बच्चों का पन्ना

राजा के बड़े बड़े कान

bigएक राजा था| बड़ा सदाचारी प्रजा पालक और‌ दयावान था|शरीर से तो संपूर्ण स्वस्थ था किंतु उसके कान बहुत बड़े बड़े थे इस कारण बेचारा बहुत दुखी रहता था|अपने कानों को हमेशा पगड़ी में छुपा कर रखता था|रानी के अलावा किसी को भी उसका यह राज मालूम नहीं था|

हां केवल राजा के नाई को यह बात मालूम थी क्योंकि उससे यह छुपाना असंभव था ,वह राजा कि कटिंग जो करता था| मजे से दिन कट रहे थे कि अचानक राजा का वह राज नाई लंबे समय के लिये बीमार हो गया| राजा परेशान आखिर कटिंक करायें तो किस से|किसी दूसरे नाई को बुलाया तो पोल पट्टी खुल जायेगी कि उसके कान बड़े बड़े हैं|परंतु ज्यादा इंतजार करना संभव नहीं था बाल बहुत बड़े हो रहे थे इससे मजबूरी में राजा ने एक दूसरे नाई को बुलाया| जिसका नाम गुपले नाई था| वह बेहद सीदा साधा |राजा के कान देखकर गुपले बहुत डर गया|

हाथी जैसे कान आज तक उसने किसी आदमी के नहीं देखे थे| राजा ने कहा “देखो गुपले मेरे कान बहुत बड़े हैं यह बात किसी को मत बताना यदि किसी से भी कहा और होहल्ला हुआ तो मैं तुम्हें फाँसी पर टांग दूंगा| “नाई बेचारा घबड़ा गया “मालिक मैं क्यों किसी से कहूंगा मेरी क्या मज़ाल कि ये बात किसी से कहूं|” डरते डरते उसने राजा कि कटिंग की और अपने घर चला गया|

राजा भी बेफिक्र हो गया और अपने राज के काम में लग गया| नाई ने घर जाकर खाना खाया और आराम

करने लगा| किंतु अचानक उसका पेट दुखने लगा| उसे यथार्थ में यह बीमारी थी कि यदि कोई बात मन में छुपाकर रखता तो उसका पेट दर्द होने लगता था| उसे हर गोपनीय बात किसी न किसी को बताना ही पड़ती थी| किंतु राजा के बड़े कान होने की बात किसको और कैसे बताये| हल्ला हुआ तो राजा तो फाँसी प रटाँग देगा| वह दिन भर दर्द के मारे तड़फता रहा| क्या करे क्या न करे| जैसे तैसे रात हुई उसे बिल्कुल नींद नहीं आर ही थी| दरद से बिलबिलाता वह आधी रात को उठा और घर के बाहर लगे एक पेड़ के कान में धीरे से कह आया कि राजा के कान बड़े बड़े हैं| बस फिर क्या था उसका पेट दर्द ठीक हो गया| घर जाकर मजे से सो गया| उसने सोचा सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी |पेड़ आखिर बोलता तो है नहीं जो किसी से यह बात बता पाये| वह आराम से दिन गुजारने लगा|

पर होनी को कौन टाल सकता है| कुछ दिन बाद वह पेड़ काटा गया और उसकी लकड़ी से तबला और सारंगी बनाये गये| राज्य‌ के नियम के अनुसार दोनों वाद्य‌ राजा के महल में सर्व प्रथम बजाने के लिये लाये गये| तबलची ने जैसे ही तबला बजाया उसमें से आवाज आई|

“राजा के बड़े बड़े कान, राजा के बड़े बड़े कान| ”

अब सारंगी बजी तो आवाज आई”तुमसे किसने कहा तुमसे किसने कहा|”

तबला बोला “गुपले नाई ने कहा”गुपले नाई ने कहा|” राजा के बड़े बड़े कान|”

सारे दरवार में सन्नाटा छा गया|

राजा गुस्से से पागल हो गया, बोला’ बुलाओ उस गुपले नाई को’|राजा का भेद खुल चुका था| दरवार में कानाफूसी होने लगी थी|

गुपले नाई बेचारा डरते आया, समझ गया की कुछ गड़बड़ी हो गई|

“मैने तुमसे कहा था की मेरा भेद किसी से मत कहना पर तुमने मेरी आग्या का पालन नहीं किया तुम्हें फांसी पर चढ़ाया

जायेगा” राजा जोर से दहाड़ा|

नाई की घिग्घी बंध गई, वह‌ राजा के पैरों पर गिर गया|

“क्षमा महाराज क्षमा मुझसे भूल हुई महाराज ,परंतु जान बूझकर मैंनें ऐसा नहीं किया|मुझे यह बीमारी है महाराज कि कोई भी बात

यदि पेट में रखता हूं तो मेरा पेट दर्द करता है इसलिये मैंने यह बात मेरे घर के सामने लगे पेड़ के कान में कह दी थी| महाराज

मुझे नहीं पता था कि ये तबले सारंगी भी बोलते हैं, महाराज मुझे माफ कर दें|”

आखिर बात तो सबको मालूम हो चुकी थी, नाई की कोई गलती भी नहीं थी,राजा ने नाई की क्षमादान दे दिया|

सार यह कि कोई भी गोपनीय बात किसी दूसरे को मालूम पड़ जाने पर गोपनीय नहीं रहती|