जनलोकपाल लाओ, फिर अन्ना की टीम को भी फांसी लगाओ!

0 हां जनता और सरकार की गल्ती में बड़ा फर्क होता है !

इक़बाल हिंदुस्तानी

जब से टीम अन्ना ने सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलकर जनलोकपाल लाने की मांग की है तब से ही सरकार और खासतौर पर कांग्रेस टीम अन्ना के सदस्यों पर लगातार कीचड़ उछालने का अभियान चला रही है। कभी तो केजरीवाल को इनकम टैक्स का नोटिस थमाया जाता है और कभी किरण बेदी पर बिजनैस क्लास का विमान किराया लेकर इकॉनोमी क्लास में सफर करने का आरोप लगाया जाता है। कभी कुमार विश्वास पर अपने कॉलेज से तीन दिन की छुट्टी लेकर 13 दिन तक गायब रहने का आरोप लगाया जाता है कभी स्वयं अन्ना पर संघ परिवार से मिले होने का बेबुनियाद और झूठा आरोप लगाया जाता है। इससे पहले शांतिभूषण पर सीडी के बहाने मोटी रकम लेने का आरोप लगाया जा चुका है। टीम अन्ना ने इन आरोपों का जवाब बार बार एक ही दिया है कि अगर उन्होंने कोई गैर कानूनी काम किया है तो जनलोकपाल बिल पास करो और उनके खिलाफ भी इस कानून केे तहत कड़ी कार्यवाही करो उनको कोई एतराज़ नहीं होगा लेकिन इस तरह की बेतुकी चर्चा छेड़ कर देश की जनता का ध्यान मुख्य मुद्दे से हटाने का षड्यंत्र मत रचो। यह बात समझ में आने वाली भी है कि जब कोई सरकार के खिलाफ आंदोलन करता है तो सरकार को उसमें दस ऐब नज़र आने लगते हैं लेकिन जब तक कोई सरकार के खिलाफ कुछ नहीं बोलता तब तक सरकार ‘हम भी चोर तुम भी चोर’ की तर्ज़ पर गूंगे का गुड़ खाकर चुप रहती है।

यही मामला योगगुरू बाबा रामदेव के साथ देखने में आया था कि जब तक वे योग के काम में लगे रहे तो सरकार चुप्पी साधे रही और जैसे ही कालेधन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बाबा ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला तो सरकार उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गयी । मजे़दार बात यह है कि ढेर सारे आरोप लगाने और तमाम जांच पड़ताल के बावजूद सरकार आज तक बाबा के खिलाफ कोई ठोस सबूत और गवाह पेश नहीं कर पाई है। यही हाल अन्ना के मामले में हो रहा है कि सरकार का दावा है कि टीम अन्ना के लोग साफ सुथरे नहीं है। खैर यह बात अन्ना के आंदोलन के बाद सरकार को समझ आई कि उसके खिलाफ जो कोई आवाज़ उठायेगा उसको पाक साफ होना चाहिये वर्ना सत्ता के बल पर उसको सबक सिखाने का पूरा प्रयास किया जायेगा। सरकार को यह मामूली सी बात समझ में नहीं आ रही कि उसकी ही नहीं तमाम नेताओं की जनता की नज़र में कोई साख और विश्वसनीयता नहीं है जिससे अन्ना जैसा एक मामूली आदमी उसकी ऐसी तैसी करने को काफी है। यही हाल टीम अन्ना का है।

सरकार चाहे जितना शोर मचाये लेकिन टीम अन्ना पर लगने वाले आरोपों पर लोग कान देने को तैयार नहीं है। हालांकि यह सच और नैतिकता स्वीकर कर किरण बेदी ने प्राइवेट कम्पनी का वह फालतू किराया लौटाने का साहसी निर्णय किया है जो वे अपनी एनजीओ के ज़रिये ज़रूरतमंद और गरीब लोगों पर ख़र्च कर नेक काम करने वाली थीं। ऐसे ही टीम अन्ना की कोर कमैटी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने तो अपने उूपर हुए हमले पर आरोपी को माफ करने के साथ यहां तक कहा है कि अगर जनलोकपाल की मांग करने की सज़ा या बदले के तौर पर उनकी जान भी चली जाये तो उनको कोई डर और दुख नहीं होगा। यही बात अन्ना दो बार आमरण अनशन करके सही साबित कर चुके हैं। दरअसल ये सारे जाल इसलिये बुने जा रहे हैं जिससे यह लगे कि सरकार, कांग्रेस और सभी राजनीतिक दल ही नहीं खुद अन्ना और उनकी टीम के सदस्य भी बेईमान हैं और जब सब ही बेईमान हैं तो जनलोकपाल बनाने से ही क्या होगा? लेकिन ऐसा नहीं है।

सऊदी अरब के एक अख़बार ने कहा है कि अगर भारत सरकार भ्रष्टाचार को लेकर सख़्त कानून बनाने को तैयार है तो उसको अन्ना हज़ारे और उनकी टीम से टकराव न कर उनके साथ सहयोग का रास्ता अपनाना चााहिय वर्ना उसकी बचीखुची विश्वसनीयता जनता में और भी ख़राब होने का ख़तरा है जबकि टीम अन्ना पर कांग्रेस के नेताओं के आरोपों से जनता की सहानुभूति अन्ना की टीम के साथ तो बढ़ेगी लेकिन गुस्सा सरकार के खिलाफ बढ़ता जायेगा। कमाल की बात है कि इतनी दूर बैठा विदेश के एक अख़बार का संपादक इस सच को देख और समझ रहा है लेकिन हमारे यहां के एक से एक काबिल मंत्री और कांग्रेस के दोस्त रूपी दुश्मन दिग्विजय सिंह, राशिद अल्वी और शकील अहमद जैसे नेता इस हकीकत को नहीं समझ रहे हैं।

जिन लोगों का यह दावा है कि टीम अन्ना ने हिसार के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलकर गलत किया क्योंकि वहां तो कांग्रेस पहले ही कमजोर थी और हारने जा रही थी। उनको शायद यह तथ्य नहीं पता कि वहां हरियाणा में कांग्रेस की ही सरकार है और उपचुनाव जीतने के लिये उसके सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रखा था फिर भी वहां न केवल कांग्रेस हारी बल्कि उसकी ज़मानत भी ज़ब्त हो गयी। एक बात और 2009 के मुकाबले इस बार कांग्रेस प्रत्याशी का वहां 50 हज़ार से अधिक वोट घटकर 204539 से 149786 रह गया। इसका मतलब साफ है कि टीम अन्ना के प्रचार का असर वहां मतदाताओं पर अच्छा खासा पड़ा जिससे उसके केंडीडेट जयप्रकाश के 25 प्रतिशत मत कम हो गये। और अगर कांग्रेस को यह लगता है कि उस पर टीम अन्ना के प्रचार से कोई असर नहीं पड़ा तो वह इतना हंगामा क्यों मचा रही है।

उन लोगों से एक सवाल पूछना चाहता हूं जिनका यह कहना है कि टीम अन्ना ने कांग्रेस का विरोध करके राजनीतिक काम किया है क्या अन्ना ने कोई राजनीतिक दल बनाया है? क्या किसी पार्टी या प्रत्याशी को सपोर्ट करने की अपील की है? क्या किसी पार्टी का सत्ता में होने के कारण और जनहित के एक कानून को न बनाने की वजह से विरोध करना गैर कानूनी, गैर संवैधानिक और अनैतिक काम है? महाराष्ट्र के खड़कवासला, बिहार के दरौंदा और आंध्र के बांसवाड़ा में तो टीम अन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ कोई प्रचार भी नहीं किया था लेकिन वह सब उपचुनावों में हार गयी तो इसका मतलब जनता की नज़र में वह बेईमान और भ्रष्ट मानी जा रही है। जहां तक टीम अन्ना के सदस्य राजेंद्र सिंह और पी वी राजगोपाल का अन्ना से अलग होने का सवाल है तो यह ज़रूरी नहीं कि हर आदमी हर आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने की हिम्मत और काबलियत रखता हो। साथ ही वे व्यस्त भी हैं।

न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े का यह कहना कि कांग्रेस का विरोध इसलिये नहीं किया जाना चाहिये कि उसमें अच्छे लोग भी हैं तो उनसे पूछा जा सकता है कि मनमोहन सिंह कैसे आदमी हैं उनकी योग्यता, ईमानदारी और सादगी का देश को क्या फायदा हो रहा है? आज जेल में बंद पूर्व संचार मंत्री ए राजा तक ने तो उनकी बात सुनी नहीं। मनमोहन खुद कांग्रेस हाईकमान के इशारे और अपने आक़ा अमेरिका को खुश करने के लिये कुछ भी करने को तैयार रहते हैं जिससे कांग्रेस के अच्छे और ईमानदार लोगों का क्या रोल रह जाता है? हालत यह है कि सोनिया और राहुल जो चाहते हैं सरकार में या तो वो होता है या फिर जो घटक और कारपोरेट वाले चाहते हैं वह मजबूरी में होता है।

0 कव्वों ने हंस से कहा भाइयों भेदभाव मिटाओ,

हम तो सफेद हो नहीं सकते तुम ही काले हो जाओ ।। 

Previous articleकुमार केतकर साहब “नमक का कर्ज़” उतारिये, लेकिन न्यायपालिका को बख्श दीजिये…
Next articleआज किरण को माफ़ करें, कल कनिमोझी को!
इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

5 COMMENTS

  1. इकबाल हिन्दुस्तानी लिखते बहुत अच्छा हैं पर इनको अभी और ज़्यादा जानकारी लेने की आवश्यकता है.

  2. इकबाल भाई जनता समझ चुकी he कि कौन कितने पानी में हे आगाज़ हिसार औरखडगवासला से हुआ हे अंजाम दिल्ली में होगा . इस सर्कार का बहुत बुरी तरह से मुह कला होने वाला हे….जय हिंद

  3. इकबाल हिन्दुस्तानी जी,आज इस लेख की प्रशंसा करने में मेरे शब्द कम पड़ रहे हैं.पता नहीं चल रहा है कि इस बेबाक प्रहार की कितनी प्रशंसा करूँ.आपने आलोचना के साथ चेतावनी भी दी है,पर कहा जाता है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि ,तो आज के इन नेताओं पर यह पूरी तरह चरितार्थ हो रहा है.हालाँकि अभी भी मेरी व्यक्तिगत मान्यता यही है कि अन्ना टीम को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में सबसे स्वच्छ छवि वालों को समर्थन देना चाहिए, चाहे वह किसी दल का हो या निर्दलीय ही क्यों न हो,फिर भी मैं मानता हूँ कि हिसार में अपनी मान्य नीति से थोडा अलग हटने में कोई ख़ास बुराई नहींथी रह गयी अन्ना टीम पर लांछन की बात तो आपने ठीक ही लिखा है कि हम तो उजले हो नहीं सकते तो तुम्ही को काला बना कर अपनी बीरादरी में शामिल कर लेते हैं.ऐसे भ्रष्टाचार के विभिन्न पहलुओं पर बहस तो होती है पर किसी ने शायद उसके मूल परिभाषा पर ध्यान नही दिया भ्रष्टाचार अपने शासकीय दर्जे(आफिसियल पोजीशन) का निजी लाभ के लिए दुरूपयोग को कहते हैं.किरण बेदी जब किराये से पैसे बचा कर उनको अन्य पुन्य कार्यों में खर्च करना चाहती थी तो उनके दिमाग में भी भ्रष्टाचार की यही परिभाषा रही होगी,फिर भी नैतिकता की दृष्टि से किरण बेदी गलत हैं और जब वह यह गलती सुधारने को तैयार हैं तो इसपर इतना हो हल्ला क्यों?बात वहीं पर आकर अटक जाती है कि हम काले हैं तो दूसरों को उजला क्यों रहने दे?हम नाली के कीड़े है और इस गंदगी में प्रसन्न हैं हैं तो हम तो यही चाहेंगे कि दूसरों को भी इस गंदगी में घसीट लें.कुछ समय बाद वे इस गंदगी में जीने की आदत ड़ाल ही लेंगे.तब कौन किसके विरुद्ध अभियान चलाएगा ,पर वे भूल गए कि अब जब कि यह अभियान चल पडा है तो हम केवल अन्नाहजारे के लिए लम्बी उम्र की कामना करे.अगर अन्ना हजारे इसका नेतृत्व करते रहें तो यह अभियान रूकने वाला नही.मेरा मानना है कि बाबा रामदेव और श्री रवि शंकर जैसे लोगों का सहयोग तो इस अभियान को मिलता ही रहेगा

Leave a Reply to Parveen Kapoor Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here