कट्टरपंथ के उपदेशक

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प्रमोद भार्गव
आर्थिक उदारीकरण के बाद दुनियाभर में धर्म के उपदेशकों को धार्मिक आडंबर और रूढ़िवादी कट्टरपंथ फैलाने का सुनहरा अवसर मिला है। यह इसलिए जरूरी था, जिससे बाजार को उपभोक्ताओं की एक पूरी जमात मिल सके। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए बहुराष्ट्रिय कंपनियों ने सुनियोजित ढंग से दुनिया के देशों में नीतिगत हस्तक्षेप किया और किसान, मजदूर, वंचित तथा मध्य वर्ग के आर्थिक हितों से जुड़े सवालों को पीछे धकेल दिया। इस कारण प्रचार माध्यमों के मार्फत युवा शिक्षितों में धर्मांधता बढ़ाने में आसानी हुई। इस आसान अवसर का लाभ जाकिर नाइक जैसे आर्थिक रूप से संपन्न धर्म-प्रचारकों ने उठाया और धर्म को अफीम बनाने का काम कर दिया। पिछले दिनों ढाका में हुए आतंकवादी हमलों के कसूरवारों में एक आतंकी ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि वह कथित इस्लामी प्रचारक बनाम धर्मगुरू नाइक की वैचारिक पूंजी से प्रभावित होकर आतंकी जमात में शामिल हुआ है। कश्मीर घाटी में जिस बुरहान वानी हिजबुल कमांडर को सुरक्षाबलों ने मारा है, वह भी जाकिर से प्रभावित था।
भूमंडलीकरण का विस्तार हुआ तो इस आवधारणा के साथ था कि इससे दुनिया एक विश्व-ग्राम में बदल जाएगी और समावेशी विकास से असमानता दूर होगी। दुनिया की सामुदायिकता धर्मनिरपेक्ष बहुलतावादी संस्कृति की पैरोकार हो जाएगी। किंतु इस्लाम से संबंधित अतिशुद्धतावादी धर्मगुरूओं ने इसे अतिवादी आतंकी अंदोलन का पर्याय बना दिया। जिसकी कू्ररता से आज पूरी दुनिया त्रस्त है। इंटरनेट खंगालने से पता चलता है कि डाॅ जाकिर नाइक उच्च शिक्षित हैं। पेशेवर चिकित्सक हैं। उसकी विलक्षण्ता वह स्मरण-शक्ति है, जिसकी स्मृति की अक्षुणता के चलते, उसे कुरान व हदीस की आयतें मुंहजुबानी याद हैं। अपने स्वयं के ‘पीस टीवी‘ में वह जब धाराप्रवाह आयतों की मिसाल देते हुए बेवाक बोलता है, तो उससे आकर्षित होना स्वाभाविक है। वह गीता और बाइबल के भी उदाहरण देते है। लेकिन इस्लाम से श्रेष्ठ या उसके बराबर किसी दूसरे धर्म को नहीं मानता गोया जाकिर कुरान और हदीस के एक-एक अक्षर व शब्द को खुदा का शब्द मानत है। ‘श्रुति‘ को मानता है, ‘स्मृति‘ को नहीं। स्मृति ज्ञान के नए सूत्र मिलने पर बदलती रहती है, जबकि श्रुति स्थिर रहती है। जाकिर के कथित धर्मोपदेश इसी अपरिवर्तनीय व अनुदार श्रुति पर आधारित हैं। लिहाजा वह बिना हिचक के मानता है कि इस्लाम में पत्नी को पीटना बुरा नहीं है। गर्भरिोधक दवाओं का सेवन इंसान को मारने के बराबर है। पत्थरों से मौत की सजा अनुचित नहीं है। ओसामा का बखान करने में उसे लज्जा नहीं आती। जबकि जाॅर्ज बुश को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी मानता है। इस्लामी व मदरसा शिक्षा की पैरवी करता है। वंदे मातरम् मुसलमानों को ही नहीं हिंदुओं को भी बोलने की मना करता है।
इस्लाम के अलावा जाकिर दुनिया की हरेक उपासना पद्धति का विरोधी है। वह भगवान गणेश के सिर हाथी के सिर के प्रत्यारोपण विधि का उपहास उड़ाता है। अन्य हिंदु देवी-देवताओं के खिलाफ भी उसकी टिप्पणियां बेहद अपत्तिजनक है। मूर्ति-पूजा का भी मजाक उड़ाता है। वह ‘मैरी क्रिसमस‘ कहने के भी विरुद्ध है। वह दुनिया के मुसलमानों से अपील करता है कि उन्हें अल्लाह के अलावा अन्य किसी से मदद नहीं मांगनी चाहिए। पैगंबर से भी नहीं। इस विभाजनकारी विचार के चलते ही, सुन्नियों की सूफी, शिया और अमिदिया समुदायों के प्रति नफरत गहराई है। इस्लामिक स्टेट और बोको हरम इन समुदायों के खिलाफ हिंसा को इसी आधार पर सही ठहराता है। साफ है, उसके रूढ़िवादी जहालत से जुड़े ये विचार मानसिकता को कुंद करने के साथ विभाजन को बढ़ावा देने वाले हैं।
जाकिर का अपना धार्मिक चैनल होने की वजह से अपने कट्टरवादी इस्लामिक धारणाओं और विचारों को फैलाने का मौका मिला। ‘पीस‘ चैनल होने के अलावा उसकी अपनी संस्था इस्लामी रिसर्च फाउंडेशन भी है। जिसे विदेशों से बेहिसाब चंदा मिलता है। रमजान के महीने में फाउंडेशन के खाते में एक साथ रकम बढ़ जाती है। 2006 में शुरू हुआ यह इस्लामी चैनल उर्दु, अंग्रेजी, बांग्ला और चीन की मंदारिन भाषाओं में है। उसका लक्ष्य इसे 10 भाषाओं में शुरू करना है। इसके अलावा बड़ी संख्या में उसके मजहबी भाषणों के कैप्सूल यूट्यूब पर बरसों से उपलब्ध हैं। ढाका के आतंकी ही नहीं आइएस के हिंसक चरमपंथ से प्रभावित होकर जो मुस्लिम युवा संदिग्ध परिस्थितियों में हिरासत में लिए गए हैं, उनमें से कई ने जाकिर के उपदेशों से उत्प्रेरित होने की बात मंजूर की है।
ऐसा नहीं है कि जाकिर के उन्मादी प्रचार पर कोई पहली बार प्रश्नचिन्ह लगा है। पहले भी कई मर्तबा उसकी कार्य संस्कृति पर सवाल उठे हैं। उसके चैनल को अवैध बताया जा रहा है। इसकी अपलिंकिंग सीधे दुबई से सिग्नल मिलने पर हो जाती है। इसे प्रतिबंधित करने की मांग शिवसेना समेत अनेक हिंदूवादी संगठन उठाते रहे है। अब जब शिवसेना ने जाकिर पर पाबंदी की मांग पुरजोरी से उठाई है तो मक्का से जाकिर का पैगाम आया है कि ढाका का हमला गैर इस्लामी है। मीडिया मेरी टिप्पणियों को संदर्भ से काटकर दिखा रहा है। बावजूद प्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन ने ढाका में घटी आतंकी घटना के परिप्रेक्ष्य में कहा है कि आतंकियों ने बंधकों को पहले कलमा पढ़वाया और जिन्हें कलमा याद था, उन्हें बख्ष दिया, बांकी की गर्दन रेत दी।‘ तस्लीमा का निसंकोच मानना है कि ऐसे कट्टरपंथ और क्रूरता की शिक्षा धर्म से ही मिलती है। साफ है, इस चरमपंथी शिक्षा में मददगार जाकिर इसलिए है, क्योंकि उसके फेसबुक पर ड़ेढ़ करोड़ फाॅलोअर हैं। उसके उपदेशों को पीस टीवी पर 20 करोड़ लोग पूरी दुनिया में सुनते हैं, ऐसा दावा खुद जाकिर का है। इन विषैले उपदेशों को यदि इतनी बड़ी संख्या में लोग सुनते व देखते है तो यह बड़ी चिंता की बात है, क्योंकि ये उपदेश शांति और सद्भाव को बिगाड़ने वाले हैं।
ऐसे कट्टरपंथियों की सरपरस्ती जब दिग्विजय सिंह जैसे राजनेता करते हैं तो एक ओर तो इनका महिमामंडन होता है, वहीं दूसरी और इनके समर्थकों की संख्या बढ़ती है। दिग्विजय सिंह का जाकिर का मंच साझा करना इस वजह से उचित ठहराया जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस की राजनीति का आधार मुस्लिम तुष्टिकरण रहा है। ऐसे में इस्लाम प्रचारक का बखान करना, उनके लिए इसलिए मुफीद हो सकता है, क्योंकि जाकिर की सभाओं में लाखों की भीड़ रहती है और करोड़ो उसके निष्ठावान अनुयायी हैं। दिग्विजय सिंह के बचाव में आर्ट आॅफ लिविंग के धर्मगुरू श्रीश्री रविशंकर को घसीटा जा रहा है। यह सही है कि रविशंकर ने जाकिर का मंच साझा किया था। लेकिन रविशंकर उस वक्त जाकिर के मंच पर गए थे, जब विभिन्न धर्मों पर विचार-विमर्ष के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया था। यहां उन्होंने हिंदू धर्म की श्रेष्ठता विभिन्न मानव समुदायों के हितों से जोड़कर प्रस्तुत की थी, जिसका तोड़ जाकिर के पास नहीं था।
हालांकि कानूनी नजरिए से यह मुश्किल ही है कि आतंकी महज किसी व्यक्ति के विचार से अभिप्रेरित होने की बात स्वीकार ले और उसे कठघरे में खड़ा कर दिया जाए ? चरमपंथ से जुड़ी जो भी सामग्री किताबों और वीडियो फुटेज के रूप में इंटरनेट पर है, उस पर अंकुश के उपाय भी मुश्किल हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देष के बावजूद केंद्र सरकार ने पोर्न साइटों पर प्रतिबंध लगाने में असमर्थता जता दी थी। ऐसे में पीस चैनल पर प्रतिबंध भारत में तो संभव है, लेकिन नेट सामग्री से निपटना ढेड़ी खीर है। हालांकि मुंबई पुलिस ने डाॅ जाकिर नाइक के खिलाफ नफरत फैलाने का मामला दर्ज कर लिया है। इसका आधार हिंदू देवी-देवताओं पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को बनाया है। लेकिन सवाल उठता है कि ये टिप्पणियां तो पिछले एक दशक से जारी थीं, तब क्या केंद्र और राज्य सरकारें सो रही थीं ? भारत में पीस चैनल का प्रसारण शुरूआत से ही अवैध है, बावजूद इसका प्रसारण कैसे होता रहा ?
जाकिर को फिलहाल सऊदी अरब का सरंक्षण मिला हुआ है। सऊदी अरब ने उसे देश के सबसे बड़े सम्मान ‘ किंग फैजल अंतरराष्ट्रिय पुरस्कार से सम्मानित किया है। इसलिए संभव है, सऊदी अरब अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों का हवाला देते हुए भारत पर जाकिर को गिरफ्तार न किए जाने का दबाव बनाए। अब देखना है कि निवेष और सस्ते तेल के आयात के फेर में केंद्र सरकार कहीं नरम न पड़ जाए ? हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व मंच पर जिस ताकत से आतंकवाद के खिलाफ दुनिया को एकजुट होने के पैरवी कर रहे हैं, उस परिप्रेक्ष्य में तो यह उम्मीद है कि कानून अपना काम करेगा। हालांकि आतंकवाद की कमर तोड़ने के लिए जाकिर पर कानूनी शिकंजा मात्र कसने से काम चलने वाला नहीं है, इस्लाम के जो प्रगतिशील व्याख्याकार एवं बहुलतावादी संस्कृति के पैरोकार धर्मगुरू हैं, उन्हें आगे आकर वैचारिक मुहिम छेड़नी की जरूरत है। फिलहाल रजा अकादमी सामने आई है। यह सिलसिला और व्यापक होता है तो इस्लाम की तो बेहतर समझ बनेगी ही, आज भारत समेत पूरी दुनिया के धर्मनिरपेक्ष बहुलतावादी देशों के जनमानस में एक आम मुसलमान की जो संदिग्ध छवि बन रही है, वह भी टूटेगी। इस हेतु मुस्लिम समाज से राजनेैतिक नेतृत्व भी उभरना चाहिए ? जिससे इस्लाम बनाम अन्य धर्मों में संघर्श के कारक जो आतंकी संगठन और धर्मगुरू बन रहे हैं, उन पर लगाम लगे।

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