लगभग डेढ़ साल पहले गुवाहाटी में आदिवासियों की एक रैली के दौरान मीडिया की सुर्खियों में रहने वाली लक्ष्मी ओरांव आजकल फ़िर चर्चा में है। इस बार वजह है कि वो तेजपुर संसदीय क्षेत्र से यूडीएफ की उम्मीदवार हैं। साल भर पहले आसाम की राजधानी मे अपमानित की गई अबला आदिवासी महिला आज राजनीति मे आने के लिए कमर कस कर खड़ी है।एक तरफ़ इस देश में ऐसे लोग भी हैं जो सिस्टम की दुहाई देते हुए वोट देने से भी कतराते हैं तो वहीँ दूसरी ओर लक्ष्मी जैसी आत्मविश्वासी और हिम्मती महिला भी, जो तथाकथित सभ्य समाज को उसके घिनोने चेहरे का आइयाना दिखानेको तैयार है । लक्ष्मी कहती हैं -” चुनाव भले न जीते लेकिन मैदान में उतर कर वह शोषण के ख़िलाफ़ लोगों में संदेश देना चाहती है। “मार्टिन लूथर किंग को अपना आदर्श मानने वाली लक्ष्मी का यह एक कदम नारी को अबला बताने वालों को करा जवाब और लाखों शोषितों के लिए प्रेरणा का सबब बना हुआ है। महिला उत्थान के लिए काम करने वाले समाजसेवी व अधिवक्ता सुकुमार कहते हैं – “नारी विमर्श के इस ज़माने मे नारी की ऐसी दशा है कि जिसका जिक्र करते हुए ख़ुद पर शर्म आने लगती है । आज पढ़े लिखे भारतीय जन मानस की मनोविकृति की शिकार महिलाये आम तौर पर खामोशी से चुप चाप सब कुछ सहने की आदी हो गई है। हर दिन हजारों बलात्कार, हजारों दहेज़ हत्या और मारपीट, हजारों छेड़छाड़ की घटनाएँ होती हैं पर उनमे से कितनी पीडिता विरोध मे आवाज उठाती है ? सामान्य जनों की बात छोडिये समाज को जगाने का ढिंढोरा पीटने वाले बुद्धिजीवी वर्ग भी अब किताबों एवं समाचारपत्र- पत्रिकाओं तक सिमट गया है। कहने को तो नारी उत्थान के पुरोधा लोग इस दिशा मे काम कर रहे हैं लेंकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। बड़ी बड़ी पार्टियो मे तथा बंद कमरों मे लम्बी-लम्बी डींगे हांकने से परिस्थिती नही बदल जाती है । कुल मिला कर आज के भारत मे नारी दुर्दशा का दर्शन और इसके परिणामो के प्रति उदासीनता सर्वत्र दृष्टिगत होती है । ऐसे प्रतिकूल माहोल मे लक्ष्मी ओरांग का राजनीति मे आने का फ़ैसला सराहनीय कदम माना जाएगा। आसाम की ये वीरांगना स्त्री समस्त भारतीय महिलाओ के लिए आदर्श है।”
फिलवक्त , लक्ष्मी मीडिया हाइप से दूर अपने क्षेत्र के चाय बागानों में आदिवासिओं को एकजुट करने का अभियान चला रही है। १२ लाख मतदाताओं वाली सीट में से ४ लाख लोग इन्ही चाय बागानों में रहते हैं। मंच-माला -माइक के तामझाम से अलग न तो लक्ष्मी भाषण देने की भी जरुरत नही समझती और न ही वहां के लोग। लक्ष्मी के साथ घटी घटना ही लोगों को काफी लगती है । पूरे देश भर में चुनाव प्रचार और जनसंपर्क के लिए उम्मीदवारों द्वारा करोड़ों रूपये खर्च किए जाते हैं। ऐसे में लक्ष्मी का सादा प्रचार कितना सफल होता है यह देखना बाकी है।
– जयराम ‘विप्लव’
मो: 09210907050
ईमेल: jay.choudhary16@gmail.com
भाई जयराम – आप की लेख को पढ़कर अच्छा लगा | भारत की बर्तमान समाज में भी नारी की स्थान और हालत में काफी प्रगति होना अब भी बाकी हैं |
मैं आसाम से वास्ता रखता हूँ, इसीलिए आप के लेख से जुरे कुछ वास्तविक घटनाओ और पहलूओ के बारे में मै अपनी जानकारी और राइ देना चाहूँगा :
१) सबसे पहले मैं स्पस्ट करना चाहूँगा की लक्ष्मी के साथ जो हुवा वोह गलत हुआ | उसका कोई भी असमिया इंसान समर्थन नहीं करेगा |
पर :
२) उस दिन लक्ष्मी की हालत का जिम्मेदार गुवाहाटी के लोग नहीं थे ; जिम्मेदार थे उन्ही के साथ आये हुए लोग | गुवाहाटी के वह जगह दिल्ली के जंतर मंतर के जैसा हैं जहा आए दिन धरना प्रदर्शन होते रहते हैं | लेकिन इस जगह के चारो तरफ आम असमिया लोगो के घर और दूकान हैं |
३) आसाम के चाय बगान के लोगो को एस . टी दर्जा देने का एक पुराना मांग रही हैं लेकिन ऐसा मांग रखने वाले वे अकेले जनजाति नहीं हैं | लगभग १० ऐसे और जनजाति एस . टी दर्जा मांग कर रहे हैं | मै खुद यह मानता हूँ की इन चाय बगान के लोगो को यह दर्जा मिलना चाहिए |
४) उस दिन लगभग 3000 लोगो ने बिना पुलिस को सुचना दिए एक धरना के लिए गुवाहाटी के बेलटोला क्षेत्र से गुजरते हुए दिसपुर (असम के राजधानी ) के धरना वाली इलाके तक पैदल जा रहे थे | लेकिन अचानक इन लोगो के बिच से कुछ लोगो ने आम लोगो के गाडियों को, दुकानों को और जो भी रास्ते के किनारे मिला – सभी चीजों को तोड़ने लगे | जब इन सामानों के मालिको ने, वहा के आम लोगो ने, वहा के निवासियों ने इसको रोकने की प्रयास किया तो उन लोगो को भी इन जुलुस वालो ने जमकर धुलाई की | लगभग देर घंटो तक यह तोड़-फोड़ चलता रहा |
५) कभी भी ऐसा करतूत आसाम मै किसी भी जगह पर किसीने किया नहीं था | कई सो गाडिया तोड़ डाले – दुकान – घर कुछ नहीं छोरा | इस घटना से वहा के लोग अचंबित रह गए | गुस्से से लोग पागल हो गए और सभी वहा के निवासी इकट्ठे हुए और इन लोगो को सबक सिखाने के लिए डोर पड़े | किसीको नहीं छोरे, सबकी जमकर धुलाई हुई |
६) लक्ष्मी के साथ जो हुआ वह नहीं होना चाहिए था लेकिन इनकी धुलाई पर हर किसीको खुश होना चाहिए और लोग हुए भी | मै भी हूँ | आसाम मै अब कोई ऐसे जुलुस वाले कभी भी हिम्मत नहीं करेंगे आम लोगो की चीजों को छुने की | यह सबक हैं सभी ऐसे जुलुस वालो के लिए जो अपने मांगो को रखने के हावाले से आम लोगो के परेशानियों को, आम लोगो के दिक्कतों को कोई मोल नहीं देते | कोई भी लोगो के समूह, जुलुस वाले अपने संख्या के दम पर एक आम इंसान को इंसान नहीं समझते हैं – यह स्थिति बदलनी चाहिए | आसाम के लोगो के इस कारनामे को मैं हर्षध्वनि देता हूँ |
अब आते हैं लक्ष्मी के निर्वाचन में हिस्सा लेने के तरफ :
७) लक्ष्मी ने जिस पार्टी से चुनाव लड़ने का प्रयास किया हैं – उसे आसाम के लोग बंगलादेशियों का पार्टी कहते हैं . बदरुद्दीन अजमल के इस पार्टी का काम पूरी तरह से बंगलादेशियों के दम पर चलता हैं और आम भारतीयों का इस पार्टी से बहुत खतरा हैं | लक्ष्मी ने इस पार्टी से लड़कर सारे आसाम वासियों के मन में अपने लिए एक घृणा का भाव बनाने में ही कामयाब हुआ हैं | उनके जो सहानुभूति लोगो के मन में था – उसे लक्ष्मी ने पूरी तरह से मिटा दिया हैं |
८) मार्टिन लूथर के बारे में जब लक्ष्मी को पूछा गया तो उन्होंने कहा था की लूथर के बारे में उन्होंने सिर्फ हाल फिलहाल में सुना हैं |
इसीलिए – भाई जयराम – मैं आपकी विचारो से सहमती रखता हूँ – लेकिन जिस घटना को आपने आदर्श माना हैं – उसके बारे में आपको और जानकारी लेनी चाहिए थी – और इस खामी के कारण मैं आपका अर्तिक्ले का घोर बिरोध करता हूँ |
jeet tumhera kdmo mea hai
ekta mea hi taakat hai,ham sab tumharea saath hai.
जब कभी आईना देखता हूँ
सिहर उठता हूँ
हर बार एक नया चेहरा
हर बार आईना
एक बिना धार के चाकु से
मेरे व्यक्तित्व का
कुछ न कुछ अंश
तराश ही देता है।
laxmi jee jab apne atit ko bhul kar pratinidhitw karne nikli hain to jeet unke kaDAM CHUMEGI…………..
एक बेचारा सा भ्रम
जम्हूरियत में
एक आम आदमी,
एक अपग से आम आदमी की
लाचारी को परोसता
हर सवाल पर निरुत्तरित रह जाता
सर झुकाये पीठ पर
ढोता नामर्दगी
और पालता
अपने मर्द होने का भ्रम
अपने जिन्दा होने का भ्रम।
jairam babu jam ke likhai ho rahi hai ………………. lago raho
laxmi ke sahsi kadam ka sundar wishleshan dene k liye thanks …………
laxmi ki jeet lachar ho chuke bhartiyo ki jeet hogi ;;;;;;;;;;;;;;;;;
शर्मनाक इससे शर्मनाक क्या होगा मुझे उनके साथ पूरी हमदर्दी है उनकी जीत लोकतंत्र की जीत होगी
जाके पैर न फटी बिवाई, वा का जाने पीर परायी! जो नेता कभी वातानुकूलित कक्षों से बाहर नहीं निकले उन्हें क्या पता कि जनता को क्या-क्या दुख झेलने पडते हैं! लक्ष्मी जी के साथ मेरी दुआयें हैं, वे ही जीतेंगी, और किसी और की दशा अपने अतीत जैसी नहीं होने देंगी.
वाकई लक्ष्मी शोषितों के लिए प्रेरणा का सबब है ।व्यवस्था बहुत क्रूर है इसलिए उसके लिए एक भय मन मे विद्यमान है।उम्मीद है वह जीते और मिसाल बने!
इस शर्मनाक वाकये के बाद ..इस खबर के थोडा मरहम रखा है ह्रदय पर ..बहुत शुक्रिया आपको