विधि-कानून

दरअसल अब तक परतंत्र ही हैं हम

गिरीश पंकज

shyam rudra pathak”कहने को आज़ाद हो गए

मगर गुलामी जारी है

मुझको हर पल ही लगता है,

ये दिल्ली हत्यारी है”.

अपनी ही काव्य पंक्तियों से बात शुरू कर रहा हूँ। सच कहूं तो बड़ी पीड़ा होती है , जब हम देखते हैं कि अपने ही स्वतंत्र देश में अपनी ही राष्ट्र भाषा के लिए संघर्ष करने के लिए लोग मज़बूर है। इस देश में राष्ट्र भाषा का सवाल, गौ ह्त्या का सवाल, नागरिक स्वातंत्र्य का सवाल हाशिये पर पडा हुआ है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्र तो जैसे स्थगित कर दी गयी है. अघोषित आपाताकाल जैसा नजारा है. क्या हो गया है इस देश की चेतना को? राजनीति इतनी नीच कैसे हो गयी? अपने लोगों का दमन करके दिल्ली की राजनीतिक बिल्ली खुश कैसे हो जाती है? अपनी भाषा की प्रतिष्ठा के लिए रूद्र पाठक जी आन्दोलन कर रहे हैं तो उन्हें चैन से आन्दोलन भी नहीं करने दिया जाता?

ये कैसा लोकतंत्र हम रच रहे हैं?

दुनिया के सामने भारत का कैसा चेहरा प्रस्तुत किया जा रहा है?

महात्मा गांधी या अनेक अहिन्दी भाषी नेताओं ने तक आजादी के पहले साफ़-साफ़ कहा था कि भारत आज़ाद हुआ तो इस देश की भाषा हिंदी होगी। क्योंकि यही ऐसी भाषा है जो देश के हर हिस्से में बोली जाती है. समझी भी जाती है. देश आज़ाद हुआ तो लगा था की देश का सारा कामकाज हिन्दी में ही होगा, मगर आज क्या हो रहा है , सब देख रहे हैं। कहने को हिंदी को ”राजभाषा” बना दिया गया है, लेकिन उसके साथ अभी भी दोयम दर्जे का व्यवहार होता है. महज औपचारिकता निभायी जाती है. अंगरेजी आज भी सामंती सोच की भाषा बनी हुयी है. चंद गुलाम मानसिकता के लोग यह मान कर चल रहे हैं कि अंगरेजी जानने वाल ही देश चला सकता है. या उसे ही जीने का हक है. और हमारे राजनेता? इनके दोगले चरित्र का तो कहना ही क्या? ये इतने नकली और झूठे लोग हैं की इनसे ‘सियार’ भी शर्मा जाये। इनकी इच्छाशक्ति की कमी ही हिंदी के रास्ते में व्यवधान पैदा कर रही है. अगर उच्चतम न्यायालय में हिंदी का सम्मान नहीं है तो कहाँ होगा? ब्रिटेन में ? क्या यह देश आज भी गुलाम है? क्या इस देश की एक भाषा नहीं हो सकती?

हर देश की अपनी भाषा होती है, जिसके सहारे वह विश्व के अन्य देशो से संवाद करता है, मगर हम हैं कि उस देश की भाषा में बतियाने में गर्व का अनुभव करते है। अंगरेजी बोलना अभिजात्य हो जाना है. एक अजीब किस्म का हीनताबोध उन लोगों में भरा पडा है, जो अंगरेजी बोलते है. वे मान कर चलते हैं कि अंगरेजी बोलने वाला ही प्रभु वर्ग का है. हिंदी वाला तो बेचारा है. इसीलिये हिंदी के लिए आन्दोलन करने वाले का दमन किया जाता है. आज अगर सोनिया गांधी के निवास के बाहर श्याम रूद्र पाठक धरने पर बैठे हुए हैं तो उनको गिरफ्तार किया जाता है, उनका अपमान होता है, तब ऐसा लगता है कि यह देश अभी आज़ाद नहीं हुआ है.वैसे भी दमन के मामले में यूपीए सरकार ने .’कीर्तिमान’ कायम किये हैं। कितने ही आन्दोलनों को इस बेशर्म सरकार ने कुचलने की कोशिश की है. ठीक उसी तरह जैसे अंगरेज कुचला करते थे. तो क्या यह देश सचमुच अभी आज़ाद है? इस देश को मैं आज़ाद तभी मानूंगा जब मुझे अपनी अहिंसक अभिव्यक्ति के लिए किसी भी सूरत में न रोका जाये, किसी भी तरीके से दमन न किया जाये। आखिर वे भी इसी स्वतंत्र देश के नागरिक हैं जो अपनी भाषा के लिए आन्दोलन कर रहे हैं क्या हम इसीलिये स्वतंत्र हुए कि एक विदेशी भाषा के गुलाम बने रहेंगे? हिन्दी में कमी क्या है?क्यों उसके साथ अलगाव भरा व्यवहार किया जाता है?

हिन्दी के साथ अन्य मान्य भारतीय भाषाओँ को भी सम्मान किया जाये, लेकिन यह तो स्वीकार किया ही जाना चाहिए कि किसी भी देश की अपनी पहचान उसकी एक भाषा से होती है.राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्र भाषा बिना कोई देश कैसे कैसे आज़ाद माना जाये? उच्चतम न्यायालय में बैठे ”माननीय” लोगों को भाषा के सवाल पर भी उदारतापूर्वक सोचना चाहिये. न्यायलय के अनेक निर्णयों को देख कर मुझे खुशी होती है की जहां सरकार असफल होती है, वहां उच्चतम न्यायलय आगे आ कर दिशा-निर्देश जारी करता है. अनेक उदहारण है, तो भाषा के सवाल पर उच्चतम न्यायलय खुद आगे आ कर क्यों नहीं संज्ञान लेता? संसद में बैठे लोग राष्ट्र भाषा के सवाल पर एक क्यों नहीं होते? मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि जिसकी जो भाषा है, उस भाषा में उसे बहस का मौक़ा मिले, इस नासपीटी अंगरेजी से तो मुक्ति मिले.यह भाषा नहीं, अब एक वर्ग-चरित्र है. यह देश को तोड़ रही है. दो भागों में बाँट रही है. हर भाषा का सम्मान हो, अंगरेजी भी एक भाषा है, इसका भी सम्मान होना चाहिए मगर इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि वह ‘महारानी’ बन कर बाकी भाषाओँ को नौकरानी की तरह घर से बाहर कर दे. श्याम रूद्र पाठक जैसे राष्ट्रभाषा प्रेमी के पक्ष में पूरे देश में धरना दिया जाना चाहिये. वे अकेले न पड़ जाएँ। उच्चतम न्यायालय को लगना चाहिए कि पाठक की आवाज़ देश की आवाज़ है. तभी बात बनेगी।