बच्चा हूँ मजदूर का

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labourमजदूर का बच्चा कहता हैं:-
मै एक छोटा बच्चा हूँ
मन का बहुत सच्चा हूँ
पर जब से मैंने जन्म लिया
तब से यही देख रहा हूँ ।।

माँ बाबा करते हैं मजदूरी
अब मै भी यही कर रहा हूँ
खाने के लिए पैसे नही हैं
तभी मै ये काम करता हूँ।।

विधालय जाते बच्चो को
मै देखता रहता हूँ ।
क्या में भी कभी विधालय जाऊगा,
ये सोचता रहता हूँ ।।

घर है मेरा टूटा- फुटा
पानी टप टप हैं चूता ।
कैसे मै इसको बनवाऊ
कैसे में पढने जाऊ ।।

बाबा से भी मै पढ़ने के लिए
रोज मिन्नते करता हूँ ।।

पर बाबा भी तो क्या करे
उनके ऊपर भी हैं कर्ज बड़े
मजदूरी करके दो पैसे कमाते हैं
दो वक़्त का खाना ही बस खिला पाते हैं ।।

फिर कैसे वो मुझे पढ़ायेगे
और कैसे सफल बनायेगे ।।

पर कहता हूँ मै बाबा से
पढने तो मै जाऊगा ।
ग़रीबी का खेल अब
और देख न पाऊगा ।।

इतना बड़ा हैं देश हमारा
कुछ तो कर्म निभाएगा ।
अपने देश के गरीब बच्चो को
पढने वो भिजवाएगा ।।

मै बस इतना ही आप से कहना चाहती हूँ की हम गरीबी तो नही मिटा सकते मगर किसी गरीब बच्चे को पढने में अपना सहयोग तो दे ही सकते हैं।
क्योंकि पढ़ेगा भारत, तभी तो बढेगा भारत ।।

वैदिका गुप्ता

1 COMMENT

  1. आपकी कविता के शीर्षक ने प्रभावित किया. आपने मजदूर के बच्चे की मानसिकता तथा मनोविज्ञान का अच्छा चित्रण किया है। बचपन में मैं ऐसी ही कुछ परिस्थितियों से दो चार हुआ हूँ। रचना के लिया बधाई।

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