बच्चों का पन्ना

प्रजातंत्र का राजा

एक कहानी बड़ी पुरानी, कहती रहती नानी|

शेर और बकरी पीते थे, एक घाट पर पानी|

कभी शेर ने बकरी को, न घूरा न गुर्राया|

बकरी ने जब भी जी चाहा, उससे हाथ मिलाया|

शेर भाई बकरी दीदी के ,जब तब घर हो आते|

बकरी के बच्चे मामा को, गुड़ की चाय पिलाते|

बकरी भी भाई के घर पर, बड़े शान से जाती|

कभी मुगेड़े भजिये लड्डू, रसगुल्ले खा आती|

किंतु अचानक ही जंगल में, प्रजातंत्र घुस आया|

और प्रजा को मिली शक्तियों ,से अवगत करवाया|

उँच नीच होता क्या होता, छोटा और बड़ा क्या|

जाति धर्म वर्गों में होता, कलह और झगड़ा क्या|

निर्धन और धनी लोगों में ,बड़ा फासला होता|

एक रहा करता महलों में ,एक सड़क पर सोता|

शेर भाई को जैसे ही, यह बात समझ में आई|

तोड़ी बकरी की गर्दन,और बड़े स्वाद से खाई|

जो भी पशु मिलता उसको ,वह उसे मार खा जाता|

जंगल में अब प्रजातंत्र का, वह राजा कहलाता|

प्रजातंत्र का मतलब भी, वह दुनिया को समझाता|

इसी तंत्र में जिसकी ,जो मर्जी हो वह कर पाता|