आई.ए.सी और टीम केजरीवाल…दो भिन्न समूह…

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किशोर बडथ्वाल

लगभग ढाई वर्ष पूर्व कुछ लोगों ने फेसबुक पेज के माध्यम से एक आंदोलन की परिकल्पना की, और तकनीकि रूप से कुशल व्यक्तियों ने इस विचार को फेसबुक के माध्यम से आम लोगो का आंदोलन बनाया और इसे आई.ए.सी नाम दिया, किंतु ४ अगस्त २०१२ को आई.ए.सी के अंदर के ही एक समूह की महत्वाकांक्षा ने इस आंदोलन को निगल डाला। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि आई.ए.सी वह टीम नही है, जिसे केजरीवाल टीम ने कोर टीम का नाम दिया था। आई.ए.सी एक आम नागरिकों का आंदोलन है जो कि इसने आंदोलन शुरु करने से पहले ही घोषित कर दिया था, जब केजरीवाल जी भी इस आंदोलन का हिस्सा नही थे, टीम केजरीवाल ने इस आई.ए.सी के अंदर अपनी एक कोर टीम बना कर उसे ही आई.ए.सी का कर्ता धर्त्ता होने का प्रचार प्रसार किया है, इस कारण से जिन्हें आई.ए.सी के बनाये जाने के कारणो और उसकी कार्यशैली का ज्ञान नही है वह टीम केजरीवाल को ही आई.ए.सी होने के भ्रम को सत्य मानते हैं।

 

आई.ए.सी के जन्म के जो भी कारण थे, वो आज भी वहीं हैं, किंतु जनलोकपाल की मृत्यु के शोक को जिस प्रकार से राजनैतिक पार्टी के जन्म का उत्सव मनाकर एक योजनाबद्ध उपाय से दबाया गया, उस से आंदोलन को अपना समय, विचार, धन, मन, शरीर और समर्थन देने वालों को जो धक्का लगा है उस हानि को अब शायद कभी पूरा ना किया जा सके। जिन कारणो को बता कर आंदोलन और जनलोकपाल की बात को समाप्त किया गया, उन कारणों का अंदेशा तो कोई भी दूरदर्शी व्यक्ति आंदोलन से पहले ही सोच सकता था। यह तो संभव ही नही था कि कोई सत्ताधारी और भ्रष्टता और कुकृत्यों की सजा पाने के लिये जनलोकपाल बिल को पास होने देगा और यह बात तो केजरीवाल टीम के जनलोकपाल मे भी देखी गयी, उनकी टीम भी किसी एनजीओ को जनलोकपाल के अंदर नही लाना चाहती। जिस प्रकार से यह टीम स्वयं के ऊपर उंगली उठा सकने वाली किसी प्रणाली को जन्म नही देना चाहती तो वह यही अपेक्षा सत्ताओं से कैसे कर सकी?

 

अपने प्रभुत्व के समाप्त हो जाने के भय से ग्रस्त यह टीम किसी भी ऐसे व्यक्ति को अपने साथ जोडने और जुडने का विरोध करती रही, जिससे इन्हें आंदोलन मे अपने प्रभुत्व और महत्वाकांक्षा के समाप्त हो जाने का खतरा लगा। और अपने इसी भय को देखते हुए इस टीम ने अनेकों सक्षम और दूरदर्शी लोगों को अपनी टीम के साथ साथ आई.ए.सी से भी दूर किया या फिर दूर जाने दिया। डा। स्वामी, बाबा रामदेव, जलपुरुष राजेंद्र सिंह व अन्य जो अपने अपने क्षेत्रों में अपनी कार्य दक्षता को सिद्ध कर चुके थे, उनके जाने के लिये परिस्थिति तैयार की गयी, परिणाम यह हुआ कि बौद्धिक व वैचारिक रूप से दृढ, और सांगठनिक स्तर पर कार्य कर सकने वाले व्यक्ति एक एक कर आई.ए.सी से दूर होते गये। महत्वाकांक्षा और प्रभुत्व की इच्छा ने इतना अधिक अहं को पोषित किया कि समान विचारधारा (जहां तक भ्रष्टाचार के विरोध की बात थी) रखने वाले अन्य आंदोलनों से स्वयं को दूर रखा गया, और “वो सभी जो भ्रष्टाचार हटाने के प्रतिबद्ध हैं, वे सब साथ आयें” के स्थान पर “मैं ही भ्रष्टाचार को मिटा सकने में सक्षम हूं, अतः सभी को मेरे ही अनुसार चलना होगा” वाली मानसिकता आई.ए.सी की इस टीम मे घर करती गयी। इस टीम ने साथ मे आये प्रत्येक बुद्धिजीवी का उपयोग किया, जो व्यक्ति अपने लिये उपयोगी लगा, उसे मंच पर बैठाया गया, और उसका पूरा उपभोग करने के बाद उन्हे कहा गया कि आना चाहें तो आयें, किंतु नीचे बैठना होगा। इतना ही नही, अहंकार इतना बढ चुका था कि स्वयं भ्रष्ट लोगों के काले धन को वापस लाने के आंदोलन मे जाने मे भी संकोच किया गया। जिस कारण सत्ता को मौका मिला और ४ जून २०११ को रामलीला मैदान पर सत्ता मद अपने पूरे वेग से बहा।

 

टीम को बनाने के उद्देश्य चाहे जितने भी पवित्र हों किंतु उसकी कार्यशैली मे वो शुचिता नही थी, आई.ए.सी को उसके मूल स्वरूप मे ही काम करते रहने देने वाले के इच्छुक कार्यकर्त्ता जो इस टीम के सदस्य नही बनना चाहते थे, उनसे भी यही अपेक्षा की जाने लगी कि वह भ्रष्टाचार के विरोध मे खडे एक आंदोलन के स्थान पर केजरीवाल टीम के पीआरओ की भांति काम करें, इसका स्पष्ट संकेत और प्रमाण आई.ए.सी आंदोलन के जन्मदाता शिवेंद्र सिंह चौहान के पत्र मे दिखता है, जो उन्होने टीम के सदस्य केजरीवाल जी को लिखा। जिस स्वयंभू टीम के गठन मे ही पारदर्शिता नही थी, उस टीम को आंदोलन के ऊपर थोपा गया, और विरोध किये जाने के प्रत्येक प्रयास को खत्म करने के लिये अन्ना जी की आड ले ली गयी।

 

यह कभी स्पष्ट नही हो सका कि केजरीवाल टीम अस्पृश्यता की भावना क्यों पालती रही? क्या इसके कारण से होने वाली हानि उन्हे दिखाई नही दे रही थी, या फिर स्वयं को स्थापित करने के प्रयास मे वह आई.ए.सी के आंदोलन के उद्देश्य को भूल चुके थे? बजाय इसके कि स्वार्थी और महत्वाकांक्षी लोगो को आंदोलन से दूर रख कर समान विचार धारा के लोगो को ज्यादा से ज्यादा जोड कर उनके साथ आंदोलन को आगे बढाया जाता।। कुछ स्वार्थी और स्वकेंद्रित लोगो ने आंदोलन की दिशा को पहले प्रभावित किया और अंत मे उसकी दिशा ही बदल दी। जो आंदोलन भ्रष्टाचार को मिटाने के लिये और राजनैतिक दलों पर दबाव बनाने के लिये उभरा था, वह कुछ लोगो की स्वयं को राजनैतिक दलों के समकक्ष खडा करने की इच्छा का पोषण करता दिखाई देने लगा।

 

जनलोकपाल का गठन नही होगा, यह तो पहले दिन से ही स्पष्ट था, किंतु उस मांग पर पहले भीड को इकट्ठा करना, और उस भीड को इकट्ठा करने हेतु रामदेव व अन्ना जी जैसे वृहद जनाधार वाले व्यक्ति का सहारा लेना, साथ मे डा। स्वामी, महेश गिरी जी, किरन बेदी, संतोष हेगडे, राजेंद्र सिंह व अन्य लोगो को बैठाना, ताकि उस से यह संकेत जाये कि हम भ्रष्टाचार के विरोधी हैं और हमें प्रबुद्ध लोगो का समर्थन प्राप्त है, इन सभी लोगो का सहारा लेने के बाद, भीड मे अपने को प्रचारित और प्रसारित करना।

 

इस व्यूह रचना के साथ अपनी महत्वाकांक्षा को आगे बढाया। भावुक लोग अन्ना व बाबा रामदेव को देख एकत्र हुए, किंतु उस समय जो संगठन भ्रष्टाचार के विरोध मे आगे आये, और केजरीवाल टीम को समर्थन दिया, उनसे यह कोर टीम भयभीत हुई, और अपने प्रभुत्व के समाप्त हो जाने की आशंका से भयभीत टीम ने कई बार ऐसे बयान दिये गये जो अनावश्यक थे। जिनसे आंदोलन के समर्थक दूर होते गये। आई.ए.सी की मूल भावना कि सभी लोगों को साथ ले कर भ्रष्टाचार का विरोध किया जाये, के बजाय गलत समय पर गलत निर्णय लिये गये (बुखारी से सहयोग मांगा गया), गलत लोगो को साथ मे जोडा गया (अग्निवेश), गलत बयान दिये गये (काश्मीर अलगाववादी)। आंदोलन की मजबूती बनाये रखने के लिये नेतृत्व, कार्य और विचार मे दृढता लाने के स्थान पर लोगो को भावुक कर आंदोलन से जुडने के लिये कहा जाने लगा। अनेको मैसेज और बयान जिसमे आगे की कार्य योजना, विरोध की प्रकृति, सत्ता पर दबाव डालने की योजनाओं के स्थान पर अन्न्ना जी बूढे हैं, बीमार हैं, केजरीवाल जी डॉयबेटिक हैं, बलिदान दे देंगे जैसे भावुकता बढाने वाले संदेश दे कर लोगो को जोडने का प्रयास किया। तब तक देर हो चुकी थी, अनेको व्यक्ति जो आंदोलन के प्रथम चरण मे अपनी पूरी शक्ति के साथ लगे थे, वह आंदोलन की बदलती प्रवृत्ति से खिन्न हो चुके थे। और मात्र साधारण लोग ही नही, इस आंदोलन को जन्म देने वाले आई.ए.सी के फेसबुक के उस पेज को भी चुपचाप गुप्त रूप से आंदोलन से बाहर कर दिया, जिसने पिछले २ वर्षों मे सफलता पूर्वक आंदोलन का पूरा दायित्व उठाया था।

 

आंदोलन का आरंभिक कैडर इस पेज के द्वारा ही बना था। किंतु उस पेज पर केजरीवाल टीम के व्यक्तियों के स्थान पर आंदोलन को प्राथमिकता मिलती देख नया पेज बनाया गया, और उसको ही अधिकारिक पेज कहा जाने लगा। पिछले ढाई वर्षों मे आई.ए.सी ने अपने पेज पर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चला कर ६ लाख से अधिक लोग जोडे थे, और यह लोग मात्र उस पेज पर ही नही, वह आदोलन से भी प्रत्यक्ष रूप से जुडे थे।

केजरीवाल टीम की योजना स्पष्ट थी, जब भावुक संदेशों के बाद भी २५ जुलाई को अपेक्षाकृत समर्थन नही मिला, और ना ही सत्ताओं ने कोई रुचि दिखाई, तो यह समय केजरीवाल टीम को अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का उपयुक्त समय लगा। और एक अतार्किक और अनावश्यक निर्णय को इस प्रकार से प्रदर्शित किया गया, कि इसके अतिरिक्त और कोई साधन नही बचा है। जबकि यह पूर्ण रुपेण गलत था। ढाई वर्ष के आंदोलन से सत्ताओं पर दबाव बनना शुरु हो गया था। यदि केजरीवाल टीम अपने अहं, महत्वाकांक्षा को दबा कर मात्र देशहित मे प्रयास करती, तो सत्ताओं को धराशायी करना कोई कठिन कार्य नही था। यदि अपने स्वहित, राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को दबाकर अन्य लोगो से सहयोग लिया गया होता तो आज केजरीवाल जी के साथ एक ऐसी टीम खडी होती जिसमे आरएसएस जैसा मजबूत कैडर, बाबा रामदेव की गांवो तक पहुंच, आर्ट ऑफ लिविंग की सामाजिक स्वीकार्यता, डा. स्वामी जैसे भ्रष्टाचार विरोधी, डोभाल जैसे सिस्टम को जानने और समझने वाले अधिकारी, एस।गुरुमूर्ति जैसे अर्थशास्त्री, भाजपा की राजनैतिक शक्ति और गोविंदाचार्य जैसे सांगठनिक नेतृत्व देने वाले होते। किंतु मात्र अपने लाभ के लिये केजरीवाल टीम ने अपने लिये एक कुंआ बना लिया था जिसमे किसी और को ना वो आने देना चाहते थे, और बाहर निकल कर किसी और के पास जाने की मानसिकता भी उनकी नही थी।

 

४ अगस्त को हुई घोषणा के परिणाम आगे ही मिलेंगे, एक राजनैतिक दल जिसके पास एक नियम को पास कराने के हठ के अतिरिक्त कुछ भी नही, उसका प्रदर्शन कैसा रहेगा, यह भविष्य तय करेगा, किंतु इस से भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को कोई लाभ मिलेगा, यह तो अभी संभव नही लगता। इस राजनैतिक दल के गठन के दूरगामी परिणाम समाज और राष्ट्र के लिये ठीक नही होंगे, यह तो निश्चित सा लगने लगा है। किंतु जो आशा है, वो अभी आई.ए.सी से है, आई.ए.सी को जिस प्रकार से केजरीवाल टीम ने जकड रखा था, उसके पास अभी अपना आधार है, केजरीवाल टीम ने आई.ए.सी की मूल भावना (“आई.ए.सी एक आम नागरिकों का आंदोलन है, जो भ्रष्टाचार को दूर करने के लिये किया गया है” ) के उलट राजनैतिक दल की घोषणा की है, किंतु यह केजरीवाल टीम की घोषणा है, आई.ए.सी अभी भी अपने मूल स्वरूप मे ही काम कर रहा है, अतः अधिक उचित होगा कि आई.ए.सी अपने मूल स्वरूप मे ही आंदोलन को आगे बढाये और समान विचार धारा के लोगो के साथ जुड कर राष्ट्र को भ्रष्टाचार मुक्त करने का प्रयास करे। जनलोकपाल बिल को तो सत्तायें कभी पास नही करेंगे, किंतु आई.ए.सी भ्रष्ट लोगों के नामों को उजागर करने की मांग का हठ कर सकती है, क्योंकि इसमे कोई भी सत्ता यह नही कह सकती कि यह संवैधानिक मामला है और इसे तय करने के लिये कोई बैठक या कमेटी बनानी पडेगी, इस प्रकार के बहाने जनलोकपाल के लिये तो बनाये जा सकते हैं किंतु भ्रष्ट लोग, जिनके खाते स्विस बैंको मे थे, उनके नाम उजागर करने के लिये नही। और इस मांग को ही आधार बना कर आई.ए.सी डा. स्वामी की ए.सी.ए.सी.आई. के साथ सडकों पर उतरे तो भविष्य के आंदोलन को सही दिशा मिले और राष्ट्र की दशा मे सुधार हो।

5 COMMENTS

  1. संघ, बाबा रामदेव, आर्ट ऑफ लिविंग का काम भ्रष्टाचार हटाना नही, उसे हटाने के लिये लोगो को जागरूक बनाने का है, जिसे उन्होने बखूबी किया है.. और बिना कारण, तर्क और प्रमाण के यह कहना कि यह संगठन भ्रष्टाचार के पोषक हैं यह अंधविरोध को दर्शाता है…

  2. मैं समझता हूँ कि आपलोग आपस में ही अपनी विचार धाराओं के कारण ऐसे उलझे हुए हैं कि मेरे जैसे सामान्य पाठक के लिए कुछ कहने की गुंजायस नहीं रह जाती,पर एक बात अवश्य कहूँगा कि श्री किशोर किशोर बडथ्वाल के इस कथन को मैं उनका बड बोलापन कहूं या उनका अज्ञान, “एक राजनैतिक दल जिसके पास एक नियम को पास कराने के हठ के अतिरिक्त कुछ भी नही, उसका प्रदर्शन कैसा रहेगा, यह भविष्य तय करेगा, किंतु इस से भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को कोई लाभ मिलेगा, यह तो अभी संभव नही लगता।”पहले तो जन लोकपाल को केवल एक नियम कह कर लेखक ने अपनी नियत साफ़ कर दी है.जन लोकपाल केवल एक नियम नहीं है.यह तो वह आधार है,जो भ्रष्टाचारियों को वह सजा दिला सकता है,जिससे कोई भविष्य में भ्रष्टाचार करने का साहस न कर सके.अगर इसको लेखक एक साधारण नियम कहता है तो इससे लेखक की अज्ञानता ही झलकती है.लेखक यह भूल जाता है कि इसी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार दो बार गिर चुकी है.मैंने अपने एक लेख में (नाली के कीड़े,प्रवक्ता,१ मई २०११)लिखा हैं कि १९७७ में यह गलती हुई थी कि सत्ता परिवर्तन के साथ व्यवस्था परिवर्तन पर जोर नहीं दिया गया,अतः जिनके हाथ में सत्ता आई ,वे भ्रष्टाचार के मामले में पिछले सरकार के नुमाइंदों से कम नहीं रहे.जन लोक पाल एक ऐसा शस्त्र है ,जिसके बारे में मुलायम सिंह को कहना पड़ा कि अगर जन लोकपाल आ गया ,तो एक दरोगा भी हमें जेल भेज देगा.यह लेखक का बडबोला ही है न कि किसी बात का ज्ञान न होने पर भी उसके पक्ष या विपक्ष में बोले.ऐसे तो लेखक का पूर्वाग्रह अन्य बातों से भी झलकता है,पर उसका उत्तर दूसरे तरह के पूर्वाग्रह से पीड़ित लोगों द्वारा दिया जा चुका है,अतः उसके बारे में मुझे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं .अब मैं माननीय लेखक महोदय से अनुरोध करूंगा कि केजरीवाल लिखित पुस्तक स्वराज को भी एक बार पढने का कष्ट उठायें,जिसको अन्ना हजारे ने व्यवस्था परिवर्तन और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके आन्दोलन का घोषणा पत्र और देश में असली स्वराज लाने का प्रभाव शाली माडल कहा है.क्या यह पुस्तक भावी पार्टी का घोषणा पत्र नहीं हो सकता?

  3. बहुत ही शानदार और सटीक प्रस्तुति| एक सच को बिना लग लपेट कर कहने का साहस किया है, लेकिन लेखक कहीं न कहीं भ्रष्टाचार मिटाने के लिए भी केवल आर एस एस के विचारों से ओतप्रोत लग रहे हैं! जो असंभव है! ऐसा निम्न टिप्पणी से प्रतीत होता है-

    “…………आई.ए.सी की मूल भावना कि सभी लोगों को साथ ले कर भ्रष्टाचार का विरोध किया जाये, के बजाय गलत समय पर गलत निर्णय लिये गये (बुखारी से सहयोग मांगा गया), गलत लोगो को साथ मे जोडा गया (अग्निवेश),………….”
    “……यदि अपने स्वहित, राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को दबाकर अन्य लोगो से सहयोग लिया गया होता तो आज केजरीवाल जी के साथ एक ऐसी टीम खडी होती जिसमे आरएसएस जैसा मजबूत कैडर, बाबा रामदेव की गांवो तक पहुंच, आर्ट ऑफ लिविंग की सामाजिक स्वीकार्यता, डा. स्वामी जैसे भ्रष्टाचार विरोधी, डोभाल जैसे सिस्टम को जानने और समझने वाले अधिकारी, एस।गुरुमूर्ति जैसे अर्थशास्त्री, भाजपा की राजनैतिक शक्ति और गोविंदाचार्य जैसे सांगठनिक नेतृत्व देने वाले होते। किंतु मात्र अपने लाभ के लिये केजरीवाल टीम ने अपने लिये एक कुंआ बना लिया था जिसमे किसी और को ना वो आने देना चाहते थे, और बाहर निकल कर किसी और के पास जाने की मानसिकता भी उनकी नही थी।……”

    दुःख के साथ लिखने को विवश हूँ कि बाबा राम देव, भाजपा, संघ, आर्ट ऑफ लिविंग जैसे नामों से कम करने वाले लोग भ्रष्टाचार को मिटाना तो दूर, इस बारे में सोच भी नहीं सकते, बल्कि सच तो ये है कि ये ही वे लोग हैं तो भ्रष्टाचार के कारणों को पोषित करते रहना चाहते हैं! ये भ्रष्टाचार मुक्त समाज में जिन्दा ही नहीं रह सकते! अत: इनके सहयोग से भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था की आशा करना स्वयं को धोखा देना होगा! आपने इतना अच्छा लेख लिखा लेकिन उपरोक्त पंक्तियों में सारा मामला सामने आ गया कि आपकी मंसा भी संदेहास्पद है! आप भी भ्रष्टाचार मिटाने के बहाने भाजपा और संघ को ताकत देना चाहते हैं, जो देश को बर्बाद करना चाहते हैं!

    आपकी निम्न टिप्पणी सच का आइना दिखाती है!

    “………….महत्वाकांक्षा और प्रभुत्व की इच्छा ने इतना अधिक अहं को पोषित किया कि समान विचारधारा (जहां तक भ्रष्टाचार के विरोध की बात थी) रखने वाले अन्य आंदोलनों से स्वयं को दूर रखा गया, और “वो सभी जो भ्रष्टाचार हटाने के प्रतिबद्ध हैं, वे सब साथ आयें” के स्थान पर “मैं ही भ्रष्टाचार को मिटा सकने में सक्षम हूं, अतः सभी को मेरे ही अनुसार चलना होगा” वाली मानसिकता आई.ए.सी की इस टीम मे घर करती गयी। इस टीम ने साथ मे आये प्रत्येक बुद्धिजीवी का उपयोग किया, जो व्यक्ति अपने लिये उपयोगी लगा, उसे मंच पर बैठाया गया, और उसका पूरा उपभोग करने के बाद उन्हे कहा गया कि आना चाहें तो आयें, किंतु नीचे बैठना होगा।…….”

    बहुत बहुत शुभ कामनाएँ!
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    9828502666

    • आप ने बहुत अच्छा लिखा “भाजपा और संघ देश को बर्बाद करना चाहते है” सच्चे हिन्दू होने का प्रमाण | और मुस्लिम तुस्टीकरण का मंत्र | अपने आप से नहीं तो कमसे कम मुस्लिस्म से ही सीख ले लो की स्वधर्म, स्वराज्य, स्वसमाज को कैसे बचाया जा सकता है. लेखक होकर इतिहास नहीं जानते | पढ़ने की जरूरत है.

      • भाजपा और संघ देश को बर्बाद करना चाहते हैं.. क्या कोई स्पष्ट कारण बतायेंगे? या मात्र अपने छद्म धर्मनिरपेक्षिता के कारण ही आपकी यह सोच है?

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