संपादक को डांटा|
“चार लेख भेजे थे मैंने,
नहीं एक भी छापा|”
संपादक ने एक पत्रिका,
उसकी तरफ बढ़ाई|
बोला”इसमें आप छपे हैं,
इसको पढ़ लो भाई|”
मुख्य पृष्ठ पर ज्योंहि उनको,
बिल्ली पड़ी दिखाई|
डर के मारे दौड़ लगाकर,
भागे चूहा भाई|
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।