रेलवे में लालू की बाजीगरी

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railwayहिमांशु शेखर

लालू यादव चारा घोटाले की सजा जेल में काट रहे हैं। कई लोग बतौर रेल मंत्री उनके कामकाज की तारीफ कर रहे हैं। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। 2004 में जब लालू प्रसाद यादव केंद्रीय रेल मंत्री बने तो उन्होंने घाटे का पर्याय बन चुके भारतीय रेल को अचानक मुनाफे की मशीन बना देने का दावा किया. वे बताने लगे कि उनके कुशल प्रबंधन की वजह से रेलवे को हजारों करोड़ रुपये का फायदा हो रहा है. इसके बाद तो भारतीय प्रबंधन संस्‍थान से लेकर कई विदेशी विश्ववविद्यालय के छात्र भी उनसे प्रबंधन का गुर सीखने आने लगे. लेकिन लालू की बाजीगरी की पोल खोलने का काम संप्रग के दूसरे कार्यकाल में रेल मंत्री बनी ममता बनर्जी ने किया. उन्होंने रेल मंत्रालय का कार्यभार संभालने के कुछ ही महीनों के अंदर श्वेत पत्र लाकर लालू के मुनाफे के दावे को खोखला साबित किया और कहा कि रेलवे बीमार हालत में है.

लालू 2004 से 2009 तक रेल मंत्री रहे. इस दौरान उन्होंने दावा किया कि वित्त वर्ष 2006-07 में रेलवे को 21,578 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ. उस साल के रेलवे के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि लालू ने रेलवे के पास पड़े कैश सरप्लस यानी अतिरिक्त नगद रकम को भी मुनाफे में गिना था. इसमें पेंशन फंड का 9,000 करोड़ रुपये और मिसलेनियस फंड के 2,500 करोड़ रुपये को भी मुनाफे के तौर पर दिखाया गया था. लालू ने उस पैसे को भी मुनाफे में शामिल कर लिया था जो सस्पेंस अकाउंट के थे. यानी जो आंकड़े तैयार करते वक्त रेलवे को मिले तो नहीं थे लेकिन भविष्य में मिलने की उम्मीद थी. सुरक्षा सरचार्ज के तौर पर यात्रियों से वसूले गए 850 करोड़ रुपये को भी लालू ने मुनाफे में गिना.

लालू ने यात्रा किराया तो नहीं बढ़ाया लेकिन उनके राज में रेल टिकटों पर छिपे हुए शुल्क लगाए गए. इससे रेलवे को उस साल 325 करोड़ रुपये की आमदनी हुई. लालू ने 100 से अधिक ट्रेनों को सुपरफास्ट घोषित कर दिया लेकिन इन गाड़ियों की सेवाओं में सुधार नहीं हुआ. सुपरफास्ट घोषित किए जाने के बाद इन गाड़ियों के टिकट पर सरचार्ज लगने लगा और रेलवे ने इससे 75 करोड़ रुपये की कमाई की. लालू ने टिकट रद्द कराने का शुल्‍क बढ़ाया और इससे रेलवे को तकरीबन 100 करोड़ रुपये की आमदनी हुई. तत्काल कोटा में आरक्षित सीटों की सीमा बढ़ाकर और प्रति टिकट औसतन 150 रुपये की वसूली करके रेलवे ने उस साल 150 करोड़ रुपये बनाए. लालू राज में वापसी टिकट बुकिंग पर सरचार्ज चुपके से बढ़ा दिया गया और इससे भी रेलवे को 30 करोड़ रुपये का लाभ हुआ. लालू ने दो महीने टिकट बुक कराने की सीमा को बढ़ाकर तीन महीने कर दिया था. इससे रेलवे के पास उस वित्त वर्ष के समाप्त होने से पहले एडवांस के तौर पर 550 करोड़ रुपये आए. लालू ने इसे भी मुनाफे में जोड़ लिया.

दरसअल, उस साल रेलवे को कुल 11,000 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था. लेकिन यह मुनाफा किस कीमत पर हुआ था यह जानकर कई लोगों को हैरानी हो सकती है. लालू ने पटरियों का स्तर सुधारे बगैर मालगाड़ियों में अधिक माल ढोने को मंजूरी दे दी. इससे रेलवे को तकरीबन 5,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी तो हुई लेकिन सुरक्षा का खतरा हर वक्त बना रहा. जब किसी ने इस बारे में लालू से सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया कि अगर गाय से पूरा का पूरा दूध नहीं निकालेंगे तो गाय बीमार हो जाएगी. लालू ने सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दरकिनार कर जिस तरह से मुनाफे को ही सबसे पहले रखने की रणनीति अपनाई उसके दुष्परिणाम आने भी उसी साल शुरू हो गए. रेलवे के अलग-अलग जोन से पटरियों में दरार आने की शिकायतों की संख्या बढ़ गई. कई लोग यह कहते हैं कि लालू प्रसाद यादव ने जिस तरह से बुनियादी ढांचे को दुरुस्त किए बगैर रेलवे पर अतिरिक्त बोझ डाला उसका दुष्परिणाम अब दुर्घटनाओं के तौर पर दिख रहा है.

3 COMMENTS

  1. लालू प्रसाद ने रेलवे में सराहनीए कार्य किया है . एक समय जब रेलवे घाटे में जा रही थी। रेलवे की प्राइवेटाइजेशन की बात चल रही थी एसे समय में लालू प्रसाद ने अपनी कुसलता पूर्वक कार्य कर रेलवे को संकट से उबरा। आमदनी की दावा जो उन्होंने किया
    था वह वे रेलवे मंत्रालय के मंत्री के रूप में सदन में किया था जो की पूरी तरह रिकॉर्ड में है। उन्होंने न केवल रेलवे को संकट से उबरा बल्कि अपने कार्यो द्वारा अपनी मूल विचाधारा समाजवाद को भी बल दिया। गरीब रथ चलवाना केवल गरीबो को ac में यात्रा करना नहीं है बल्कि उनमे यह विश्वास दिलाना है की गरीब भी अमीरों के साथ अमीरों की तरह चल सकते हैं उनके साथ बैठ सकते है . मै अपने अनुभव से कह सकता हूँ जब कोइ गरीब ये गांव देहात का आदमी जब कभी ac कोच में सफ़र करता था तो जैसे अपने आप को असभ्य पता है . ac कोच और जनरल कोच समाज को इलीट ओर नॉन इलीट में बाटता था,. गरीब रथ, कुलहर की चाए केवल ट्रेनऔर मिटटी की खिलोने नहीं थे ये समाजवाद के दिशा में उठाए गए कदम थे। शायद कुछ विद्वान तथाकाहित इलीट वर्ग लालू प्रसाद के इस समाजवादी प्रयोग को समाज न पाए। लालू प्रसाद एक प्रायोगिक समाजवादी थे और अगर किसी ने कार्य किया हो तो हमें उसकी सराहना करना चाहिए .

    • लालू प्रसाद ने रेलवे में सराहनीए कार्य किया या नहीं किया पर चल रहे वाद-विवाद को आप और हिमांशु शेखर के बीच छोड़ मैं आपको भारत के किसी गाँव अथवा शहर में एक चौराहे पर खड़े अपने इर्द गिर्द देखने को कहूँगा। जो दृश्य आप देखते है निसंदेह वह नेहरु के समाजवाद पर पिछले पैंसठ वर्षों में पड़ी धूल की देन है। भारत में लालू अथवा किसी दूसरे का समाजवाद केवल भूसा खाने तक ही सीमित है। मैं आपके अनुभव को यथार्थ समझता हूँ। पूर्वी पंजाब के एक छोटे से गाँव से परिवार सहित दिल्ली शहर में आ बस मैंने दातून छोड़ जब पहले पहल ब्रश को थामा था मुझे आप जैसा ही अनुभव हुआ था। गाँव के खेत खलिहानों में जंगल पानी करते घर की चारदीवारी में शुष्क सौचालय और फिर वर्षों बाद घर में नल द्वारा पानी उपलब्ध होने पर सभ्य हो जाने का भी आभास हुआ थ। आज उपभोक्तावाद व वैश्विक युग में सिनेमा, दूरदर्शन, कम्प्यूटर तंत्र व अन्य साधनों द्वारा हम में अधिकाँश मानसिक स्तर पर अपने को सभ्य मानते हुए भी आधुनिक उपलब्धियों से वंचित हैं। क्यों?

  2. इस आलेख में केवल रेलवे में लालू की बाजीगरी ही नहीं बल्कि भारतीय चरित्र में अयोग्यता और मंध्यमता स्पष्ट झलकती है। फिर से कुल्लड़ में चाय का प्रचलन कर अकेले लालू ने करोड़ों का लाभ दिखाया है तो हम मान लेते हैं। यहाँ तो ऐसा लगता है कि मीडिया, जांच संबंधी सरकारी संस्थायें, और स्वयं रेलवे में अलग अलग विभाग अवश्य ही रेलवे में लालू की बाजीगरी के अन्य पात्र हैं।

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