कविता

कहाँ गये भवानीप्रसाद मिश्र के ऊँघते अनमने जंगल

भवानीप्रसाद मिश्र ने देखे थे सतपुड़ा के घने जंगल
नींद में डूबे हुये मिले थे वे उॅघते अनमने जंगल।
झाड़ ऊॅचे और नीचे जो खड़े थे अपनी आंखे मींचे
जंगल का निराला जीवन मिश्रजी ने शब्दो में उलींचें।
मिश्र की अमर कविता बनी सतपुड़ा के घने जंगल
आज ढूंढे नहीं मिलते सतपुड़ा की गोद में पले जंगल।।
नर्मदाघाटी के घने जंगलों की मैं व्यथा सुनाता हॅू
बगवाड़ा जोशीपुर का मर्म समझो एक पता बताता हॅू।
सीहोर जिले में चहुओर फैला सागौन का घना वन था
पत्तों की छाया से आच्छांदित सुन्दर सा उपवन था।
सतपुड़ा के चिरयौवन में सप्त पहाड़ पल्लवित थे
बन्दर-भालू,शेर -चीते सभी, मस्ती में प्रमुदित थे।।
सागनों के पेड़ काटकर सतपुड़ा वन को किया उजाड़
मस्तक पर लहराते पेड़ मिटाये और मिटा दिये पहाड़।।
सतपुड़ा के वन-उपवन पहाड़ों पर कभी चरने जाती थी गौएॅ
चरना बंद हुआ चरनोई भूमि वन पर, मॅडराई काली छायाएॅ।
पीव गुजरे जमाने की बात है कविता सतपुड़ा के जंगल
लालच ने निगल लिये भवानीप्रसाद मिश्र के अनमने जंगल।।