राजनीति

जनलोकपाल ने रोकी देश की चाल

गोपाल सामंतो

आज कई सालो बाद देश नाजुक आर्थिक दौर से गुजर रहा है। देश में विदेशी निवेश आना लगभग बंद हो चुका है, उद्योग घराने भी खमोश है और नए उद्यमों में निवेश नहीं करना चाहते है। इसका एक कारण ये जरूर है की देश में अप्रत्यक्ष राजनैतिक अस्थिरता बनी हुई है पर इस आर्थिक सूक्ष्मकाल के लिए जनलोकपाल आन्दोलन भी कही न कही जिम्मेदार है। जनलोकपाल आन्दोलन कितना सफल हुआ और वह कितना देशवासियो का भला कर पाया यह तो तर्क का विषय है,लेकिन इस आन्दोलन ने देश की औद्योगिक विकास को एक हद तक रोक दिया इसमें कोई संशय की बात नहीं है। आज हर औद्योगिक सेक्टर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहा है, नई नौकरियों का अकाल सा प्रतीत हो रहा है। जहां देश 4-5 साल पहले नित नए कीर्तिमान स्थापित करने की ओर अग्रसर वहीं आज सकल घरेलु उत्पाद आगे बढऩे का नाम ही नहीं ले रहा है। कई औद्योगिक घराने से सम्बंधित लोग सीबीआई और कोर्ट के चक्कर लगा रहे है और कुछ तो जेल की हवा खा रहे है। अगर देश में भ्रष्टाचार हुआ है तो उसे भविष्य में रोकने के लिए कड़े कानून बनने चाहिए लेकिन आर्थिक विकास को रोक कर नहीं।

जनलोकपाल आन्दोलन कहा चला गया ये कहना अब कठिन है, और उससे जुड़े लोग आजकल क्या कर रहे है ये भी कहना मुश्किल है। आजकल ये आन्दोलनकारी सिर्फ

फेसबुक और ट्विटर पर हावी हंै और कभी कभी न्यूज चैनलों में इनकी झलक देखने को मिल जाती है। अगर जनलोकपाल आन्दोलन से जुड़े लोगो की बात की जाए तो एक ही इंसान उनमे से ऐसा दिखेगा जो गरीबी से निकलकर आया है और जिसने गरीबी को करीब से देखा है और वो है सिर्फ अन्ना हजारे। बाकी जितने लोग भ्रष्टाचार और देश को सुधारने की बात करते है वो सारे के सारे लोग हवाई यात्राओं में व्यस्त दिखते है। आज अगर आर्थिक विकास रुकने का खामियाजा कोई भुगत रहा है तो वो देश का आम आदमी। जिनका इन उद्योगों के भरोसे पेट चलता है। उद्योगपतियो ने चुप्पी साध रखी है क्योंकि उनके पास पैसो की कोई कमी नहीं है और उनके पेट की चिंता उन्हें है ही नहीं, नेतागण चुप इसलिए हैं क्योंकि उन्हें भ्रष्टाचार से डर लगने लगा है और वो अपना दामन साफ रखना चाहते है और ये तथाकथित आन्दोलनकारी अपने-अपने कार्यो में व्यस्त है। इन आंदोलकारियो में एक नामी वकील है जो एक सुनवाई की 15 – 25 लाख रुपये लेते है , एक कवि है जो एक कार्यक्रम का 3 – 5 लाख रुपये लेते है और कई ऐसे भी समाज सेवी है जो कि स्कूल कॉलेज के ओपनिंग का फीता तक काटने का पैसा ले लेते हंै। सोचिये जरा अब ऐसे में तो ये लगता है की ये आन्दोलन इनका व्यक्तिगत विज्ञापन का नया और अचूक तरीका था। कई लोगो ने जनलोकपाल आन्दोलन को गांधीजी के स्वतंत्रता संग्राम से जोड़कर देखा कुछ ने जयप्रकाश आन्दोलन से जोड़कर देखा पर उन आंदोलनों में और इस आन्दोलन में एक बहुत बड़ा अंतर है । ये जनलोकपाल आन्दोलन प्रायोजित आन्दोलन था जिसके पीछे कुछ बड़े एनजीओ लगे हुए थे और खूब पैसे भी खर्च हुए थे और इस आन्दोलन का एक प्रमुख निशाना देश की आर्थिक विकास को रोकना भी था जिसमे की इस आन्दोलन को सफलता मिल गयी। अक्सर लोग चाइना के प्रगति की वाह वाही करते मिल जाते है और अपने देश के प्रगति से तुलना करने लग जाते है। चाइना के कई शहरों के होटलों में अंग्रेजी भाषा सिखाने वालो को मुफ्त भोजन परोसा जाता है क्योंकि वो जानते है की अगर प्रगति करना है तो अंग्रेजी आवश्यक है। चाइना को आज कही न कही भारतीय बाजार से खतरा महसूस जरूर होता है शायद यही वजह है की वो हमारे प्रगति को हमेशा रोकना चाहते है कभी लेफ्ट पार्टियो के जरिये ,कभी नक्सल गतिविधिओ के जरिए और कभी कभी ऐसे आंदोलनों के जरिए।

इस आन्दोलन के पीछे कई ऐसे देश भक्त नजऱ आते थे जिनका आधा समय विदेशो के दौरों में ही गुजरता है। आज देश का जो संविधान है वो परिपक्व और मजबूत है कुछ खामिया जरूर है पर वो समय के साथ धीरे धीरे अपने आप सुधर जाएँगी। राईट टू इन्फोरमेंशन , राईट टू एजुकेशन ऐसे नियम है जो इस देश के संविधान की ही देन है। आज हमारे देश का संविधान 60 साल पुराना ही हुआ है और बहुत बड़ा भविष्य हमारे सामने है तो ऐसे आंदोलनों में देश को झोंकने से पहले ये विचार करना भी जरूरी है की इससे देश के सारे वर्गों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, स्वार्थपूर्ति के भाव से आन्दोलन का देश पर हमेशा ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जैसा की जनलोकपाल आन्दोलन से हुआ।