महिला सशक्तिकरण की बेजोड़ मिसाल है लद्दाख

पदमा डेचिन 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्रि संघ द्वारा जारी एक आंकड़ों के अनुसार भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देशों की श्रेणी में एक है। हाल के दिनों में देश की राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों में महिलाओं के साथ बढ़ रहे अपराध की खबरें पढ़ने के बाद इस रिपोर्ट की सच्चाई पर बहुत हद तक विश्वास करने का मन हो जाता है। देश में लिंग विषमता आम बात हो चली है। ताज्जुब तो तब होता है जब यह विषमता गांव से ज्यादा शहरों में देखने को मिलते हैं अर्थात् गांव से ज्यादा पढ़े लिखे लोगों में बीच लड़के और लड़कियों के बीच विभेद की भावना अधिक नजर आती है। अपने स्कूली तथा कॉलेज की शिक्षा के दौरान मैंने कई बार परंपरा के नाम पर महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के बारे में पढ़ा और जब उच्च शिक्षा के लिए मुझे लद्दाख से बाहर निकलने का अवसर प्राप्त हुआ तो मैंने जाना कि देश में महिलाओं को दहेज तथा लड़की को जन्म देने के नाम पर किस प्रकार प्रताडि़त किया जाता है। इस परिदृश्या ने मुझे लद्दाखी महिलाओं की स्थिती पर लिखने को प्रेरित किया ताकि देश के अन्य क्षेत्रों की महिलाएं यह जाने कि किस प्रकार लद्दाख इस घृणित परंपरा की काली छाया से अब तक कोसों दूर है।

एक महिला होने के नाते मैं यह पूरे दावे के साथ कह सकती हूं कि लद्दाख में लड़कियों को समाज में वहीं रूतबा और दर्जा प्राप्त है जो यहां लड़कों को है। इनके लिए भी शिक्षा और विकास का वही पैमाना है जो लड़कों के लिए तय किए गए हैं। अन्य क्षेत्रों के विपरीत लद्दाख में लड़कों की तरह लड़कियों के जन्म पर मातम की बजाए उत्सव का माहौल रहता है। माता-पिता केवल लिंग के आधार पर उनके साथ किसी प्रकार का विरोधाभासी व्यवहार नहीं करते हैं। यहां लड़कियों को जन्म से लेकर उसकी शादी तक अभिभावक लड़कों की तरह समान अवसर प्रदान करते हैं और शादी के बाद ससुराल में भी उसे वैसी ही इज्जत दी जाती है। लड़कियों को कभी इस बात का अहसास नहीं होने दिया जाता है कि वह किसी प्रकार से किसी मामले में लड़कों से कम हैं अथवा कमजोर हैं। स्कूल, कॉलेज और यहां तक कि सामाजिक कार्यों में भी उन्हें समान अवसर प्रदान किए जाते हैं। उनकी सामाजिक स्थिति से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जाता है। लड़कों की तरह उन्हें भी समाज में फलने-फूलने का समान अवसर दिया जाता है। शादी के नाम पर न तो लड़के वालों की ओर से दहेज की लंबी चैड़ी लिस्ट दी जाती है, न ही दुल्हन को दहेज की कमी के लिए कोसा जाता है और न ही दहेज के नाम पर उनकी बलि दी जाती है। यहां लड़कियों की शादी जबरदस्ती नहीं कराई जाती है बल्कि उन्हें इस बारे में सोचने और फैसला लेने का पूरा अधिकार दिया जाता है। लद्दाखी समाज में लड़कियों को अपने पसंद का जीवन साथी चुनने की आजादी होती है तथा अपने भविश्य का फैसला करने में समाज की सहमति होती है। इसका प्रमुख कारण यही है कि लद्दाखी समाज में लड़कियों के दर्जे को हमेशा लड़कों के समान समझा जाता रहा है।

इसी प्रकार बुजुर्ग तथा उम्रदराज़ महिलाओं को विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते देखा जा सकता है। सामाजिक विकास में लद्दाखी महिलाएं पुरूषों के साथ समान रूप से कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करती हैं। पुरूष जहां खेती और अन्य कार्य करते हैं वहीं महिलाएं भी खाली वक्त का पूर्ण रूप से उपयोग करती हैं। यहां के अधिकतर गांवों में महिलाओं की स्वयं सहायता समूह सक्रिय रूप से कार्यरत है जहां वह सिलाई, कढ़ाई, बुनाई तथा बागबानी जैसे कार्यों को बखूबी अंजाम देती हैं। जो न सिर्फ उनके हुनर को निखारने का कार्य करता है बल्कि घर की आय में भी विशेष योगदान होता है। सामाजिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में जब भी आवश्याकता पड़ी है लद्दाखी महिलाओं ने बढ़चढ़ कर भाग लिया है।

मुमकिन है कि कुछ जगह लड़कियों के साथ दुर्व्यववहार किया जाता होगा क्योंकि महिलाओं के साथ अत्याचार एक ग्लोबल समस्या का रूप धारण कर चुका है। परंतु इसके बावजूद यहां महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के इक्का-दुक्का मामले ही सामने आते हैं। यहां बलात्कार, हत्या अथवा छेड़खानी के मामले वर्षों में कहीं एक बार सुनने को मिलते हैं। हालांकि यहां दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों की तरह पुलिस चैकसी का कोई विशेष प्रबंध नहीं है। इसके बावजूद यहां देश के अन्य महानगरों की तरह महिलाओं पर अत्याचार की संख्या नगण्य है। इसके पीछे यहां की उन्नत सामाजिक विचारधारा कार्य करती है जहां नारी को भोग की वस्तु और कमजोर नहीं बल्कि उसे मनुष्य समझा जाता है। यहां का समाज विकृत मानसिकता को कभी भी स्वीकार्य नहीं करता है। यही कारण है कि लद्दाखी युवाओं में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना होती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारे देश में महिलाओं का स्थान सदैव उंचा रहा है, उसे देवी समान पूजनीय माना जाता है। परंतु बदलते वक्त में यह बात केवल किताबों तक ही सीमित रह गई है और आज स्थिति इसके विपरीत है। लेकिन दूसरी ओर देश के इस दूर-दराज क्षेत्र लद्दाख में अब भी महिलाओं का स्थान समाज में आदरणीय है। (चरखा)

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