चरित्र जज साहब, कपिल सिब्बल, गरीब किसान दीना और उसका वकील सुरेश …
(किसान दीना के खेत पर प्रधान ने कब्जा कर लिया है | सुनवाई हो ही रही थी कि सिब्बल साहब का फ़ोन आ जाता है)
कपिल सिब्बल :- “हेल्लो हजूर, .. माईबाप हैं का ?
जज साहब :- कहिये क्या हुआ ??
कपिल सिब्बल :- गजब हो गया साहब, जुलम हो गया | लूट की थी पर अब खुदै ही लुट गये हजूर | बचा लीजिये | अब आपै का ही सहारा है |
जज साहब :- अरे कुछ आगे भी कहिये जनाब | हुआ क्या है कुछ तो बताइए ?
कपिल सिब्बल :- हुआ क्या जनाब | चंदा हुआ था | डायन खा गयी | आरोप मा मैय्या जी को पकड़ लिये हैं | कहते हैं आज ही पवित्तर करेंगे | आज ही सती करेंगे |
जज साहब :- अरे ठंडा पानी पीजिये सिब्बल साहब और साफ साफ कहिये कि बात क्या है ?
कपिल सिब्बल :- गुजरात मा आग लगी थी हजूर | सती मैय्या बेघरन काजे आगे आई | खून पसीना एक करकै पाई पाई जोड़ी | चंदा किया था पर खसम ने आकै खेल बिगाड़ दिया | सब खा गया साहब कच्छओ नहीं बचा |
जज साहब :- (आखें चमकाते हुए) अब आया थोड़ी थोड़ी समझ में | आप गुजरात दंगो की बात कर रहे हैं |
कपिल सिब्बल :- नहीं माईबाप गुजरात दंगो से आगे की बात कर रहे हैं |
दीना :- (हाथ जोड़कर) हमाई ऊ सुन लेउ साब | जोहरू बाट जोहत है | बिटवा का शरीर तप रहा है | कल से अन्न का दाना हु न गया अन्दर | माईबाप | तनी जल्दी से सुन…
जज साहब :- (गुस्से में )विल यू कीप क्वाईट | यू आर इंटरएप्टिंग द कोर्ट एक्शन | नेक्स्ट टाइम यू विल स्पीक एंड यू विल बी चार्ज फॉर कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट |
(किसान का वकील किसान की तरफ हिकारत से देखते हुए चुप रहने का इशारा करता है | कांपता हुआ किसान चुप हो जाता है | )
जज साहब :- माफ़ कीजियेगा सिब्बल साहब | हाँ तो आप क्या कह रहे थे ?
कपिल सिब्बल :- गुजरात के आगे की कहानी है साहब | तबाह घर की आंच पर जैसे तैसे तवा रखा | रोटी की जगह बोटी सेकीं | लाशो के ढेर पर बैठ मटन खाया पानी की जगह खून पिया | खाय खाय के मुटाय गई | समय के साथ भेद खुला | पता चला कि जख्मों पर मरहम लगाने वाली मदर टेरेसा की साक्षात् अवतार तो बगुला भगत है | मेंढकन को सुरक्षित दूसरे तालाब में पहुँचाने की जगह एक एक करकै निगल गयी | अब सिगरे मेढक बचा खुचा दाना पानी बचाए खातिर सरकार से जुहार करें हैं |
जज साहब :- हम्म ! सुन रहे हैं | आगे सुनाइए |
कपिल सिब्बल :- और का हजूर, खाला के मामूजान द्वारे खड़े हैं | सरकारी कंगना लाये हैं | कह रहे हैं कि बरात खातिर बहू की विदा करेंगे आज | सरकारी बंगला दिलवाएंगे | सिगरी चर्बी पिघलायेंगे |
जज साहब :- तो कर लेने दीजिये न गिरफ्तार | बेल हो जायेगा | इतना बड़ा गुनाह नहीं है गबन हमारी कानूनी किताब में |
कपिल सिब्बल :- ई का कह रहे हैं हजूर | परवरदिगार की निगाह से देश विदेश में बहुत इज्जत है | मिटटी में मिल जाई सब इज्जत |
जज साहब :- (नि:श्वास) अच्छा ! क्या सेवा कर सकते हैं हम | चाहते क्या हैं आप हमसे ?
कपिल सिब्बल :- सेकुलरिज्म खतरे में है माईबाप कुछ कीजिये |
जज साहब :- चलिए बेल दे देते हैं धर्मदेवी को | पुलिस का चाय पानी कराईयेगा | घर आएगी पूछताछ करने |
कपिल सिब्बल :- हजूर की जय हो | न्याय की जय हो | संविधान की जय हो | भारत की जय हो |
(जज साहब कलम चलाकर तीस्ता को गिरफ्तार न करने का आदेश दे देते हैं | आर्डर आर्डर कर कोर्ट बर्खास्त कर देते हैं | नेपथ्य में न्याय की देवी की मूर्ती के हाथ से न्याय का तराजू छूट जाता है | आँख की पट्टी और काली हो जाती है | गरीब किसान भूख से बेहाल बेहोश हो जाता है | जज साहब अपने घर चले जाते हैं | )
पर्दा गिरता है |
–अनुज अग्रवाल
क्या दूर की कौड़ी लाएं आपभी और कहियेगा अपने को व्यंग्य लेखक? क्या यह व्यंग्य है या व्यंग्य की आड़ में एक ऐसे शख्सियत को गाली है, जो अपने निस्वार्थ सेवा के लिए प्रसिद्द है? इतना ही नहीं आपने तो न्यायपालिका को भी बिना किसी सबूत के कठघरे में खड़ा कर दिया.अगर आप ये सब बातें सीधी सीधी लिखते तो भी आपको कोई पकड़ने नहीं आता,पर उस हालात में साहित्य की एक बेजोड़ विधा की तो ऐसी तैसी नहीं होती.
आदरणीय सिंह जी ,
सर्वप्रथम:- तो मैं खुद को लेखक ही नहीं मानता | व्यंग लेखन तो दूर की बात है |
द्वितीय:- जिस महिला को आप कथित तौर पर निस्वार्थ सेवा के लिए प्रसिद्ध बता रहे हैं उसी महिला को गुलमर्ग सोसाइटी(जिनके लिए धर्मदेवी लड़ रही हैं ) वालो ने अपनी सोसाइटी में घुसने नहीं दिया था |
तृतीय :- आपने सही कहा कि व्यंग साहित्य की बेजोड़ विधा है | परसाई जी ने इसके लिए कहा है कि व्यंग वो है जो नश्तर की भांति चुभे | और शायद में सफल भी रहा हूँ |
आप बड़े बुजुर्ग हैं | मुझे दुःख है कि आपके मानकों पर मैं खरा नहीं उतरा | लेकिन वादा करता हूँ अबकी बार और धारदार लिखूंगा | कलम को पैना कर लिखूंगा | और पूरी कोशिश करूँगा कि अगली बार आपका आशीर्वाद प् सकूँ |
सादर _/\_
न्यायालय में ऐसे वाकये तो देखने में नहीं आयेक़िन्तु पुलिस थानो में जिनका काम पड़ता है वे जरूर कहते हैं जैसे ही कोई अपराधी पुलिस द्वारा पकड़कर लाया जाता है फोन दन दनाने लगते हैं. जनतंत्र में ये सब बातें तब तक स्वाभाविक हैं जब तक हम परिपक्व नहीं हो जातेऽउर जिम्मेदार नागरिक नहीं होते.
आदरणीय सुरेश जी, न्यायलय की व्यवस्था अपारदर्शी है | अन्याय की अपार संभावनाए हैं | और सामान्तया ये देखा भी गया है |