विविधा

कारगिल विजय की 11 (26 जुलाई) वीं वर्षगांठ पर विशेष

-राजेन्द्र पाध्ये

कारगिल युद्ध आजाद भारत के इतिहास में छद्म वेश में लड़ा जाने वाला पहला सीमाई युद्ध था साथ ही यह एक ऐसा युद्ध था जो भारतीय सशस्त्र बलों के इतिहास में सबसे अधिक वाले ऊंचाई वाले युद्धक्षेत्र में लड़ा और जीता गया। कारगिल के जिस इलाके में युद्ध छेड़ा गया था वहां का तापमान -15 डिग्री था, हड्डियों तक को जमा देने वाली कठोर ठंड में भारत के जवानों ने शानदार लड़ाई लड़ी। भारतीय सेना के जवानों के अदम्य साहस, संकल्प और दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत अपना लोहा मनवाया कि वे हर परिस्थिति में युद्ध करने और देश की रक्षा करने में सक्षम है। 74 दिनों तक चलने वाला यह युद्ध अपने आप में एक जटिल युद्ध था जिसे पाकिस्तान के प्रशिक्षित सैनिक घुसपैठियों के वेश में लड़ रहे थे। घुसपैठियों द्वारा नियंत्रण रेखा पर 150 किलोमीटर की भारतीय सीमा के साथ साथ 16000-18000 फीट की उंचाई पर पहुंचकर नीचे श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर गोलीबारी की जा रही थी। इसे पाकिस्तान द्वारा छेड़ा गया चौथा युद्ध कहना उचित होगा। अप्रैल 1999 में तात्कालीन केन्द्र सरकार के 1 वोट से संसद में विश्वास मत हार जाने के बाद देश के सामने असमय मध्यावधि चुनाव में जाने का रास्ता खुल चुका था। ऐसे समय में मई 1999 में पाकिस्तान की ओर से कारगिल क्षेत्र में हो रही भारी घुसपैठ और भारतीय इलाकों पर कब्जा जमाने की हकीकत सामने आई। कार्यकारी सरकार ने इस हमले से निपटने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई। तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने युद्ध के दौरान जबरदस्त आत्मविश्वास और उत्कृष्ठ नेतृत्व का परिचय दिया। भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के नापाक इरादों को नेतस्नाबूद के लिए आपरेशन विजय शुरु किया गया। पाकिस्तान द्वारा किया गया कारगिल हमला अप्रत्याशित था प्रत्येक वर्ष ठंड के मौसम में अपनाई जाने वाली सामान्य प्रक्रिया के तहत अत्यधिक कठोर ठंड वाले इलाकों में बनी चौकियों को खाली करने की परम्परा दोनों ही देशों की ओर से काफी लम्बे समय से चली आ रही थी, इस दौरान अपवादस्वरुप गश्त और हवाई निरीक्षण ही हुआ करता था मगर 1999 में पाकिस्तानी सेना ने इस सामान्य प्रक्रिया को ही हमले के लिए सुनहरा अवसर माना, पाक सेना कुटिल चाल चलते हुए तय समय से काफी पहले ही अपनी चौकियों पर आ गई और खाली पड़ी भारतीय चौकियों पर भी कब्जा करना शुरु कर दिया। इस कठिन लड़ाई में दुश्मन जहां हजारों फीट ऊंचे पहाड़ों की चोटियों पर मोर्चा जमाकर बैठता था जिसकी वजह से नीचे तैनात भारतीय सैनिक उसके लिए आसान निशाना होते थे इस प्रकार पाकिस्तानी घुसपैठियों की स्थिति मजबूत थी। भारतीय सैनिकों ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में यह युद्ध लड़ा था। भारतीय सेना ने यह दिखा दिया कि चाहे जितनी भी कठिन और विपरीत परिस्थितियां हो, दुश्मन उसके सामने टिक नही सकता। आजाद भारत पहली बार ऐसा हुआ था जब किसी सरकार ने शहीदों का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने के लिए पार्थिव शरीर को उनके गांव या कस्बे तक ले जाने की अनुमति दी थी। यह एक सराहनीय कदम था अटल सरकार के इस कदम से देशभर के लोगों में देशभक्ति की जबदस्त भावना जागृत हुई क्योंकि कारगिल युद्ध में शहीद जवान देश के अलग-अलग हिस्सों और राज्यों से ताल्लुक रखते थे किसी जवान के पार्थिव शरीर के गांव या कस्बे में पहुंचने पर वहां के लोगों के मन में देशभक्ति की भावना मजबूत होती थी। जिन रास्तों से जवानों का पार्थिव शरीर ले जाया गया उन रास्तों में भी देश की जनता सड़कों किनारे खड़े होकर सलामी दी। कारगिल विजय के तीन महिने बाद आए लोकसभा चुनाव परिणाम में एनडीए को मिले बहुमत के पीछे के कारणों में से एक कारण कारगिल युद्ध में अटल सरकार की सशक्त भूमिका भी रही है। कारगिल युद्ध की विजय के 11 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस युद्ध में मिली शिकस्त के बाद पाकिस्तान ने दोबारा इस तरह का दु:साहस करने की हिमाकत नही की। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को मिला करारा जवाब उसे लम्बे समय तक याद रहेगा इस युद्ध से ही अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में एक हमलावर देश के रुप में पाकिस्तान की पहचान बनी है। कारगिल विजय को भारतीय सेना के शानदार प्रदर्शन के साथ साथ भारत के स्वाभिमान और मनोबल बढ़ाने वाली विजय के रुप में भी याद किया जाता है।

(लेखक भारतीय जनता पार्टी के मीडिया सेल से जुड़े हुए हैं एवं दुर्ग जिला भाजपा के मीडिया प्रभारी रह चुके है)