‘नारी के बिना सृष्टि का चलना असम्भव है : वीरेन्द्र शास्त्री’

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मनमोहन कुमार आर्य

आर्यसमाज लक्ष्मण चौक, देहरादून के 52 वें वार्षिकोत्सव के अवसर पर दूसरे दिन आज अपरान्ह 3.00 बजे से ऋग्वेद पारायण आंशिक यज्ञ आरम्भ हुआ जिसके बाद महिला सम्मेलन सम्पन्न हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा आर्य विद्वान श्री वीरेन्द्र शास्त्री द्वय थे और यज्ञ में मन्त्रोच्चार गुरुकुल पौंधा देहरादून के दो ब्रह्मचारियों श्री विनीत आर्य और श्री वेद प्रिय आर्य ने किया। यज्ञ चार कुण्डों में किया गया जिसके चारों ओर यजमानों को बैठाया गया। यज्ञ के सामने एक मंच बनाया गया था जिस पर यज्ञ के दोनों ब्रह्मा जी सहित भजनोपदेशक व ढोलक वादक, आर्यसमाज के विद्वान एवं ऋषि भक्त पुरोहित पं. रणजीत शास्त्री जी विद्यमान थे। आर्यसमाज में एक प्राइमरी विद्यालय भी चलता है। इसकी अध्यापिकायें व्यवस्था को सुचारू रखने के लिये सक्रिय, सकारात्मक एवं उत्साह में भरकर सहयोग कर रहीं थी जो श्रोताओं पर अच्छा प्रभाव डाल रहा था। महिला सम्मेलन में मुख्य व्याख्यान वा सम्बोधन श्री वीरेन्द्र शास्त्री जी का हुआ। विद्वान श्री वीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि सच तो यह है कि नारी अपनी महिमा को जान नहीं पायी है। उन्होंने स्वरचित कविता की चार ओजस्वी पंक्तियों को पढ़ा जिसकी पहली पंक्ति थी ‘मन्दिर में ये मीरा है रण में दुर्गा बाई है।’ शेष दो पंक्तियां शीघ्रता से बोले जाने के कारण हम नोट नहीं कर सके। शास्त्री जी ने कहा कि नारी के बिना सृष्टि का चलना असम्भव है। शास्त्री जी ने कहा कि कौन रोकता है तुम्हें, बेशक तुम मर्दों में रहो लेकिन ये लाजिम है कि अपने फर्ज को जानों और मर्यादा में रहो। विद्वान वक्ता ने कहा कि सृष्टि में जो कोई अपनी मर्यादा का उल्लंघन करता है उसका विनाश हो जाता है। उन्होंने कहा कि वेद के आधार पर नारी का स्थान पुरुष से ऊंचा है। उन्होंने कहा कि झूठ सच्चे लोगों के कारण फैलता है क्योंकि वह झूठ का विरोध व खण्डन नहीं करते। हमारा मौन ही हमारे विनाश को आमंत्रण देता है। जो व्यक्ति मौन रहता है वह पिसता है और अपमानित होता है। आज के समय में नारी का निश्चय ही पतन हो रहा है। उन्होंने कहा कि नारी की दुश्मन नारी है। शास्त्री जी ने कहा ‘नारी के हाथ कटारी है नारी ही नारी को भारी है।’ आचार्य जी ने कहा कि एक बार उनसे पूछा गया कि मनुष्य को कैसे जीना चाहिये। मैंने बहुत विचार किया और उत्तर दिया कि वैदिक नारी की तरह हमें जीना चाहिये। वैदिक नारी विवाह हो जाने के बाद भी अपने पीहर व ससुराल दोनों का ध्यान रखती है। हमें भी संसार सहित आत्मा व परमात्मा का ध्यान रखना है। हमे अपने इस जीवन व परजन्म का भी विचार करने के साथ दोनों जन्मों का भी ध्यान रखना है। यदि संसार का आधार बिगड़ जाता है तो यह संसार रहेगा नहीं। उन्होंने कहा कि संसार का आधार नारी है। इसी के साथ आचार्य जी ने अपने वक्तव्य को विराम दिया।

 

महिला सम्मेलन को स्त्री आर्यसमाज की प्रमुख सदस्या माता श्रीमती प्रमिला आर्या जी ने भी सम्बोधित किया। उन्होंने अपने वक्तव्य का आरम्भ सर्वे भवन्तु सुखिनः श्लोक के पाठ से किया। उन्होंने कहा कि जिस घर मे नारी को सम्मान दिया जाता है उस घर में सुख व शान्ति रहती है और वहां देवता निवास करते हैं।  नारी के अन्दर बहुत बड़ी शक्ति है। नारी की तुलना पृथिवी से की जाती है। श्रीमती प्रमिला आर्या ने नारी जाति विषयक अन्धविश्वासों व कुरीतियों का उल्लेख किया। मध्यकाल से पर्दा प्रथा, नारी पर अनेकों पाबन्दियां तथा उनके पढ़ने पर पाबन्दियां थी। अतीत में स्त्रियों को नीचे गिराया जाता रहा। माता जी ने नारी जाति विषयक अनेक कुरीतियों की चर्चा की। उन्होंने तुलसीदास की पंक्तियों ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी की चर्चा भी की। जिन कष्टों को मध्यकाल व उसके बाद स्त्रियों ने सहन किये हैं, पुरुष उन कष्टों को सहन नहीं कर सकते थे। श्रीमती प्रमिला आर्या जी ने महर्षि दयानन्द जी का उल्लेख किया। उन्होंने नारियों को बहुत ही दयनीय स्थिति से बाहर निकाला। नारियों को वेद और अन्य सभी प्रकार के ग्रन्थ पढ़ने का अधिकार दिया। स्त्री ही माता है और माता निर्माता होती है। अकेला पुरुष समाज को आगे नहीं ले जा सकता है। स्त्री का दर्जा देवताओं के बराबर का है। श्रीमती प्रमिला आर्या जी ने अतीत में महिलाओं की उपलब्धियों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमें शास्त्र ज्ञान व वैदिक मर्यादाओं का पालन करने वाली नारियों पर गर्व है।

 

श्रीमती प्रमिला आर्या जी ने कहा कि आज की नारी की स्थिति को देख कर हमे ंटीस होती है। उन्होंने कहा कि आज की नारियों पर पाश्चात्य संकृति व सभ्यता का रंग चढ़ रहा है। बच्चों को यह नहीं पता कि हम कपड़े क्यों पहनते हैं। हम व्यक्तित्व को निखारने के लिये कपड़े पहनते हैं। आज की नारियां उघड़े वस्त्र पहनती हैं। वह आधे अधूरे अपर्याप्त वस्त्र पहनती हैं। उन्होंने कहा कि मैं हाथ जोड़ कर विनती करती हूं कि नारियों को अपने खानपान व पहनावें पर ध्यान देना चाहिये। बच्चे यदि अपने शरीर को ठीक से ढकते नहीं है, अशोभनीय वस्त्र पहनते हैं तो इसके लिये उनका माता-पिता भी जिम्मेदार हैं। बच्चों पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। आजकल की युवा पीढ़ी जी जो अमर्यादित फैशन करती है इसके लिये उनके मां बाप जिम्मेदार हैं। उन्होंने अपने बच्चों को इतनी छूट क्यों दी? माता जी ने कहा कि यदि हम पाश्चात्य संस्कृति को अपनाते हैं तो हमारी संस्कृति दब जाती है। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए माता जी ने आर्यसमाज के दस नियमों को अपनाने को कहा।

 

डा. अन्नपूर्णा जी ने अपने प्रवचन में कहा कि सम्मेलन तभी होते हैं जब किसी विषय पर कोई समस्या होती है। उन्होंने कहा कि संस्कृत में महिला शब्द का अर्थ है कि जो पूजा अर्थात् सम्मान के योग्य है। अथर्ववेद के एक मन्त्र में कहा गया है कि धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र व पुत्रियां हैं। देव उसे कहते हैं जो संसार को कुछ देता है, लेता नहीं है। जो किसी को कुछ दे वह देवी कहलाती है। यह निरुक्तकार महर्षि यास्क के विचार हैं। परमात्मा देव न होकर महादेव हैं। जो दूसरों की वस्तुएं छीनता है वह राक्षस कहलाता है। नारी सबकी जन्मदात्री है और सन्तान का निर्माण करने वाली है। मॉं बहन, माता, पत्नी, आचार्या है। नारी के अनेक रूप हैं। जिस प्रकार झण्डा ऊंचा फहराता है उसी प्रकार से नारी झण्डे के समान है और समाज में उसका ऊंचा स्थान है। यह विचार ऋग्वेद के एक मन्त्र से प्राप्त होते हैं। वेद के एक मन्त्र में प्रार्थना आती है कि मेरे पुत्र व पुत्रियां बलशाली व तेजस्वी हों। डॉ. अन्नपूर्णा ने कहा कि वेद मन्त्रों के अर्थों का साक्षात् करने वाली नारियां भी हुई हैं जिन्हें ऋषिकायें कहते हैं। विदुषी आचार्या ने इतिहास मे प्रसि़द्ध नारी गार्गी की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि शास्त्र में चर्चा आती है कि सुलभा नाम की एक विदुषी नारी राजा जनक जो विदेह कहलाते थे, उनके पास गई और बोली कि मैं यहां ब्रह्म ज्ञान और आत्म ज्ञान पर ऋषि व विद्वानों की चर्चा सुनने आयी थी। मैं अनादि व अमर आत्मा हूं। मैं ज्ञानरूपी अमृत हूं। मनुष्य जीवन में ज्ञान का आधार आत्मा है।

 

डॉ. अन्नपूर्णा जी ने कहा कि मध्यकाल में नारी को सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। महर्षि दयानन्द ने नारियों व शूद्रों को वेदों को पढ़ने का अधिकार दिया है। महषि दयानन्द ने नारियों के उत्थान के लिए संघर्ष किया। महर्षि दयानन्द ने छोटी नग्न बालिका को भी सम्मान दिया। विदुषी आचार्या डॉ. अन्नपूर्णा जी ने कहा कि यदि महर्षि दयानन्द जी न हुए होते तो हम नारियां मंच पर बैठकर वेद मन्त्रों की चर्चा न कर सकतीं और न ही वैदिक यज्ञों की ब्रह्मा बन सकती थी। महर्षि दयानन्द जी की कृपा का परिणाम है कि आज हम वेद पढ़ती भी हैं और पढ़ाती भी हैं। उन्होंने कहा कि नारी अबला व असहाय नहीं है। नारी राम, कृष्ण सहित दयानन्द, शिवाजी, महाराणा प्रताप कपिल, गौतम व कणाद आदि की जननी है। जिसकी मॉं विदुषी होती है उनकी सन्तान महान होती है। डॉ. अन्नपूर्णा जी ने कहा कि जो मातायें संस्कारित नहीं है उनके बच्चे कभी महान नही हो सकते। जिस देश की नारियां महान होती हैं वह देश भी महान होता है। उन्होंने बताया कि बाल्मीकि रामायण के अनुसार माता कौशल्या यज्ञ करती थीं। हमें महर्षि दयानन्द के स्वप्नों को साकार करना है। डॉ. अन्नपूर्णा जी के व्याख्यान पर टिप्पणी करते हुए महिला सम्मेलन की संचालिका श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने कहा कि हम प्रतिज्ञा ले कि हम महर्षि दयानन्द के द्वारा प्रेरित मार्ग पर चलेंगे।

आयोजन में दयानन्द ऐग्लो वैदिक महाविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. सुखदा सोलंकी ने कहा कि मां अपनी सन्तान के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है। माता अपनी सन्तानों के लिये सबसे अधिक हितकारी होती है। नारी सम्मेलन के आरम्भ में युवक हिमांशु ने नारी जाति पर एक प्रेरक कविता सुनाई। कार्यक्रम के आरम्भ में सम्मेलन की संचालिका श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने एक भजन गाया जिसके बोल थे ‘सबसे बड़ा ओ३म् का नाम ओ३म् नाम से सब दुःख भागे, ओ३म् नाम से सोते जागें, पढ़ो भी सुमिरो उसको, रट लो तुम भी ओ३म् का नाम।’ इसके बाद दस बच्चों ने कण्ठ किये हुए आर्यसमाज के दस नियमों को एक-एक कर सुनाया। आर्यसमाज के पुरोहित श्री रणजीत शास्त्री जी ने बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए पांच सौ रुपये का पुरस्कार दिया। भूमिकोरी नाम की एक 7 वर्ष की बालिका ने ‘एक लड़की क्या होती है’ बहुत ही मार्मिक कविता को भावपूर्ण शब्दों में पढ़कर सुनाया। संचालिका श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने भी बेटी पर एक कविता सुनाई जिसके बोल थे ‘पिता की दुलारी है बेटियां’। इसके बाद स्त्री आर्यसमाज की प्रधाना जी ने आर्य गायिका श्रीमती मीनाक्षी पंवार जी का ओ३म् का पटका पहना कर सम्मान किया। श्रीमती मीनाक्षी पंवार जी ने यज्ञ विषयक स्वरचित गीत को राग मल्हार में बहुत ही मधुर व प्रभावशाली आवाज में सुनाया जिससे सारे वातावरण में अमृत घुल गया। भजन की कुछ पंक्तियां थीं ‘वेद वाणी का करें अभिनन्दन, आओ सब मिल गाओ साम गान, सब जन मिल गावो, आओ प्रियजन यज्ञ वेदि पर वेद ऋचायें गांवें, साम गान सब मिल जन गावो।’ कार्यक्रम में आर्यसमाज के स्कूल के बच्चों ने एक बाल नाटिका भी प्रस्तुत थी जो विवाह पर आधारित थी और जिसमें लड़की अपने होने वाले पति को पसन्द न करने के कारण विवाह का प्रस्ताव ठुकरा देती है। इस प्रस्तुति को सबने पसन्द किया। सभी लोग इसे देख व सुनकर खूब हंसे। द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की पांच कन्याओं ने एक गीत प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘मेरे देश की बहनों तुमको देख रही दुनिया सारी, तुम पे बड़ी है जिम्मेदारी। हर घर घर को तुम स्वर्ग बना दो हर आंगन को फलवारी।’ कार्यक्रम में उपस्थित श्रीमती सुमित्रा धुलिया जी का सम्मान भी किया गया। आर्यसमाज में सहारनपुर से प्रसिद्ध भजन गायक श्री अमरेश आर्य पधारे हुए हैं। उनका एक भजन हुआ। भजन के बोल थे ‘माता की मोहब्बत को दिल से न जुदा करना, मां बाप का ऋण कुछ तो जीवन में अदा करना।’ शान्ति पाठ के साथ महिला सम्मेलन का समापन हुआ।

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