![masrat alam](https://www.pravakta.com/wp-content/uploads/2015/04/masrat-alam.png)
मसरत आलम को अलगाववादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का करीबी माना जाता है। मसरत २००८-१० में राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों का मास्टरमाइंड रहा है। उस दौरान पत्थरबाजी की घटनाओं में ११२ लोग मारे गए थे। यह मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चित रहा था। मसरत के खिलाफ देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने समेत दर्जनों मामले दर्ज थे। मसरत पर संवेदनशील इलाकों में भड़काऊ भाषण के आरोप भी लग चुके हैं। मसरत आलम को अक्टूबर २०१० में श्रीनगर के गुलाब बाग इलाके से ४ महीने की मशक्कत के बाद गिरफ्तार किया गया था। उसपर दस लाख रुपये का इनाम भी था। मसरत २०१० से पब्लिक सेफ्टी एक्ट यानी पीएसए के तहत जेल में बंद था। मसरत की रिहाई के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा था कि पिछले चार साल से कश्मीर में शांति की एक बड़ी वजह यही थी कि मसरत आलम जेल में था।
दरअसल मार्च में मसरत आलम की रिहाई के बाद से ही यह आशंका जताई जा रही थी कि मसरत भले ही मुफ़्ती मोहम्मद सईद की कृपा से रिहा हो गया है किन्तु वह अपनी बेजा हरकतों से उन्हें परेशानी में ज़रूर डालेगा। ताज़ा प्रदर्शन में मसरत आलम ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह कश्मीर की अवाम को चैन से तो नहीं रहने देगा। आलम की राजनीतिक रिहाई करवाकर मुफ़्ती ने कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी की ओर बातचीत का जो हाथ बढ़ाया था, निश्चित रूप से वह अब वापस लौट आया है। उधर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी मुफ़्ती सरकार को स्पष्ट संदेश दिया था कि वे मसरत को जल्द से जल्द गिरफ्तार करे। हालांकि मुफ़्ती सरकार का यह कहना कि ‘मसरत मामले में कानून अपना काम करेगा’ यह संकेत कर रहा है कि राज्य में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार जिस कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत बनी थी, उसमें अब भी बहुत से झोल हैं। खैर यह पूर्णतः राजनीतिक मसला है मगर सोशल मीडिया से लेकर आम हिंदुस्तानी के मन में मसरत आलम के प्रति जो गुस्सा दिख रहा है, वह अद्वितीय है। और हो भी क्यों न, खाते हमारे यहां हैं, रहते हमारे यहां हैं और प्यार पडोसी दुश्मन मुल्क पर दिखाते हैं। यदि मसरत आलम और उनके समर्थकों को पाकिस्तान से इतना ही स्नेह है तो वे सभी एक बार पाकिस्तान ज़रूर जाएं। उन्हें वहां के हालात देखकर खुद के लिए खुदा से मौत की दुआ करना पड़ेगी। मसरत आलम जैसे दोगले ‘सांपों’ को मुफ़्ती सरकार जितनी इज़्ज़त, मान-सम्मान और आज़ादी देगी, वे उतना ही फुंकारेंगे। केंद्र सरकार मुफ़्ती से दोस्ती निभाकर परिणाम भुगत चुकी है और यह सही मौका है कि मसरत मामले में मुफ़्ती को उनकी जमीन दिखा दी जाए। वैसे भी मसरत जैसे लोग कश्मीरियत के दुश्मन हैं और इनपर रहम करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होना ही चाहिए।