मीडिया

कथित बुद्धिजीवियों के छिछले जातिवादी विमर्श के कुछ नूमने

हरिकृष्ण निगम 

आज के अंग्रेजी मीडिया के एक प्रभावी वर्ग की सहायता से कांग्रेसी व वामपंथी अपने विरोधियों पर जिस भोथरे अस्त्र से वार करने में पहल कर रहे हैं, लगता है उनकी वजह से जात-पांत का विष समाज को अनंत काल तक पीछा नहीं छोड़ेगा। उनके आधुनिक प्रबुद्ध विचारों के ढ़ोंग के पीछे चाहे जनगणना के दौरान जाति के आधार पर आंकड़ों का संकलन हो या किसी राजनीतिक विरोधी की देशव्यापी छवि को धूमिल करने का प्रयास हो उसकी जाति को खोज कर उस पर टिप्पणी की जाती है। हाल में जब प्रसिद्ध विचारक और अर्थशास्त्री एस.गुरूमूर्ति से लेकर जनता पार्टी के सुब्रह्ममण्यम स्वामी और पूर्व भाजपा नेता के. एन. गोविंदाचार्य ने सरकार और उसके पाले को कुछ बड़े अंग्रेजी पत्रों ने एक नई छिछली रणनीति अपनायी थी। उपर्युक्त तीनों आलोचक बुद्धिजीवियों को ताकतवर तमिल ब्राह्मणों की तिकड़ी कह कर उनका उपहास किया था।

सुब्रहमण्यम स्वामी ने जिस तरह निरंतर टूजी घोटाले में लिप्त ए. राजा और कनिमोझी के विरूद्ध, मीडिया को उनको बचाने के सभी प्रयत्नों के बावजूद, ठोस सत्यों के आधार पर जेल भिजवाया था, वह एक ऐतिहासिक प्रयास था। इसी ने कांग्रेसियों व उनके समर्थकों को विक्षिप्त कर दिया था। इसी तरह से गुरूमूर्ति का कालेधन का मुद्दा भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में परिवर्तित होकर जब योगगुरु बाबा रामदेव के मंच पर स्वयं ले गया था। यही विरोधी बौखला चुके थे। रामलीला मैदान में हुई अर्धरात्रि में निहत्थों पर पुलिस कार्यवाही के खिलाफ और बाबा रामदेव के समर्थन में जब गोविंदाचार्य खुलकर सामने आ गए तब यू. पी. ए.-2 सरकार उपर्युक्त तीनों महत्वपूर्ण विचारकों के लिए छिछलेस्तर पर यह सिद्ध करने में लग गई कि उपर्युक्त तीनों तमिल ब्राह्मणों में भी आपसी मतभेद हैं।

आज सारे देश में ही नहीं बल्कि विश्वस्तर में अन्ना हजारे और योगगुरु बाबा रामदेव की प्रतिष्ठा और छवि के बारे में किसी को शंका नहीं है। पर क्या हमने कभी ध्यान दिया है कि देश के कुछ कथित प्रबुद्ध अंग्रेजी समाचार-पत्र इस बात पर टिप्पणियां लिखने से नहीं बाज आ रहे हैंकि बाबा रामदेव हरियाणा के किस गांव के यादव हैं और उनकी प्रसिद्धि किस तरह उत्तर प्रदेश और बिहार के यादव वोटों को प्रभावित करेगी? इसी तरह अन्ना हजारे की जाति या उनका गांव का यादव मंदिर अगले किसी चुनाव में वोटों का किस प्रकार का समीकरण बनाएगा।

बड़े मेनलाईन अंग्रेजी-पत्रों के माध्यम से ही कदाचित हमें यह जानने को हाल में मिला कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछड़े वर्ग की सूची में आने वाली किरार जाति के हैं और वे अपने को क्यों यदुवंशी राजपूत मानते हैं। इसी अंग्रेजी प्रेस जो विश्वदृष्टि के मुखौटे का स्वांग रचता है बताता है कि सर्वमान्य एवं आदर की पात्र साध्वी ॠ तंभरा या प्रसिद्ध वक्ता उमा भारती लोधी अथवा मल्लाह वर्ग से हैं। इस बात को प्रमुखता देने वाले संपादक स्वयं कुटिल विकृत या मनोरोगी जैसे हैं और जातिवाद् के इस दल-दल से ही वह सत्ता के इंद्रधनुष को स्वार्थी राजनीतिबाजों के आकाश पर सजाने का प्रयास करते हैं।

जब जनता दल के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कुछ दिनों पहले आतंकवाद के संदर्भ में हिंदू विचारधारा को समर्थन करते हुए वामपंथियों के रूझानों की आलोचना की थी तब ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ जैसे बड़े अंग्रेजी पत्र ने अपने वाशिंगटन स्थित संवाददाता चिदानंद राजधट्टा के इस संपादकीय लहजे में भेजे हुए समाचार के पहले बॉक्स में ही स्वामी पर छिछले दर्जे का व्यंग करते हुए लिखा था – उनकी पत्नी पारसी है, दामाद मुस्लिम, एक साला यहूदी है और एक साली ईसाई! पर फिर भी वे भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के विरूद्ध क्यों है! समय-समय पर सेक्यूलरवादीऐसा मानकर चलते हैं कि हिंदू-समर्थक और वैश्विक दृष्टिकोण रखने वालों में अंतर्विरोध होता है। ऐसे दुराग्रही सर्व समावेशवादी हिंदू आस्था की प्रकृति को यथोचित रूप से कभी समझ नहीं सकते हैं।

जातिवाद के पोषक ऐसे अनेक अंग्रेजी समाचार-पुत्रों का स्तर तो ऐसा है कि जातिपांति के उन्मूलन का दंभ भरनेवाला उनके दिखावे का स्वयं पर्दाफाश हो जाता है। आरक्षण को और कोटे की राजनीति के ऐसे समर्थक मुस्लिमों के लिए बहुधा व कभी जाटों के लिए, कभी गुज्जरों के लिए और ढूंढ़ कर अनेक नई पिछड़ों जातियों के लिए जो मांगे अगले चुनावों के लिए कह कर हैं। वह व्यवस्था को इतने टुकड़ों में बांट सकती है। जिससे एक नागरिक की भारतीय पहचान मृग मरीचिका बन कर रह जाएगी।

* लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं।