जानिए फांसी की सजा से जुड़े कुछ अनसुने तथ्यों को

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लिमटी खरे

16 दिसंबर 2012 को देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की सड़कों पर बदहवास सी दौड़ रही एक बस के अंदर हैवानों ने निर्भया के साथ दुराचार कर देश भर को जगा दिया था। हाड़ गलाने वाली सर्दी के बीच देश भर में बलात्कार जैसे मामले को लेकर युवाओं में जमकर आक्रोश था। सात साल तक अदालतों की चौखट पर चढ़ने उतरने वाले इस मामले का पटाक्षेप 22 जनवरी को इसके चार आरोपियों को फांसी देने के बाद हो जाएगा। इसके साथ ही यह मामल भी संजय चौपड़ा, गीता चौपड़ा सहित अन्य मामलों की तरह इतिहास में दर्ज हो जाएगा। गाहे बेगाहे अन्य मामलों की तरह ही इस मामले का जिकर भी किया जाएगा। अब समय आ गया है कि इस मामले में सारे घटनाक्रमों को नज़ीर मानते हुए इस तरह की व्यवस्थाएं सुुनिश्चत की जाएं कि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो पाए।

सात साल पहले निर्भया के साथ जो कुछ भी हुआ उसने सारे देश को हिलाकर रख दिया था। देश की तरूणाई में आक्रोश देखकर लग रहा था कि सरकारों की चूलें हिल जाएंगी और इस तरह के कठोर कानून बनेंगे कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति पर रोक लगेगी, पर ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा है।

इस घटना के आरोपियों के बारे में पहले जानें। घटना के वक्त 32 साल का राम सिंह उस बस को चला रहा था, जिसमें यह वारदात हुई। रामसिंह पर आरोप था कि उसने लोहे की राड से निर्भया और उसके मित्र को पीटा। पुलिस की गिरफ्त में आए राम सिंह ने 11 मार्च 2013 में तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली थी।

इस घटना का दूसरा आरोपी मुकेश सिंह उस वक्त 32 साल का था। इस पर भी गेंगरेप में शामिल होने और पीटने के आरोप थे। इसके अलावा विनय शर्मा की आयु उस वक्त 26 साल थी। विनय फिटनेस ट्रेनर हुआ करता था। जिस समय अन्य आरोपी निर्भया के साथ बलात्कार कर रहे थे, उस समय विनय शर्मा बस को चला रहा था। विनय के द्वारा भी आत्महत्या का असफल प्रयास जेल के अंदर किया गया था।

इसके एक अन्य आरोपी 24 वर्षीय पवन गुप्ता दिल्ली में फलफ्रूट बेचने का काम करता था। इस पर भी गेंगरेप के आरोप थे। तिहाड़ जेल में रहते हुए इसके द्वारा स्नातक स्तर की पढ़ाई भी की गई। इस घटना के एक अन्य आरोपी अक्षय ठाकुर (32) मूलतः बिहार का निवासी था जो अपना घर छोड़कर दिल्ली भागकर पहुंचा था। इस घटना का एक आरोपी नाबालिग था, जिसे जुवेनाईल कोर्ट ने तीन साल की अधिकतम सजा सुनाई थी। इस नाबालिग पर यह आरोप था कि निर्भया के साथ सबसे ज्यादा वहशीपन इसी नाबालिग के द्वारा किया गया था। उसकी सजा 2015 में पूरी हो गई।

देश में फांसी देने का इतिहास तो बहुत पुराना है किन्तु आजाद भारत में सभी ने चलचित्रों में ही देखा होगा कि फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद न्यायधीश के द्वारा पेन की निब तोड़ दी जाती है। यह इस बात का घोतक माना गया है कि इसके बाद कैदी का जीवन समाप्त होने वाला है। फांसी देने के वक्त जेल के अधीक्षक, कार्यपालक दण्डाधिकारी, जल्लाद और चिकित्सक का मौके पर मौजूद रहना आवश्यक होता है।

फांसी की सजा कितने बजे दी जाती है इसे लेकर भी तरह तरह की भ्रांतियां हैं। फांसी देने के लिए समय निर्धारण को लेकरजल मेन्युअल में भी कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं। फांसी की सजा अमूमन पौ फटने के पहले दी जाती है। इसके पीछे अनेक कारण भी बताए जाते हैं। फांसी की सजा मुंह अंधेरे देने के पीछे यह तथ्य दिया जाता है कि इससे सुबह जेल के अन्य कैदियों को अपने दिन भर के काम करने में किसी तरह असुविधा न हो। इसके अलावा कैदी को फांसी देने के उपरांत उसके परिजनों को उसका अंतिम संस्कार करने के लिए पर्याप्त समय भी मिल जाता है। भारत में सूर्योदय की पहली किरण के पहले ही फांसी की सजा की प्रक्रिया पूरी कर दी जाती है।

कैदी को फांसी की सजा देने के पहले नहलाया जाता है। उसे पहनने के लिए नए कपड़े दिए जाते हैं। कैदी अगर चाहे तो अपने धार्मिक रीति रिवाज से पूजा भी कर सकता है। इसके बाद उसे फांसी के फंदे तक ले जाया जाता है। इसके बाद जल्लाद उससे उसकी आखिरी इच्छा पूछता है। इन इच्छाओं में परिजनों से मिलना, कुछ खाना सहित कुछ और इच्छाएं पूरी करने का शुमार होता है।

फांसी देने के पहले कैदी का चिकित्सकीय परीक्षण किया जाता है। उसके बाद कागजी खानापूर्ति किए जाने के बाद यह प्रक्रिया आगे बढ़ती है। इस पूरी प्रक्रिया में सबसे कठिन काम जल्लाद का होता है। अगर कोई व्यक्ति किसी के साथ मारपीट करे तो आम भाषा में उसे जल्लाद की संज्ञा लोग दे देते हैं। जल्लाद ही कैदी को फांसी के तख्ते पर ले जाकर उसके मुंह पर कपड़ा ढंककर उसे फांसी के तख्ते तक ले जाता है, उसके बाद उसके कान में कुछ कहने के बाद चबूतरे पर लगा लीवर खींच देता है।

जानकार बताते हैं कि जल्लाद के द्वारा कैदी के कान में कहा जाता है कि हिंदुओं को राम राम, मुस्लिमों को सलाम, वह अपने फर्ज के आगे मजबूर है . . . वह यह भी कहता है कि वह भविष्य में उस कैदी के सत्य के मार्ग पर चलने की कामना करता है . . .

देश में फांसी की सजा इसके पहले 2012 में पूणे की जेल में मुंबई हमलों के आरोपी अजमल कसाब को फांसी पर लटकाया गया था। फांसी की सजा के बारे में रूपहले पर्दे पर अनेक चलचित्रों में फिल्मांकन किया गया है। फांसी की सजा देने की तैयारियां लगभग एक पखवाड़े पहले से आरंभ कर दी जाती हैं। इसके लिए एक खास प्लेटफार्म (चबूतरा) तैयार किया जाता है। इसमें एक लकड़ी का पटिया रखा होता है, जिसमें एक गोला कैदी को खड़ा करने के लिए बनाया जाता है।

इसके ऊपर एक खंबा लगा होता है जो लगभग दस फीट का होता है। इस पर छः मीटर की रस्सी का प्रयोग किया जाता है, जो बक्सर में बनती है। इस रस्सी के निचले सिरे पर एक फंदा बनाया जाकर उसके कैदी के गले में डाला जाता है और उसके बाद जल्लाद के द्वारा लीवर खींचा जाता है, जिससे उसके पैर के नीचे का पटिया हटता है और कैदी हवा में झूल जाता है। इससे कैदी के गले का फंदा कसता है और दम घुटने के कारण उसकी मौत हो जाती है।

देश में उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में ही अधिकृत जल्लाद हैं। कहा जाता है कि पश्चिम बंगाल में नाटा मलिक नाम का एक जल्लाद हुआ करता था। उसके द्वारा 25 से ज्यादा लोगों को फांसी पर लटकाया था। उसके द्वारा 2004 में घनंजय चटर्जी को फांसी दिए जाने के बाद जिस रस्सी से फांसी दी जाती है उसे काटकर लाकेट बनाकर बेचना आरंभ कर दिया था, क्योंकि उस दौरान यह अफवाह फैल गई थी कि फांसी की रस्सी के लाकेट को अगर पहन लिया जाए तो जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं! फिर क्या था नाटा मलिक के घर के सामने लाकेट लेने वालों का तांता लगना आरंभ हो गया था

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