया था कि यदि वे चाहें तो भारत के साथ रहें। यदि वे भारत से अलग रहना चाहते हैं तो वे अलग रह सकते हैं।

जसवंत सिंह तो केंद्र में मंत्री रहे हैं। एक कंधार विमान अपहरण से उनके हाथ पैर फूल गए और वे आतंकवादियों को अपने साथ विमान पर बिठाकर कंधार रवाना हो गए। सरदार पटेल के सामने क्या परिस्थिति रही होगी जबकि सारे देश की एकता और अखण्डता ही दांव पर अंग्रेजों ने लगा दी थी। देश एक रह पाएगा भी अथवा नहीं, पाकिस्तान का सवाल तो जुदा है क्योंकि उसे तो अंग्रेज मान्यता दे गए थे लेकिन अपरोक्ष रूप से चर्चिल के चेलों ने हिदुस्तान को सैंकड़ों छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने का जो पांसा फेंका था उससे कैसे निबटा गया यदि उसके कुछ पन्ने भी जसवंत सिंह ने पलटे होते तो उन्हें पता लग जाता कि सरदार देश विभाजन के दोषी थे अथवा देश की एकता को बनाए रखने वाले असरदार नेता थे।

इसी में हैदराबाद के निजाम, जूनागढ़ के नवाब और जोधपुर के महाराज सहित जाने कितने बिगड़ैल घोड़ों पर हिंदुस्तान की एकता की सवारी गांठने का महान कार्य सरदार ने सम्पन्न कर दिखाया, क्या संसार के इतिहास में कहीं अन्यत्र ऐसा उदारहण मिलता है?

देश का दुर्भाग्य कि सरदार आजादी के दो वर्ष बाद ही स्वर्ग सिधार गए अन्यथा जसवंत सिंह जी आपको यह पुस्तक लिखने की नौबत ही नहीं आती। तब शायद जो पुस्तक लिखी जाती उसका शीर्षक होता- ‘पाकिस्तान: निर्माण से भारत में विलय तक’।

जिन्ना प्रेम में सरदार के लौहहृदय का इतना छलपूर्वक और सतही विवेचन आपने क्यों किया जसवंत सिंह, इतिहास आपसे इस सवाल को जरूर पूछेगा। क्या यह सही नहीं है कि सरदार ने शीघ्र ही पाकिस्तान के विनष्‍ट होने की भविष्‍यवाणी की थी? क्या यह सही नहीं है कि सरदार ने जिन्ना और उनके चेलों को चुनौती दी थी कि देखें, कितने दिन तुम पाकिस्तान को अपने साथ रख पाते हो? आप कहते हैं कि कांग्रेस के नेता बूढ़े हो चले थे, ये बात कांग्रेस के नेताओं ने ही स्वीकार की है। लेकिन सरदार भी बूढ़े हो गए थे क्या? क्या उन्होंने अपनी आरामतलबी के लिए देश का विभाजन स्वीकार किया? नेहरू क्या कहते हैं उस पर मत जाइए, सरदार क्या कह रहे थे और क्या कर रहे थे, थोड़ा उस पर ध्यान दीजिए। सरदार एक ओर ह्दय की गंभीर तकलीफ से जूझ रहे थे तो दूसरी ओर देश की तमाम रियासतों के भारत में विलय के लिए संपूर्ण देश में दौड़ भाग कर रहे थे। अपने जीवित रहते ही आजादी के बाद की दो साल की अल्पावधि में उन्होंने उस महान कार्य को पूर्ण कर लिया जिसे करने के लिए भारतीय इतिहास चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक और अकबर को याद करता है। एक चक्रवर्ती भारत, एक और अखण्ड भारत, भारतीयों द्वारा स्वशासित भारत, देष के करोड़ों नागरिकों का अपना भारत, भारत के लिए भारत, समस्त मानवता को दुख-कलह से दूर कर शांति के नए युग का संदेश देता भारत, उस भारत के लिए सरदार जी रहे थे, संघर्ष कर रहे थे।

इतिहास के अध्येता जिन्होंने भी सरदार के जीवन का सूक्ष्मता से अध्ययन किया है वह ये मानने से शायद ही इंकार करें कि सरदार 10 वर्ष और जीवित रह गए होते तो पाकिस्तान का अस्तित्व समाप्त हो जाता। सरदार पंचषील और अहिंसा की मीठी-मीठी बातों में आने वाले नहीं थे। वे संसार की तत्कालीन वास्तविकता को जानते और समझते थे। वो शांति और अहिंसा की स्थापना के पीछे छिपे ताकत के बल को समझते थे इसलिए वे शक्ति की उपासना के कायल थे। इसीलिए उन्होंने संसद में अपने भाषण में कट्टरवादियों को ललकारा था कि अब फिर से अलगाववादी विशेषाधिकारों का राग अलापना बंद कर दो। पंडित नेहरू को जीवित रहते ही चीन के नापाक इरादों से सावधान कर सैन्य शक्ति के सुसंगठन पर ध्यान देने को कहा था।

देश की दुर्दशा को दूर करने का उनका सपना था। जसवंत सिंह, आप और आपकी तत्कालीन सरकार तो राम का नाम लेकर सत्ता में जा पहुंची, लेकिन अयोध्या में एक इंच जमीन भी आप राममंदिर के नाम पर हिंदुओं को दिला न सके। और तो और जो जमीन रामजन्मभूमि न्यास की थी, जो अविवादित भूमि थी जिस पर कोई विवाद नहीं था, जिस पर निर्माण प्रारंभ करने देने में मुसलमानों को भी कभी कोई आपत्ति नहीं रही, आपके और आपके सहयोगी मंत्रियों की कारस्तानी ने उस भूमि को भी विवादित बना दिया और न्यायालय ने उस पर भी निर्माण से रोक लगा दी।

लेकिन इसके विपरीत सरदार के जीवन पर एक निगाह डालिए और अपने पूर्व मित्र श्री आडवाणी से भी कहिए कि सरदार पटेल के जीवन के पन्नों को फिर से पलट लें कि कैसे बिना कोई विवाद खड़ा किए, हिंदुस्तान की प्राचीन धरोहर का पुनर्निर्माण किया जाता है। सिंधु सागर के तट पर खड़े होकर सरदार पटेल ने कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी के साथ शपथ ली थी कि हे सोमनाथ! अब भारत आजाद हो चुका है, भारत कभी मिट्टी में नहीं मिलेगा उसी तरह जैसे तुम अपने ही खण्डहरों से पुन: उठ खड़े होने जा रहे हो, वैसे ही ये देश दासता की भयानक काली रात के सन्नाटे से निकल कर उगते सूर्य की उषा किरण में तुम्हें जलांजलि देन के लिए उठ खड़ा हो रहा है। ये देश अमर है, इसकी संस्कृति अमर है, इसका विश्‍व मानवता के लिए संदेश अमर है-सर्वे भवन्तु: सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।

ये सरदार थे जिन्होंन विदेशी आक्रमणों की आंधी में उध्वस्त हो गए द्वादश ज्यातिर्लिंगों में एक सोमनाथ मंदिर की फिर से प्राण प्रतिष्‍ठा की। मानों 11 वीं सदी में हिंदुस्तान को गुलाम बनाने के लिए एक के बाद एक भयानक हमलों का जो सिलसिला सोमनाथ को ध्वस्त कर प्रारंभ किया गया था सरदार ने उसी मंदिर के शिलान्यास से दुनिया में भारत विजय के अभियान का श्रीगणेश किया था।

जसवंत सिंह! सरदार के जीवने के ये पन्ने आप क्यों नहीं पढ़ सके? शेष अगले अंक में……

-राकेश उपाध्‍याय

23 COMMENTS

  1. सर, गाँधी जी इस काल्लेद फाठेर ऑफ़ नातिओं दुए तो हिस नॉन-विओलेंस अप्प्रोअच बुत टुडे थे सितुअतिओन ऑफ़ इंडियन पोलिटिक्स एंड तेर्रोर अत्ताच्क्स और पाकिस्तान स्पोंसोंसेद तेर्रोरिम इन इंडिया इस बिग हेअदाचे फॉर इंडियन पोपले. नो इंडियन हवे ड्रेंस ठाट टाइम विल कामे व्हेन वे विल फस सुच एनेमिटी बी नेइबौर्स लिखे पाकिस्तान. ओने ग्रेट परसों हस टोल्ड ठाट थे परसों दिग थे पोत फॉर ओथेर हे और शे विल फल्लें इन थे समे पोत व्हिच वास दिग बी हे और शे’ . सो अग्टर मुंबई अत्तैक थे व्होले इंडिया शोच्जेद एंड लाइव टेलेकास्ट हवे सीन बी थे व्होले वर्ल्ड एवेंथौघ वे अरे अल्वाय्स नोट इन फवौर तो फिघ्त बेक तो ओउर एनेमी काउंट्री लिखे पाकिस्तान. नो तेरे इस अ फीलिंग ठाट इंडिया नीड्स लीडर लिखे सरदार वल्लभ भाई पटेल बुत ११० मिल्लिओं ऑफ़ इंडिया नोट स्टील रेअलिसिंग थे फक्त एंड अस उसुअल थे अरे स्कापे गोअत ऑफ़ इंडियन पोलिटिकल लीडर्स. इ ऍम नोट अगिस्त थे मुस्लिम्स बेकाउसे वे हवे ग्रेट फाठेर ऑफ़ नुक्लेअर स्सिएंस डॉ अ.प.ज कलम एंड सानिया मिर्ज़ा, cricket स्तार्य्स पठान ब्रोठेर्स . थे अरे रियल इन्दिंस और नातिओं लोवेर्स पोपले. बुत ओउर पोलितिसिंस हवे दिविदेद उस इन थे नामे ऑफ़ रेलिगिओं , कसते एंड रेगिओं एंड लंगुअगे. आफ्टर इन्देपेंदेंस ऑफ़ इंडिया वे अरे नोट इन पोसितिओन तो मके कोम्पुल्सोरी हिंदी अस अ मंदातोरी लंगुअगे . इफ ओने नेशनल लंगुअगे विल बे इम्प्लेमेंतेद कोम्पुल्सोरी थें तेरे विल बे फीलिंग ऑफ़ नेशनल लोविंग एंड देश भक्ति . नो पोपले ऑफ़ इंडिया हस तो चूसे व्हेठेर थे वांट तो हैण्ड ओवर थे पॉवर लीडर लिखे इरों मन लिखे सरदार वल्लभ भाई पटेल और कूल एंड तोलेरातिंग मंद . सो वे हवे तो वेट एंड वाटच वेयर ओउर कंट्री विल गो इन कमिंग येअर्स अस नो पोलितिसिंस मके फूल पोपले फॉर लॉन्ग टाइम. नो इंडिया हस चंगेद अ लोट . नो वे हवे ग्रेट स्किएन्तिस्त, डॉक्टर, एन्गिन्नेर्स मनागेर्स गुड अद्मिन्स्त्रतोर्स.
    होप फॉर थे बेस्ट एंड गुड लुक्क इंडिया.
    थैंक्स
    रेगार्ड्स
    युओर्स सिंसरेली
    सुनीता अनिल रेजा, मुंबई

  2. Yah patrika maine aaji hi pahali baar parhi hai. Aapne bahut achcha likha hai. Is sandarbh main Neharu ji ki pustak ‘Discovery of India’ mein jinna ke bare mein likhi gai baaten bhi saamne aani chahiyen.

    (How can I get the Hindi key maping to write in Hindi? Please guide.)

    Madhu

  3. Jasvant ne apne pustak mein Gandhi, Nehru or Patel per DESH VIBHAJAN ke aarop legaye hin.

    aapne is lekh main kewal patel per hi itihaash ke roshni dali hai.

    isi tarah kirpaya apne agle lekh mein Gandhi or Nehru ki bhumik per phi likhein.

  4. जिन्ना पर लिखि जसवन्त सिन्ह् कि पुस्तक पर आपकॆ विचार मह्त्वपुर्न है.
    लॆकिन चाहै जॊ कहॊ राजस्थान मै खिसक चुकि इनकि जमिन कॊ तलाशनॆ मै यह् पुस्तक ज्ररुर मदद करैगि. चुकि कम समय‌ मै 49 हजार किताब बिक चुकि है. और फिर आपनॆ वह् गाना तॊ सुना ही हॊगा जब सॆ मै ज्ररा सा बदनाम हॊ गया, राम कसम मॆरा ……

  5. Jinnah ka Jinn Jaswant ki bali lene ke baad ab Jai Ram Ramesh ki bhi bali le lega Jabki iski koi vajah hazar nahin aati ki ham kyon jaswant singh ki bhanti bharat ke liye aaj ki taareekh mein ek niraapad vyakti ke baarein mein Apne aap ko barbaad karne per tule hue hain. Ab iski charcha band honi chahiye. Kuchch Jinda logon ki chinta karo kisi jinn samaan jinnah ki nahin.

    Satish Mudgal

  6. राकेशजी, आपके द्वारा लिखित जिन्ना सीरिज को पढकर आनन्द आया. आपने जसवंत सिंह की पुस्तक में उल्लिखित तथ्यों के आइने में अपनी बात कही है. कोई इस पर सहमत होगा और कोई असहमत. लेकिन जो आपने लिखा है वह भी तथ्यों के प्रकाश में लिखा है. अच्छा है. इस पर बहस होनी ही चाहिए.. स्वयं जसवंत सिंह भी चाहेंगे कि कोई उनकी किताब पढकर कुछ लिख रहा है..आप सिर्फ हवाबाजी तो नहीं कर रहे हैं. आपने भी तथ्य दिए हैं.. तो ये दो लेखकों के बीच का मामला है..ये जसवंत सिंह जी का दायित्व बनता है कि इस पर अपना स्पष्टीकरण दें.. यदि आपकी आलोचना झूठी है या पक्षपात पूर्ण है तो इसे साबित करने के लिए भी प्रयास होना चाहिए न कि लफ्फाजी की जानी चाहिए..जो भी हो आपने जो लिखा है तो वह एक सच्चे भारतीय लेखक का दायित्व बनता है कि दूध का दूध पानी का पानी करे..एक लेखक या इतिहास के समीक्षक के रूप में सभी को अपना दायित्व निष्पक्ष होकर निभाना होगा…

  7. इतिहास में जिन्ना को गलत ढंग से पाश करने के चलन ने बड़े आयाम हाशिल कर लिया है.क्योकि यह धर्म निरपेक्ष भारत और कट्टर पंथी इस्लामी पाकिस्तान के अपने अपने रस्त्र्रवाद की संकुचित सब्दावली से juda है ..
    पृथक मुस्लिम देश बनाने वाले प्रबल उदारवादी और पक्के भारतीय रास्ट्रवादी जिन्ना का इतिहाश उनके मरने कइ बाद कुछ ज्यादा ही सनसनी खेज़ रहा…..पाकिस्तान उन्हें हिन्दू प्रभुत्व से भारत के मुसलमानों की रक्षा करने वाले महँ नेता कायदे आज़म के रूप में याद करता है..और भारत के कै लोग स्वार्थ परख राजनीत का मकसद पूरा करने के लिए भारत को तोड़ने वाले क रूप में आलोचना करते है..
    जिन्ना और nehru दोनों ही तुनक मिजाज़ और घमंडी नेता था..दोनों की राजनैतिक महत्व कान्छा ने देश विभाजन का बीजारोपण किया..
    राकेश जी आपकी मेहनत को सलाम …

  8. M.K.Gandhi was asked by British “How are you going to run India when 99% of Indians are illiterates?” Gandhi said “I know my country men are fools but they are pious people, that‘s why we can run democratically.” History proved that Nehru ruled India as he wished. Sardar Patel when he knew Nehru it was too late? Shardar was shocked to see the greatest horror of the time, millions were butchered, raped and forced to migrate but neither Nehru nor Gandhi tried to prevent or did any thing to avoid such mass scale atrocities on Hindus going on for months, instead they were busy in safe guarding Muslims in India and was determined to convince Muslim leaders not to leave India and agreed to full fill their every demand at all cost. Sardar Patel was frustrated because the entire army and bureaucracy were under Nehru’s indirect command. FYI because my family was interested in politics I came to know that Sardar Patel as home minister of India had asked neighbour Nepal to help to control Hyderabad Nizam who declared to merge Hyderabad with Pakistan. When the general of Nepal with four army contingent arrived in Delhi Sardar Patel asked the general “You are a Gorkha and a Hindu. I am just a handicapped home minister, I have invited you not because Indian army will not be able to control Hyderabad but the policy of Nehru is to satisfy and pacify Muslims, Nehru is creating all these troubles. I want you to do the same with the Muslims of Hyderabad what they have done to the Hindus in all over Pakistan.” And asked secrecy of this information from Gandhi and Nehru, if they know then this mission will not succeed. But unfortunately, Nepalese general passed this information to Nehru and Nehru immediately told Nizam of Hyderabad that the situation was going out of his control. Because of this Nizam of Hyderabad surrendered without firing a shot and merged with India. Sardar re-established Somath temple and destroyed the Gazani mosque created on the temple. Nehru-Gandhi duos were not happy with all this and when Pakistan launched a war on Kashmir (Pakistan Tribal Army was created by the money given by Gandhi and this money was used in that war). Even though Pakistan had launched the war, Nehru-Gandhi was not in favour to fight with Pakistan but Sardar Patel ordered Indian Army and made entire Pakistan army to surrender. But instead of resolving Kashmir territory even after winning the war Nehru created an imaginary line of actual control and took that case to UN to prevented Sardar Patel from re-uniting the entire Kashmir territory with India. This cost Patel his life, we heard the rumours that Sardar was also poisoned just like Shyma Prasad Mukherjee was poisoned in Kashmir Hospital by Nehru. Indian history is y. fully fabricated, till today and the Gandhi’s famous verdict that his country men are fools is proved correct, till toda

  9. I want toconvey this message maniniye Sachinji,one of commentator on the article by Rakeshji.Either Rakesh nor Jaswant wrote over independence of india .The book and Raksh`s article is related to partition of india not participation of hindus and Muslims in freedom struggle. why u r talking about participation in freedom struggle.u r expressing ur third class mind set.Jina also fougt for freedom.Bu he(jina) is also responsible for deviding hindu and muslman.

  10. Dear Sachin, It is true that you are not Hindu by religion / Nationality / Genetically. In pakistan, What about the statement of Sir Sayed Ahamad Khan that “Hindu and Musalman are two eyes of a mother without these eyes we can not live”. Can you define that why in Pakistan Hindus are decreasing very fast. Can they live without other eye ( Hindus).
    Satish

  11. मित्रवर,
    आप का लेखन जारी रहना चाहिए। कोई किताब लिख कर राष्ट्रीय नेताओं की धज्जियां बिखेरे और उसका यथोचित उत्तर भी न दिया जा सके, ऐसे देश के बौद्धिक वर्ग को लानत भेजनी चाहिए। क्या जसवंत सिंह जी किताब वापस ले रहे हैं, नहीं तो फिर समीक्षा से डर क्यों। रह गई मुसलमानों से सम्बंध की बात तो इसके लिए जिन्ना नजीर नहीं हो सकते, देश के पास देशभक्त मुसलमानों की पूरी की पूरी फौज है,कल भी थी आज भी है, हिंदू मुस्लिम एकता के लिए उनके जीवन और कार्यों पर काम होना चाहिए, न कि जिन्ना जैसों की प्रशंसा के गीत गाए जाने चाहिए।
    आपने अपनी दूसरी कडी में जिन्ना की बेटी के रूप में रत्ती का जिक्र किया है, डिना रत्ती की बेटी थीं, नस्ली वाडिया की मां। चौथी किश्त में इसमें गडबडी हो गई है, कोई बात नहीं, लेकिन आपका जिक्र सही है…तीसरी बात ये है कि जैसे आपने पहले की तीन कडियां लिखीं उसी तरह लिखिए…जसवंत सिंह जी कहां पर क्या लिख रहे हैं, उसका पेज नंबर के हिसाब से जिक्र कर अपनी बात तथ्यों और ठोस उद्धरणों के साथ लिखिए..इस चौथी किश्त में आप इस लिहाज से कंजूसी कर गए हैं,,,जारी रहिए…रुकिए नहीं…

  12. Upadhyay Ji,

    From whom you are requesting to reply the reasons of maligning Louh-Purush Sardar Patel who was the person chosen by the Most of State a right candidate for First Prime Minister of India but Our Father of the nation Mahatma Gandhi decided, arbitrarily, that Prime Minister will be Mr. Nehru by avoiding the voice of India. But Patel did not lose control of his mind like Jaswant Singh who lost his election but BJP gave him Important Ministeries in the top five portfolios during NDA led Government and he did nothing in maintaining the parties image but now indulged in destroying the party with full of his strength. It seems that he has seen in him “THE JINNAH”. How a person can see fault in himself? By misunderstanding, he thought that as Jinnah became the true leader of Pakistan after partition of India, I also can become the Leader of other faction of BJP after breaking the it. This was the true story of Mr. Jaswant Singh. You may see that the RASHI of Mr. Jinnah & Mr. Jaswant Singh are same.

    I think we should not give any importance to his writings. Many other important things are there to discuss.

    If we need to do anything in regard to Mr. Jaswant Singh, we should show him the mirror to see his face by pointing out his acts done in the state which was the root cause of loosing the election in Rajasthan.
    Satish Mudgal

  13. dina ratti ki beti thi, aur ratti dinsha pettit ki beti thi, ratti se jinna ne dusara vivah kiya, kripaya ise durusta kar padha jaye. namollekh me galti ke lie khed hai. lekin tathya sahi hai.
    aapka hi
    rakesh upadhyay

  14. Sachin— Mera Bharat Huwa Mahan Bana Gulami Ko Pahichan? Jisne Bhi Rauda Hum Ko Humne U naco Apnaya. Babar ho ya Victoria hum ne u na ko apna banaya. Kaya yisi ko gulami kahate hai? Dhannyabad

  15. कॊन् क्यअ कर् गय वह सहि ह य गलत् ऎसॆ तथ्य् खॊजनॆ कि जगह् आज कॆ लॊग सहि मयनॆ मॆ भरतिय बन पाय तॊ बहतर् ह‌

  16. राकेश जी, आपने इतिहास को काफी समेटने का प्रयास किया है लेकिन एक चूक हो गयी उसे तुरन्‍त दुरस्‍त करलें। दिनशा पेटिट की बेटी रत्ती थी, जिससे जिन्‍ना के शादी की थी। दीना तो उनकी बेटी थी।
    जसवंत सिंह ने जो भी लिखा है वह राजनैतिक महत्‍वाकांक्षाओं को देखते हुए तथा व्‍यक्तिगत नासमझी को दर्शाने वाला लिखा है। जिन्‍ना की योजना थी कि 15 अगस्‍त के दिन सम्‍पूर्ण भारत पर पाकिस्‍तान का झंडा लहराए, इस सारी योजना की भनक सरदार पटेल को लग गयी थी और उन्‍होंने तुरन्‍त कार्यवाही करते हुए सारी 560 रियासतों के एकीकरण की कार्यवाही की। यदि सरदार नहीं होते तो जसवंत सिंह का नाम शायद कुछ और होता। यह देश का दुर्भाग्‍य है कि हम राजनैतिक खिलवाड करते समय इतिहास के साथ भी खिलवाड करते हैं जिसका खामियाजा देश को भुगतना पडता है। आपने बहुत ही अच्‍छा आलेख लिखा है बधाई।

  17. Shree maan aap accha likte hai lekin kahi na kahi apnke lekhan mey pachpaat nazar ata hai ager muslim dost nahi hai to dosti karo… sacchai khud maloom ho jati hai..eeshwar apki raksha kare

  18. beta ager musalman na hote to kiya ham akele azadi paa lete…kabhi nahi.. sir syed ne theek hi kaha thaa yeh dono ek maa ke 02 aakheh hai… kiya akele hindu yaa muslim (ek aakheh) se sahi aur puree tasveer tekhlete yaa badal dete.. kabh nahi jitna unka balidan hai utna hi muslim ka.. ab bhashan dena band karo.. beta

  19. राकॆश् जी का लॆख् पुर्णतया इतिहास् सम्मत और् सार् गर्भित् है दुर्भाग्य सॆ शिक्षा का वर्त्मान स्वरूप् सामान्य जन् कॊ सही सही इतिहास् की जान्कारी उपलब्ध् नही हॊनॆ दॆता और जसवन्त सिह् जॆसॆ लॊग दिग्भमित् करनॆ का काम् बाखूबी कर दॆतॆ हे

  20. जिन्ना जिन्ना जिन्ना बहुत हो चूका अब यह चर्चा समाप्त होनी चाहिए . सरदार पटेल के बारे में अगर कुछ गलत लिखा है तो सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगनी चाहिए . वैसे जसवंत सिंह ने लिखा क्या है कौन से पन्ने पर यह उनकी किताब मेरे पास है मै भी पढना चाहता हूँ

  21. ये सरदार थे जिन्होंन विदेशी आक्रमणों की आंधी में उध्वस्त हो गए द्वादश ज्यातिर्लिंगों में एक सोमनाथ मंदिर की फिर से प्राण प्रतिष्‍ठा की। मानों 11 वीं सदी में हिंदुस्तान को गुलाम बनाने के लिए एक के बाद एक भयानक हमलों का जो सिलसिला सोमनाथ को ध्वस्त कर प्रारंभ किया गया था सरदार ने उसी मंदिर के शिलान्यास से दुनिया में भारत विजय के अभियान का श्रीगणेश किया था। yi si liye Nehru ne un ko mar dia our ayadhya kashi our mathura na toot sha ke iss ki kanu ni bayabastha ki ki hindu sada gulam hi rahe.

Leave a Reply to rahul tripathi Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here