दादी को समझाओ जरा

मुझे कहानी अच्छी लगती

कविता मुझको बहुत सुहाती

पर मम्मी की बात छोड़िये

दादी भी कुछ नहीं सुनातीं

पापा को आफिस दिखता है

मम्मी किटी पार्टी जातीं

दादी राम राम जपती हैं

जब देखो जब भजन सुनातीं

मुझको क्या अच्छा लगता है

मम्मी कहां ध्यान देती हैं

सुबह शाम जब भी फुरसत हो

टी वी से चिपकी रहती हैं

कविता मुझको कौन सुनाये

सुना कहानी दिल बहलाये

मेरे घर के सब लोगों को

बात जरा सी समझ न आये

कोई मुझ पर तरस तो खाओ

सब के सब मेरे घर आओ

मम्मी पापा और दादी को

ठीक तरह से समझाओ

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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