मना रहे है हर वर्ष मजदूर दिवस,
फिर भी मजदूर आज भी विवश।
बदल नही पाए उसकी विवशता,
चाहे मना लो तुम कितने दिवस।।
जो बनाता है मकान दुसरो के लिए,
नही बना सका मकान खुद के लिए।
वह मर रहा है आज भी देश के लिए,
बताओ कौन मर रहा है उसके लिए।।
कितने ही दशक आज बीत चुके है,
उसका जीवन न हम बदल चुके है।
रहा मजबूर मजदूर वैसा जैसा ही,
बताओ कितने प्रयत्न कर चुके है।।
आर के रस्तोगी
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