जे.एन.यू. और भारत की ‘सत्यमेव जयते’ की परंपरा

सत्यमेव जयते,

बात 1984 की है जब पंजाब में स्वर्ण मंदिर में छिपे आतंकियों को बाहर निकालने के लिए ऑप्रेशन ब्लू स्टार कर के इंदिरा गाँधी अपने हाथ बुरी तरह जला चुकी थीं । सिख समुदाय उन्हें अपने सबसे पवित्र धर्म स्थल की बेअदबी का दोषी मानता था, जबकि असली दोषी वो थे जो हथियार ले के एक पवित्र स्थल को अड्डा बनाए बैठे थे । इसके कुछ समय पश्चात कुछ सिख आतंकवादियों ने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या करा दी। उनकी हत्या के चार वर्ष पश्चात 1988 में सिख आतंकवादी फिर स्वर्ण मंदिर परिसर में घुस गए ।

इस बार सरकार ने स्वर्णमंदिर में सेना भेजने की अपनी पुरानी गलती नहीं दोहराई। सरकार ने सैनिकों के माध्यम से स्वर्ण मंदिर परिसर घेर लिया और वहाँ से दूरदर्शन का सीधा प्रसारण करना आरंभ कर दिया । पुलिस ध्वनि विस्तारक से परिसर में घुसे आतंकियों से घोषणा कर रही थी कि आपको कोई कुछ नहीं कहेगा। आपसे हाथ जोडक़र विनती है कि आप कृपया बाहर आ जाइये। पुलिस ने एक भी गोली नहीं चलाई पर पानी की आपूर्ति काट दी और परिसर के सभी शौचालयों पर कब्जा कर लिया । पुलिस ने आतंकियों को गोली नहीं मारी। परंतु उनका पानी बंद कर दिया और शौच आदि की निवृत्ति पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इससे आतंकियों को बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो गयी।

400 लोगों को शौचालय नहीं जाने दिया । विवश होकर  उन्हें उन बर्तनों में 10 दिन शौच आदि करना पडा जिनमें कल तक प्रसाद बनता था, और जब 10 दिन बाद आतंकियों ने आत्मसमर्पण किया तो जब पुलिस अन्दर घुसी तो अपने साथ दूरदर्शन की टीम भी ले गयी । दूरदर्शन ने हमको दिखाया कि पवित्र स्थल में कितनी बदबू है और कितना मल मूत्र भरा है बर्तनों में, उन बर्तनों में जिनमे कल तक प्रसाद बनता था । सिख गुस्से से आग बबूला हो गए। उन्होंने देखा कि उनके पवित्र स्थल को किस तरह अपवित्र किया इन आतंकियों ने।

बस वही से शुरू हुई आतंकवाद की उलटी गिनती । लोगों ने आतंक और आतंकियों को समर्थन देना बंद कर दिया ।

लोगों ने खालिस्तान आंदोलन को समर्थन देना बंद कर दिया। सिर्फ 10 दिन के सीधे प्रसारण ने पूरे आंदोलन की पोल खोल दी और साथ ही कमर तोड़ दी। यह ऑप्रेशन ब्लैक थंडर जानते हैं किसके दिमाग की उपज थी? अजीत डोभाल की।

अब आइये जे.एन.यू. पर।  प्रधानमंत्री मोदी ने इन्हीं डोभाल को अपने प्रधानमंत्री बनते ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी। इनकी कार्यशैली पूर्णत: एक राष्ट्रभक्त अधिकारी की है। जे.एन.यू. में जो कुछ भी 9 फरवरी को हुआ था, वैसा वहां बहुत पहले से होता आ रहा था। देश घातकों के रूप में यहां राष्ट्रद्रोहियों को दूध पिलाया जा रहा था। यह कितने दुख की बात है कि जिस देश में ऐसे करोड़ों बच्चे हों जिनके लिए दो जून की रोटी भी उपलब्ध न हो उस देश की एक यूनिवर्सिटी में सरकार एक बच्चे पर लाखों रूपया वार्षिक व्यय करे, और जब ये बाहर निकलकर आयें तो पता चले कि ये सब राष्ट्रद्रोही बनकर बाहर आए हैं, तो  भारत माता के दिल पर क्या बीतती होगी? यह वही जानती है।

भारत ही नही अपितु सारे विश्व ने देखा है कि जे.एन.यू. क्या है? वहाँ कौन लोग रहते हैं? क्या क्या होता है वहाँ? कैसे कैसे नारे लगते हैं । जे.एन.यू. तो हमेशा से ही ऐसी थी। पर इसका यह देश घातक स्वरूप लोगों ने और विश्व ने पहली बार देखा है। यह ठीक है कि जो कुछ हुआ है और जितना उसे प्रचार मिल गया है उससे कन्हैया एक नेता बनने की डगर पर चल पड़ा है, परंतु जे.एन.यू. का यह स्वरूप सामने आना ही चाहिए था, जिससे कि राष्टद्रोहियों के बारे में लोगों की स्पष्ट धारणा बने और उन्हें पता चले कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश को तोडऩे की कैसी-कैसी घातक नीतियां चल रही हैं?

आज भी हम देख रहे हैं कि 5 देश द्रोही, भारत की बर्बादी का नारा लगाने वाले देश द्रोही, हर घर से अफज़ल निकालने वाले देश द्रोही, जे.एन.यू. में बैठे हैं ।

अजीत डोभाल ने जो पंजाब में आतंकवादियों के विरूद्घ माहौल बनाने में सफलता प्राप्त की थी, वही सफलता उन्हें जे.एन.यू. को नंगा करके दिखाने में मिली है। कोई भी देश अपने पुरातन स्वरूप को मिटाकर या अपने टुकड़े-टुकड़े कराने की अनुमति अपने किसी भी वर्ग, संप्रदाय अथवा समुदाय को नही दे सकता। लेकिन जे.एन.यू. में ऐसी गतिविधियां चल रही थीं, और उन्हें मोदी व अजीत डोभाल की जोड़ी सहन नही कर सकती थी।  भारत की बर्बादी का नारा लगाने वाले दीखने में बेशक पांच हों, लेकिन देश को समझना चाहिए कि उनके पीछे 50 और 50 के पीछे 500 उसके पश्चात पांच हजार …की  एक लंबी श्रंखला है। जे.एन.यू. का भंडाफोड़ होने पर हमें पांच, पचास या पांच सौ तक नही रूकना चाहिए। आज यह  केवल सरकार की जिम्मेदारी नही है कि हम देश विरोधी और देशद्रोही लोगों की पड़ताल करने का दायित्व केवल सरकार पर डालकर अपने आपको पीछे कर लें, अपितु हर देशवासी का यह पुनीत कत्र्तव्य है कि वह स्वयं भी सरकार का सहयोगी बने। प्रश्न इस समय देश के अस्तित्व का है, जिन लोगों को देश के भीतर आजादी चाहिए वह वास्तव में देश का अस्तित्व मिटाने के षडय़ंत्रकारी हैं, जो विदेशी शक्तियों के संकेतों पर भारत में नाच रहे हैं।

ऑप्रेशन ब्लैक थंडर के परिणाम आने में दो से चार वर्ष का समय लगा था, हमें यह मानकर चलना होगा कि जे.एन.यू. में भी जो कुछ हुआ है और उस पर सरकार जिस प्रकार सक्रिय हुई है उसके परिणाम आने में भी समय लगेगा। वामपंथियों ने साठ वर्ष से जहां कब्जा कर रखा था उसकी सफाई साठ घंटों में नही हो सकती।#कन्हैया को पता होना चाहिए कि मोदी ने #सत्यमेवजयते के शब्द ऐसे ही नही बोले थे, उन्होंने अपना सफाई अभियान प्रारंभ किया है, उसके परिणाम निश्चित ही ‘सत्यमेव जयते’ की भारत की परंपरा को ही दोहराएंगे। हमें समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

#jnu  #satyamevjayate

1 COMMENT

  1. कन्हैया जैसे माछर ही ऐसे पानी में जन्म लेते हैं , वामपंथ आज विश्व में कुछ गढ़हों में रुके हुए पानी सदृश्य है , जो किसी भी रूप में न तो रुचिकर है न उपयोगी , यह दुर्गन्ध फैलाने व मछर उत्पादन के स्रोत ही हैं इन गड्ढों का भराव जरुरी है , कांग्रेस तो खुद ऐसे गड्ढे खोदती रही है क्योंकि ये उसके भी प्रवास व विलास के साधन रहे हैं इस लिए यह काम अब कोई राष्ट्रवादी सरकार ही कर सकती है व डोभाल जैसे नीतिकार ही इस योजना को साकार कर सकते हैं जनता का लक्ष्य ऐसी योजना को समर्थन देना होना चाहिए , बिकाऊ व दलों के मीडिया हाउस तो चिल्ल पों मचाएंगे ही, कुछ स्वयंभू बुद्धिजीवी भी प्रलाप , विलाप करेंगे , लेकिन जे एन यू में विलास कर रहे इन भोगियों को मिटाना हर देश वासी का लक्ष्य होना चाहिए

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress