जानिए आखिर क्या है बसंतोत्सव / बसंत पर्व / “बसंत पंचमी” अथवा मधुमास पर्व ….

माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी कहा जाता है। माना जाता है कि विद्या, बुद्धि व ज्ञान की देवी सरस्वती का आविर्भाव इसी दिन हुआ था। इसलिए यह तिथि वागीश्वरी जयंती व श्री पंचमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। ऋग्वेद के 10/125 सूक्त में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन किया गया है। हिंदूओं के पौराणिक ग्रंथों में भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना गया है व हर नए काम की शुरुआत के लिए यह बहुत ही मंगलकारी माना जाता है।पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष बसंत पंचमी का त्यौहार 01 फरवरी 2017 को होगा।बसंत पंचमी, ज्ञान, संगीत और कला की देवी, ‘सरस्वती’ की पूजा का त्योहार है। इस त्योहार में बच्चों को हिंदू रीति के अनुसार उनका पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है।बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।इस दिन पीले वस्त्र धारण करने का रिवाज़ है। बसंत पंचमी सर्दियों के मौसम के अंत का प्रतीक है। हर कोई बहुत मज़े और उत्साह के साथ इस त्यौहार का आनंद लेता है।

बसंत पंचमी पूजन मुहूर्त — वसंत पंचमी वसंत के आगमन का सूचक होती है। यह पर्व माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। इस बार यह पर्व बुधवार, 1 फरवरी 2017 को मनाया जाएगा।
इस दिन पूजन सुबह 7.10 से 8.28 अमृत चौघडिया में व फिर 9.51 से 11.09 तक शुभ के चौघडिया में करें।

हमारे देश भारत में – शीत ऋतु के बाद मधुमास अथवा बसंत ऋतु का आगमन होता है . यह ऋतु बड़ी मस्त . .बड़ी मनभावन होती है। शीत काल में प्रकृति का वो सबकुछ जो कड़क ठंड से नष्ट अथवा सुशुप्त अवस्था में हो गया था वो पुनः नवीन रूप में हर बार से और सुन्दर शक्तिवान और स्फूर्तिमय हो चारो दिशाओं के वातावरण को आच्छादित कर देता है . अर्थात हमारे चारों ओर प्रकृति के नज़ारों में खुला आकाश और वृक्ष – पेड़ – पौधे लताएँ ..बाग़- बगीचा ..ही द्रश्यमान होतें है . तो कहने का तात्पर्य यह कि – इस समय खिली -2 धूप बेल- लताओं में नए-2 पत्ते – कोंपलें ..मंजरियाँ तथा रंग- बिरंगे -सुंगंधित फूलों के गुच्छों से सजे ..पेड़ – पौधे साथ ही स्वादिष्ट फलों से लदी वृक्षों – की डालियाँ ..कलरव करते ..पक्षी- गण ..मस्त चलती बयार किसको नही आनंदित कर देती है . .? अर्थात सभी लोग इस बसंत ऋतु में प्रसन्नचित्त स्वतः हो जातें हैं . यह सभी को खुश करने का ” क़ुदरत का अनमोल तोहफ़ा ” ही समझना चाहिए . वैसे सभी मौसम . . . ऋतुएँ अपनी -2 अलग-अलग विशेषता लिए होतीं है . पर मधुमास की विशेषता इसको अपने आप में विशेष होने के कारण इसे सर्वोपरि बना देती है।
हमारे भारतीय शास्त्रीय संगीत में इस मौसम के कई ” राग ” और अनेक गीतों का भण्डार है . एक राग तो ” राग-बसंत ” के ही नाम से जानी जाती है |
इस पर्व और मधुमास के बारे में हमारे अनेक कवियों ने -रचनाकारों ने कई उल्लेखनीय वर्णन किया है ; उनमें से ” कालिदास ” का नाम कौन भूल सकता है , भला ?
बसंत पर्व से जुडी कई किवदंतिया , कथाएं अथवा प्रसंग इत्यादि जाने जातें हैं . जैसे महादेव और कामदेव , श्री राधा – कृष्णा |
इस दिन सभी लोग “माँ सरस्वती ” का पूजन अर्चन करते हैं। पीले फल और प्रसाद चढ़ाते है। इस दिन लोग बसंती रंग के वस्त्र धारण करते हैं .इतना ही नहीं घर में भोजन पकवान भी पीले रंग यानी बसंती रंग के बनातें हैं . लोग पतंगे उडातें है . बुंदेलखंड के कहीं -2 घरों में कुछ स्त्रियाँ पीले फूलों की चौक बना कर , बीच मैं ‘गौर’ रख पूजा करतीं हैं ” सुहाग ” लेती हैं .यानी इस बसंत पर्व को लोग पूरे तन-मन धन से बसंती बन बसंतोत्सव को धूम- धाम से मना कर आनंदित होतें है |

ऐसे करे सरस्वती वन्दना —

सरस्वती या कुन्देन्दु देवी सरस्वती को समर्पित बहुत प्रसिद्ध स्तुति है जो सरस्वती स्तोत्रम का एक अंश है। इस सरस्वती स्तुति का पाठ वसन्त पञ्चमी के पावन दिन पर सरस्वती पूजा के दौरान किया जाता है।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥

पौराणिक कथा—
—- माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने श्रृष्टि की रचना तो कर दी लेकिन वे इसकी नीरसता को देखकर असंतुष्ट थे फिर उन्होंनें अपने कमंडल से जल छिटका जिससे धरा हरी-भरी हो गई व साथ ही विद्या, बुद्धि, ज्ञान व संगीत की देवी प्रकट हुई। ब्रह्मा जी ने आदेश दिया कि इस श्रृष्टि में ज्ञान व संगीत का संचार कर जगत का उद्धार करो। तभी देवी ने वीणा के तार झंकृत किए जिससे सभी प्राणी बोलने लगे, नदियां कलकल कर बहने लगी हवा ने भी सन्नाटे को चीरता हुआ संगीत पैदा किया। तभी से बुद्धि व संगीत की देवी के रुप में सरस्वती पूजी जाने लगी।
मान्यता है कि जब सरस्वती प्रकट हुई तो भगवान श्री कृष्ण को देखकर उनपर मोहित हो गई व भगवान श्री कृष्ण से पत्नी रुप में स्वीकारने का अनुरोध किया, लेकिन श्री कृष्ण ने राधा के प्रति समर्पण जताते हुए मां सरस्वती को वरदान दिया कि आज से माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी को समस्त विश्व तुम्हारी विद्या व ज्ञान की देवी के रुप में पूजा करेगा। उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले देवी सरस्वती की पूजा की तब से लेकर निरंतर बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा लोग करते आ रहे हैं।

—-सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं|
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जानिए वसंत पंचमी के दिन को बेहतर बनाने के अचूक उपाय—

1. इस दिन तीव्र बुद्धि पाने के लिए सुबह स्नान कर लें. सभी देवी – देवताओं की समान्य रूप से पूजा करें और माँ काली के दर्शन करने के लिए मंदिर जाएँ. मंदिर में जाने के बाद उनसे हाथ जोड़कर अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें. अब काली माँ को पेठे की मिठाई का भोग लगायें या फल का भोग लगायें. इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र का 11 बार जाप करें.

मन्त्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महा सरस्वत्यै नम:

2.  अगर आप किसी केस में फसे हुए हैं और उसका परिणाम आपके हक में नहीं आ रहा हैं या आपको स्वास्थ्य से जुडी हुई किसी अन्य परेशानी का सामना करना पड रहा हैं या वैवाहिक जीवन में तनाव हैं. तो इन सभी परेशानियों से राहत पाने के लिए वसंत पंचमी के दिन प्रातः उठकर स्नान कर पीले वस्त्र धारण कर लें और दुर्गा सप्तशती की पुस्तक से अर्गला स्त्रोत एवं कीलक स्त्रोत का पाठ करें. इस उपाय को करने से आपको इन सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जायेगी.

3. पयदि आपको संगीत पसंद हैं और आप संगीत के क्षेत्र में ही आगे जाना चाहते हैं. तो इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण कर लें. अब सरस्वती जी की समान्य विधि से पूजन करें और माँ सरस्वती का ध्यान करके निम्नलिखित मन्त्र का जाप 21 बार करें. जाप सम्पूर्ण होने के बाद सरस्वती जी को शहद का भोग लगायें और उस प्रसाद को अपने घर के सभी सदस्यों में वितरित कर दें.

मन्त्र – ह्रीं वाग्देव्यै ह्रीं ह्रीं

4. यदि किसी विद्यार्थी को अथक परिश्रम करने के बाद भी सफलता हासिल नहीं हो पा रही हैं. तो उसे वसंत पंचमी के दिन इस उपाय को करना चाहिए. इस उपाय को आप किसी भी गुरूवार से शुरू कर सकते हैं. अगर आप इस उपाय को किसी शुभ समय में शुरू करना चाहते हैं तो इस उपाय को करने का सबसे अच्छा दिन शुक्ल पक्ष की पंचम तिथि हैं. इस उपाय को करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर ले. अब एक तांबे की या स्टील की थाली लें. अब इस थाली में कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बना लें और अपने मन में गणेश जी का ध्यान करें. अब इस थाली पर बने स्वास्तिक के चिन्ह के ऊपर एक सरस्वती माता का यंत्र स्थापित कर लें. इसके बाद 8 नारियल लें और इन्हें थाली के सामने रख दें. अब इस थाली में रखे यंत्र पर पुष्प, चन्दन व अक्षत चढाएं. इसके बाद धूप एवं शुद्ध घी का दीपक जला लें और माता सरस्वती जी की आरती करें. आरती करने के बाद अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए निम्नलिखित सरस्वती माँ के मन्त्र की एक स्फटिक की माला या तुलसी की एक माला का जाप करें.

मन्त्र – ॐ सरस्वत्यै नम:

सरस्वती जी के इस मन्त्र का जाप करने के बाद पूजन की सारी सामग्री को एकत्रित कर लें और उसे जल में प्रवाहित कर दें. इस उपाय को करने से आपको आपकी मेहनत का फल अवश्य मिलेगा.


—– इस दिन बच्चे की जिह्वा पर शहद से ए बनाना चाहिए इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है।
—–बच्चों को उच्चारण सिखाने के लिहाज से भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है।
—–6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है।
—-चूंकि बसंत ऋतु प्रेम की रुत मानी जाती है और कामदेव अपने बाण इस ऋतु में चलाते हैं इस लिहाज से अपने परिवार के विस्तार के लिए भी यह ऋतु बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसलिए बसंत पंचमी को परिणय सूत्र में बंधने के लिए भी बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है व बहुत से युगल इस दिन अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत करते हैं।
—- गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है।
—- इस दिन कई लोग पीले वस्त्र धारण कर पतंगबाजी भी करते हैं।
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जानिए बसंत पंचमी पर कैसे करें पूजा—
इस दिन प्रात:काल स्नानादि कर पीले वस्त्र धारण करें। मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें तत्पश्चात क्लश स्थापित कर भगवान गणेश व नवग्रह की विधिवत पूजा करें। फिर मां सरस्वती की पूजा करें। मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन व स्नान कराएं। फिर माता का श्रंगार कराएं माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं। प्रसाद के रुप में खीर अथवा दुध से बनी मिठाईयां चढा सकते हैं। श्वेत फूल माता को अर्पण किये जा सकते हैं।
—–कुछ क्षेत्रों में देवी की पूजा कर प्रतिमा को विसर्जित भी किया जाता है।
—–विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों में कलम व पुस्तकों का दान करें।
—-संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगा कर मां की आराधना कर सकते हैं व मां को बांसुरी भेंट कर सकते हैं।

ये हैं 2017 में बसंत पंचमी – पूजा का शुभ मुहूर्त—
बसंत पंचमी – 01 फरवरी 2017
पूजा का समय – 07:13 से 12:34 बजे तक
पंचमी तिथि का आरंभ – 03:41 बजे से (01 फरवरी 2017)
पंचमी तिथि समाप्त – 02:20 बजे (02 फरवरी 2017)

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