खिलखिलाता रहे खड़गपुर…

तारकेश कुमार ओझा

ढाक भी वही सौगात भी वही
पर वो बात कहां जो बचपन में थी
ठेले भी वही , मेले भी वही
मगर वो बात कहां जो बचपन में थी
ऊंचे से और ऊंचे तो
भव्य से और भव्य होते गए
मां दुर्गा के पूजा पंडाल
लेकिन परिक्रमा में वो बात कहां जो बचपन में थी
हर कदम पर सजा है बाजार
मगर वो रौनक कहां जो बचपन में थी।
नए कपड़े तो हैं अब भी मगर
पहनने को वो सुख  कहां
जो बचपन में थी
भरी जेब के साथ पंडालों में घूमा बहुत
लेकिन वो खुशी मिली नहीं
जो खाली जेब में भी बचपन में थी
समय के साथ बदल गया बहुत कुछ
न बदला तो मां दुर्गा का ममतामय रूप
माता भवानी से है बस चाह इतनी
बुलंद रहे भारत
खिलखिलाता रहे खड़गपुर …

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