कविता

कंगना के मन की पीड़ा


आहत है आज सारा संसार तेरी करतूतों से,
पता लगेगा तुझको,जब स्वागत होगा जूतों से।

वर्षों लग जाते है एक आशियाना बनाने में,
तुझे चंद घंटे लगे मेरा आशियाना तुड़वाने में।

क्या मिला तुझको एक नारी को करके बेदखल,
पता लगे तुझको जब सत्ता से होगा तू बेदखल।

बदले की भावना थी उसे तुम क्यो छिपाते हो,
सत्ता से बाहर क्यो नहीं तुम निकल आते हो।

तुड़वा करके मेरा घर,अपने घर में छिप जाते हो,
अगर हिम्मत है बाहर निकल क्यो नहीं आते हो।

आर के रस्तोगी